सक्सेस स्टोरी (2): जीरो से हीरो बने दिलखुश: और फिर सपनों की गाड़ी यूँ रफ़्तार से चल पड़ी...

 (यदि आपने इस रिपोर्ट का पहला भाग अब तक नहीं पढ़ा हो तो इस लिंक पर पढ़ें: 
सक्सेस स्टोरी (1): जीरो से हीरो बने दिलखुश: कभी लोगों ने उड़ाया था मजाक, आज हुए नेशनल मीडिया में चर्चित )

सूचना क्रांति के इस युग में इन्टरनेट आधारित अभिनव व्यापार मॉडल यानि स्टार्टअप की कल्पना सामान्य लोगों के बूते और समझ से भी परे था। महानगरों में तो ये चलन में है। ओला और उबर के नाम से विख्यात कंपनियाँ एप आधारित सर्विस देने का काम करती हैं और बड़े शहरों में ऐसे व्यवसाय को मूर्त्तरूप देना आसान भी है परंतु सहरसा जैसे छोटे शहर में इसकी कल्पना कैसे की जा सकती है? कौन अपनी गाड़ी को टैक्सी के रूप में चलाने हेतु देगा? ऐसी टेक्नोलॉजी आधारित सेवाओं के लिए कुशल आइटी इंजीनियरों की भी आवश्यकता होती हैं, ऐसे लोग कहाँ मिलेंगे? इसमें जरूरी पूँजी की व्यवस्था कहाँ से होगी? 

ऐसी कई अनुत्तरित सवाल के साथ ये मैदान में उतर चुके थे। ठेकेदारी से कमाए हुए गिनती के कुछेक लाख रूपए संग थे और प्रचुर मात्रा में समाज के ताने भी। जिन वाहन मालिकों पास ये अपना प्लान लेकर जाते वो इन्हें मानसिक रूप से बीमार बताकर बाहर का रास्ता दिखा देते थे क्योंकि यहाँ प्राइवेट नम्बर में रजिस्टर्ड करके गाड़ी रेंट पर देने की परंपरा है। 

अंततः ठेकेदारी करके अर्जित किए हुए पैसों से इन्होंने दो सेकेंड हैंड गाड़ी खरीदी और खुद ही रेंट पर चलाने लगे। इनकी लगन देखकर कालांतर में कुछ और लोग इनसे जुड़कर इनके देखरेख में अपनी गाड़ियों को जोड़ा। इनसे जुड़ने के बाद वाहन मालिकों के लिए व्यवसायिक रूप से ये रिश्ता लाभप्रद सिद्ध हुआ और क्रम बढ़ता चला गया। समस्त प्रयास करके अंततः आर्यागो का पहिया चल पड़ा। 


इनके सपनों की गाड़ी तो चल पड़ी.. अब इसे रफ्तार देने के लिए कार्यकुशल लोगों की एक अच्छे टीम की जरूरत थी। जिसमें उच्च पेशेवर व व्यवसाय की सूक्ष्म समझबूझ वाले लोग चाहिए थे जैसे आईटी इंजीनियर, वेब डीजाइनर, एकाउन्ट्स मैनेजर, बिजनेस प्लानर, कॉस्ट मैनेजर, मार्केटिंग पर्सनेल इत्यादि इत्यादि। अलग-अलग शहरों में अपना ऑफिस सेटअप बनाने और अच्छे स्किल वाले लोगों को रखने के लिए भी पर्याप्त पूँजी की जरूरत थी। अब ये कहाँ से आएगा? ये सवाल बड़ा था। कहते हैं कि परिश्रम एक ऐसी कुँजी है जिसकी बदौलत परमात्मा भी अनुकंपा का द्वार खोल देते हैं। 

वर्ष 2017 में इनके स्टार्टअप को उद्योग विभाग, बिहार सरकार ने 'स्टार्टअप बिहार स्कीम' में शामिल कर लिया। सरकार की ओर से इनकी परियोजना को 'बीज पूँजी' के रूप में थोड़े धन की भी प्राप्ति हुई परंतु वो ऊँट के मुँह में जीरे के समान था। फिर भी इन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने दिन-रात अपने काम को बढ़ाने में जुटे रहे। बाद में इनके काम को बड़ी सूक्ष्मता से निरीक्षण कर कई इन्वेस्टर जुड़ते चले गए और दूसरे-तीसरे शहरों में आर्यागो कैब का विस्तार होता चला गया। 

