बात नए जमाने की क्या कहूँ,
हद से आगे निकल चुकी है,
अरमानों की दिवाली कभी नही मनी,
अरमानों की दिवाली कभी नही मनी,
कितनी होलियाँ जल चुकी है.
सपनों का शीशमहल टूटकर
सपनों का शीशमहल टूटकर
आज मिट्टी में मिल चुका है.
उम्मीद की आखिरी झोंपड़ी पर
उम्मीद की आखिरी झोंपड़ी पर
बुलडोजर चल चुका है.
जिसे मैं कबीर समझा
वह शख्स कमाल निकला,
जिसे चेला समझने की भूल की मैंने,
पक्का गुरुघंटाल निकला.
गीता का श्लोक रटा रहा था,
बड़ा सपूत अगरबती जलाकर
बिपाशा की तस्वीर को दिखा रहा था,
देख ढीठाई उसकी मैंने गुस्सा में यूँ चिल्लाया
मेरा बड़ा भतीजा दौडकर आँगन से बाहर आया.
मेरा बड़ा भतीजा दौडकर आँगन से बाहर आया.
नैतिकता का नया पाठ अब वही पढ़ा रहा था,
बड़ी सफाई से हजरत वह,उसी तस्वीर को आँखें मार रहा था.
अप्रिय हादसे को सूंघकर श्रीमतीजी बाहर आई,
माथे पर गहरी शिकन थी,शायद थी वह बहुत घबराई.
सुनकर करतूत सपूतों की वह अपनी आँखें झपकाने लगी,
फिर गंभीरता से लिपटकर वह मुझे समझाने लगी.
अप्रिय हादसे को सूंघकर श्रीमतीजी बाहर आई,
माथे पर गहरी शिकन थी,शायद थी वह बहुत घबराई.
सुनकर करतूत सपूतों की वह अपनी आँखें झपकाने लगी,
फिर गंभीरता से लिपटकर वह मुझे समझाने लगी.
बोली अजी ! छोडिये भी खामखा फ़िक्र मत कीजिए,
ये फसल नए जमाने की है,इन्हें बेधड़क बढ़ने दीजिए.
माहौल जब आज बिगडों का है,सुधरकर भला ये क्या कर पायेंगे.
हरफन में मौला इन्हें होने दीजिए,अन्यथा औरों से पिछड जायेंगे.
--पी०बिहारी'बेधड़क',मधेपुरा
माहौल जब आज बिगडों का है,सुधरकर भला ये क्या कर पायेंगे.
हरफन में मौला इन्हें होने दीजिए,अन्यथा औरों से पिछड जायेंगे.
--पी०बिहारी'बेधड़क',मधेपुरा
फसल नए जमाने की
Reviewed by Rakesh Singh
on
December 04, 2010
Rating:
No comments: