सक्सेस स्टोरी (1): जीरो से हीरो बने दिलखुश: कभी लोगों ने उड़ाया था मजाक, आज हुए नेशनल मीडिया में चर्चित
कोसी के एक प्रेरणादायक युवा की ये कहानी उन सभी युवाओं के लिए है जिन्हें लगता कि सफलता सिर्फ किस्मत की बात है । ये कहानी एक बार फिर से साबित करती है कि सफलता की जिद हर विषम परिस्थितियों पर विजय हासिल करती है । शायद आपने एक पौराणिक पक्षी 'फीनिक्स' का नाम सुना होगा, जिसके बारे में कहा जाता है कि ये राख से जिन्दा होकर निकल उठा था । शायद साजिशों ने एक बार इस युवक को भी लगभग राख ही बना डाला था, पर फीनिक्स की तरह ये भी उठ खड़ा हुआ और फिर जब इनके काम ने रफ़्तार पकड़ी तो फिर इनकी उपलब्धि की चर्चा नेशनल मीडिया तक में होने लगी । 'द लल्लनटॉप' जैसे बड़े चैनल पर जब इनकी कहानी छपी तो लाखों लोगों ने इनकी कहानी जानकार दांतों तले अंगुली दबा ली. जी हाँ, हम बात कर रहे हैं आर्यागो कैब सर्विस से देश भर में चर्चा में आने वाले बिहार के सहरसा जिले के निवासी दिलखुश कुमार की ।
सहरसा जैसे अर्धशहरी शहर से आर्यागो कैब सर्विस जैसे नवीनतम उद्यम की शुरूआत करना वास्तव में एक चुनौतीपूर्ण कार्य था जब श्री दिलखुश कुमार ने वर्ष 2016 में अपने पैतृक गाँव बनगाँव में इसकी आधारशिला रखी थी। तब लोगों ने इन्हें जुनूनी और न जाने क्या क्या कहा था। समाज के लोगों ने इनका और इनके परिवार तक का मज़ाक उड़ाया था। फिर भी, इनसब बातों की इन्होंने परवाह नहीं की। इनका मानना है कि जहाँ भौतिक और आधारभूत सुविधाओं की कमी होती है अवसर के द्वार भी वहीं खुलते हैं। बड़े शहर अपने आपमें सुविधासंपन्न होते हैं। किसी महानगर से इस उद्यम की शुरूआत करने से कोसी, सीमांचल और मिथिला का भूभाग कैब सर्विस से वंचित रह जाता, जबकि इनका ध्येय ही गाँव-गाँव तक इस सेवा का विस्तार करना था। फलस्वरूप इससे उत्पन्न रोजगार भी बड़े शहरों तक ही सीमित रह जाते।
प्रधानमंत्री ने वीसी से की थी दिलखुश से बातचीत
मात्र पाँच वर्ष पूर्व सहरसा जिले के बनगाँव से इस उद्यम की शुरूआत हुई और आज आर्यागो कैब ने बिहार के सात बड़े जिलों तक अपने व्यवसाय का विस्तार कर दिया है। अबतक करीब साढ़े तीन सौ गाड़ियाँ इससे जुड़कर सेवारत हैं। प्रबंधन में करीब 26 लोगों की टीम कार्यरत है और लगभग 400 लोगों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से रोजगार मिल रहा है। पड़ोसी राज्य झारखंड में भी आर्यागो की परियोजनाओं को विस्तार देने का काम चल रहा है। बिहारी प्रतिभाएं जो क्विकर, उबर, एचसीएल जैसे उच्च पेशेवर कंपनियों के लिए काम कर रहे थे वो आज आर्यागो कैब के कार्यकारी टीम का हिस्सा बन रहे हैं। 2017 में भारत के प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जब स्टार्टअप उद्योगों को संबोधन करने वाले थे तब इनकी कंपनी का भी चुनाव हुआ था। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के द्वारा दिलखुश कुमार से व्यक्तिगत तौर पर बातचीत की थी।
