कबीर जयंती पर विचार गोष्ठी आयोजित

भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग एवं उर्दू विभाग के संयुक्त तत्वावधान में कबीर जयंती के अवसर पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी की अध्यक्षता हिन्दी एवं उर्दू विभाग के अध्यक्षों ने संयुक्त रूप से की। कार्यक्रम का संचालन डॉ० श्रीमंत जैनेन्द्र ने किया।

बीज वक्तव्य देते हुए डॉ० सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा, “हिन्दी-उर्दू साहित्य की विरासत की नींव यदि खुसरो से मानी जाए, तो कबीर उस परंपरा को जनमानस से जोड़ने वाले एक अद्वितीय कवि हैं। निर्गुण पंथी होते हुए भी कबीर मुहब्बत के मस्ताने बन जाते हैं। आज के युवाओं को पाश्चात्य संस्कृति के बजाय कबीर की शिक्षाओं का अनुकरण करना चाहिए। कबीर की विरासत आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी उनके समय में थी। जब धर्म और मजहब सत्ता के उपकरण बनते जा रहे हैं, ऐसे में कबीर की व्यंग्यात्मक चेतना हमें जागरूक करती है।”

हिन्दी विभाग के शोधार्थी एवं कबीर के विचारों के विश्लेषक अभय कुमार अमर ने कहा, “कबीर की दृष्टि में भाषा, जाति, पंथ और संप्रदाय के विवादों के पीछे कोई मौलिक तत्वभेद नहीं है। एक भाषा में जिसे ईश्वर कहा गया है, वही दूसरी भाषा में अल्लाह है। यदि समाज में प्रेमपूर्वक जीना है तो 'साधु' बनना होगा—वह साधु चोले वाला नहीं, बल्कि कबीर की दृष्टि वाला साधु। उन्होंने साधु की परिभाषा प्रस्तुत करते हुए कहा कि आज के समाज का हर सभ्य और सज्जन पुरुष वही साधु है। सगुण और निर्गुण की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि ये दोनों एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि दो अलग-अलग दार्शनिक दृष्टिकोण हैं। कबीर का दर्शन हाथी के उस पाँव की भांति है, जिसकी परिधि से बाहर कोई भी दृष्टिकोण टिक नहीं पाता।”

विशिष्ट वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए हिन्दी की प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ० रेणु सिंह ने कबीर की स्त्री विषयक चेतना पर विचार रखे। उन्होंने कहा, “कबीर के समय में हिन्दी और उर्दू अलग भाषाएं नहीं थीं। आज के साहित्य में कबीर के पदों का पुनर्पाठ आवश्यक है। उनकी रचनाओं में जो दृष्टि और अनुभव है, वह आज के संदर्भों में फिर से विश्लेषण की मांग करती है।”

‘मधेपुरा के दुष्यंत कुमार’ के नाम से प्रसिद्ध कवि सियाराम मयंक ने अपने व्यापक अनुभव और भ्रमण के आधार पर कबीर की स्मृति में एक ग़ज़ल प्रस्तुत की। उन्होंने अपनी रचना के माध्यम से कबीर को जनमानस का सम्मान बताया।

डॉ दीपक कुमार गुप्ता ने कहा कबीर प्रगतिशील विचारधारा के पोषक थे। वे सामाजिक परंपरा के पुरोधा थे। विश्व में के पर वह में परंपरा को जीने वाले थे। कबीर के समय हिंदी उर्दू संस्कृत समेकित संस्कृति थी। आज के इस माहौल में वर्तमान संस्कृत में कबीर की जो विरासत मौजूद है उसे विरासत की भूमिका पर बात करनी होगी।

अध्यक्षीय वक्तव्य में उर्दू विभागाध्यक्ष डॉ० मो० एहसान ने कहा, “कबीर ने अपने दोहों में मानवता की बात की है। उनका साहित्य हमें राह दिखाता है। उनके दोहे एक सूप की तरह हैं, जो बुरे विचारों को छानकर फेंक देते हैं। कबीर का संदेश सादगी और सच्चाई की ओर ले जाता है और उपभोक्तावाद के इस दौर में हमें सावधान करता है। उन्होंने कभी भी धर्म के बाह्य आडंबरों को स्वीकार नहीं किया। कबीर का अध्यात्मिक दृष्टिकोण हमें आत्मा के स्तर पर जोड़ता है। उन्होंने स्त्रियों की स्थिति पर भी अपनी सोच प्रकट की है और राम-चिंतन के साथ समाज को आलोकित करने की बात कही है।”

धन्यवाद ज्ञापन डॉ० विभीषण कुमार ने किया।

इस अवसर पर अमित आनंद, विकास कुमार, अभिनव कुमार, संजीव कुमार सौरभ, पिंकु प्रिंस, प्रेम कुमार, प्रणव कुमार, पंकज कुमार, रूपा कुमारी, ज्योति कुमारी, पूजा कुमारी, तनुप्रिया, ममता कुमारी, नन्हीं, प्रियंका, सोनी, ज्योति, प्रिंस, अमित, इम्तियाज रहमानी, मो० साहिल सहित अनेक विद्यार्थी उपस्थित थे।

कबीर जयंती पर विचार गोष्ठी आयोजित कबीर जयंती पर विचार गोष्ठी आयोजित Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on June 11, 2025 Rating: 5

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