आसमान को छूने की आशा

पंकज भारतीय/४ दिसंबर २०१० 
घूमता पहिया गतिशीलता का द्योतक है और सायकिल पर सवार मुनिया बेटी बदलते बिहार की पहचान है.मैकमिलन ने जब सायकिल का आविष्कार किया होगा तो उसके जेहन में पेट्रोल और डीजल रहित ऐसी सवारी का खाका रहा होगा जो दूर दराज की कच्ची सड़कों पर न्यूनतम लागत में आवागमन का सुलभ  साधन बन सके.मैकमिलन को इस बात की जरा भी कल्पना नही रही होगी कि कभी यह सायकिल बिहार जैसे पिछले इलाके में एक दिन शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति का वाहक बनकर सामने आएगा.वर्ष २००७-०८ में प्रारम्भ इस योजना का जादू सर चढ़कर बोल रहा है.
खास बात यह है कि सायकिल मात्र स्कूल जाने का साधन मात्र नही रहकर नारी सशक्तिकरण के 'प्रथम औजार' के रूप में तब्दील हो गया है.सायकिल से लड़कियों को आत्मविश्वास का संबल मिला है तो उसकी सवारी कर आसमान को छूने की आशा भी सजीव हो उठी है.सपने को हकीकत में बदलने की दिशा में यह एक सशक्त माध्यम साबित हो रहा है.यही वजह है कि सुदूर क्षेत्रों में मांग में सिन्दूर लगाकर स्कूल ड्रेस में लिपटी .मुनिया' सपने को हकीकत में तब्दील करने की जद्दोजहद में शामिल दिखती है.जबकि समय इन बालिका-वधुओं के लिए यही कहता है कि अब सपनों पर जिम्मेदारियों का पहरा सज चुका है.घर के लिए शब्जी लानी हो या दादी माँ के लिए नुक्कड़ के मेडिकल स्टोर्स से दवाई,मुनिया बखूबी हर उम्मीद पर खरा उतर रही है.लाख टेक की बात यह है कि बिना बेटे की माँ को सायकिल पर सवार मुनिया में अपने बेटे का अक्स भी नजर आता है.लब्बोलुआब यह है कि दो घुमते पहिये के साथ इच्छा,आकांक्षा और सपने भी नित नयी दूरियां तय कर रही है.
आसमान को छूने की आशा आसमान को छूने  की आशा Reviewed by Rakesh Singh on December 04, 2010 Rating: 5

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