वैसे तो बिहार के कई टैक्सी मालिक प्राइवेट नंबर रखकर वाहनों को भाड़े पर चलवाते हैं, इनकी संख्या भी बड़ी है परंतु ऐसे वाहन को भाड़े पर चलाने से सरकार को राजस्व की भी भारी क्षति होती है। जबकि आर्यागो कैब से जुड़े वाहन राज्य परिवहन विभाग से टैक्सी परमिट लेकर ही सर्विस देने का काम करती है। इससे सरकार को परमिट के रूप में राजस्व की प्राप्ति तो होती ही है साथ ही प्रत्येक राइड पर पाँच प्रतिशत की दर से सर्विस टैक्स भी मिलता है।

डिग्री बोले तो 'टैक्सी वाला' 

अपने शैक्षणिक योग्यता के बारे में पूछने पर दिलखुश बताते हैं कि किसी डिग्री का न होना अधिक लाभदायक है। जैसे डॉक्टर, इंजिनीयर, चार्टेड एकाउन्टेंट जैसे डिग्रीधारक अक्सर एक ही काम कर पाते हैं जबकि सामान्य पढ़ा-लिखा मनुष्य हर वो काम कर सकता है जो वो चाहता है.. "दिलखुश टैक्सी वाला" के नाम से विख्यात दिलखुश 'टैक्सी वाला' उपनाम को ही अपनी डिग्री मानते हैं। सामान्य पढ़ाई-लिखाई करके अपना उद्यम चला रहे दिलखुश बताते हैं कि उन्हें डिग्री पाकर नौकरी ढूंढने में कभी दिलचस्पी नहीं रही है बल्कि वो 'जॉब सीकर' न होकर 'जॉब क्रियेटर' बनने में विश्वास रखते हैं। यहाँ हर चौक-चौराहे पर आपको समाजसेवी, छात्र नेता, राजनीतिक दलों के चमचे-बेलचे मिल जाएंगे जो निरर्थक बातचीत में अपना संपूर्ण समय व्यतीत कर देते हैं परंतु उनलोगों के बीच उद्यमिता की चर्चा कभी नहीं होती। युवा बेफिज़ूल राजनीति में रहकर अपनी तरक्की से ज्यादा अपने राजनीतिक दलों की उन्नति के लिए अपनी उर्जा गंवाते हैं। इनका सपना है कि आने वाले समय में युवा सार्थक चीजों में लगें और इंटरप्रेन्योर बनें।

गुर सफलता के 

मधेपुरा टाइम्स से बात करते अपनी सफलता के संदर्भ में दिलखुश का कहना है कि कार्यकुशलता आपके व्यक्तित्व में होनी चाहिए। किसी भी व्यवसाय को सुचारू रूप से चलाने के लिए उत्कृष्ट व्यवसाय रचना बोध, गहन पर्यवेक्षणवृत्ति, सूक्ष्म दृष्टि, उत्तम टीम निर्माण की क्षमता, अच्छा समन्वयन ज्ञान, समय प्रबंधन तथा धैर्य इत्यादि का समावेश अत्यावश्यक है। इन सबके उपर ग्राहक ही सबसे बड़ा गुरू होता है। ग्राहकों से मिले फीडबैक पर अमल कर सेवाओं की गुणवत्ता सुधारना प्रबंधन की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। 

बिहार के समस्त ट्रांस्पोर्टेशन सिस्टम को एप्पलिकेशन बेस्ड बनाना इनके भविष्य की परियोजनाओं में शामिल है। पैसेंजर कार को एप बेस्ड सर्विस में समेटने के बाद समस्त पैसेंजर बस और फ्लीट ऑपरेटर जो असंगठित रूप से यत्रतत्र अपना कार्य करते हैं, उन्हें संगठित कर टेक्नोलॉजी आधारित सर्विस देने में ये अभी से लगे हुए हैं।

जाहिर है, दिलखुश जैसे युवा उन लाखों युवा के लिए प्रेरणा बन सकते हैं जिन्हें लगता है कि किसी क्षेत्र में सफलता एक असंभव जैसी बात है । बस वक्त न गवाएं, उठ खड़े होइए और सही रास्ता चुनकर तबतक चलते जाइए जबतक मंजिल आपके क़दमों के नीचे न हों, दिलखुश की तरह ।

सक्सेस स्टोरी (2): जीरो से हीरो बने दिलखुश: और फिर सपनों की गाड़ी यूँ रफ़्तार से चल पड़ी... सक्सेस स्टोरी (2): जीरो से हीरो बने दिलखुश: और फिर सपनों की गाड़ी यूँ रफ़्तार से चल पड़ी... Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on April 21, 2021 Rating: 5

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