पिछले लॉकडाउन के समय जब देश में यातायात का साधन पूर्णतः ठप था, तब यात्रियों को अपने घर तक पहुँचाने हेतु आर्यागो कैब ने बड़ी भूमिका अदा की थी। उस दौरान कुल डेढ़ हजार से भी ज्यादा राइड कंप्लीट की गई जिसमें अधिकांश दूसरे राज्यों से थे। तब कंपनी भी वाहन चालकों की कमी से जूझ रही थी। तीस से अधिक बार तो स्वयं दिलखुश ने लंबी दूरी की यात्रा में ड्राइविंग सीट संभाला था। 2020 के लॉकडाउन में जब पंचर बनाने तक की भी दूकानें बंद रहती थी तब मदुरै (तमिलनाडु) से सहरसा तक कुल 6500 किमी की राइड प्रदान करने का भी काम किया था। उस कालखण्ड में होने वाले राइड को ये सबसे जोखिमभरा बताते हैं क्योंकि न तो खाने-पीने के होटल खुलते थे और न ही कोई मोटर गैराज। लंबी राइड में खाने-पीने का सामान तो लोग साथ भी ले जा सकते हैं किंतु सफर के दौरान आकस्मिक तकनीकी खराबियों की मरम्मती के लिए तब कोई उपाय नहीं था।
बस ड्राइवर के पुत्र होने से अबतक के सफ़र की कहानी की शुरूआत कुछ ऐसी है__
इनके पिताजी रू 4500/- मात्र वेतन पाने वाले एक निजी पैसेंजर बस के ड्राइवर थे। इतनी कम आय में घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा था। घर की आर्थिक पीड़ा कम करने हेतु ये कोई भी छोटी-मोटी नौकरी करने के लिए तैयार थे। इसके लिए सहरसा में आयोजित एक जॉब मेले में अपना आवेदन दिया। इसके बाद पटना जाकर इंटरव्यू भी दिया परंतु वहाँ निराशा हाथ लगी। वापस आकर पिताजी की ही ख़ुशामद की कि वो इन्हें किसी तरह ड्राइवरी का काम सिखा दें ताकि ये भी ड्राइवर बनके कुछ धनोपार्जन कर सकें। इनके पिताजी को इन्हें एक कुशल ड्राइवर बनाने में लगभग एक माह से कुछ ज्यादा का समय लगा। इसके बाद श्री दिलखुश कुमार गाँव के ही एक धनाढ्य व्यक्ति की गाड़ी चलाकर दो पैसे कमाने लग गए। कुछ समय के बाद पुन: इन्होंने पटना का रूख किया और एक सेक्योरिटी कंपनी की नौकरी करने लगे। इस दौरान इनके सपनों ने कभी इन्हें स्थिर होने नहीं दिया। बार-बार इनकी अंतरआत्मा इन्हें कुछ बड़ा करने के लिए झकझोड़ती रही। तत्पश्चात वो एक कंस्ट्रक्शन कंपनी से जुड़कर छोटी-मोटी ठेकेदारी करने लगे। यहाँ ये थोड़े टिके रहे क्योंकि इस व्यवसाय से थोड़े पैसे जमा हो रहे थे। कुछ पैसे जोड़कर इन्होंने अपने लक्ष्य प्राप्ति का श्रीगणेश कर दिया।
चूँकि ड्राइवरी इन्हें विरासत में मिली थी इसलिए ये कुछ ऐसा रोजगार करना चाह रहे थे जिससे वाहनचालकों को एक सुनिश्चित रोजगार मिल सके। इसके लिए इन्होंने ऑनलाइन टैक्सी बुकिंग सर्विस स्टार्टअप यानि कैब सर्विस का काम करना ज्यादा श्रेयस्कर लगा। ओला और उबर जैसी बड़ी कंपनियाँ मात्र सिटी राइड सेवाएँ प्रदान करती हैं। ऐसे में इन्होंने एक ऐसे कैब सर्विस की परिकल्पना की जो गाँव-गाँव जाकर पैसेंजर को किसी भी शहर तक पहुँचाने की सुविधा प्रदान करे। (क्रमश:)
सक्सेस स्टोरी (2): जीरो से हीरो बने दिलखुश: और फिर सपनों की गाड़ी यूँ रफ़्तार से चल पड़ी...

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