गरीब-मजदूर वर्ग के लोगों के लिए सरकार नई योजना के तहत उन्हें आर्थिक एवं भोजन की समस्या को दूर कर रहे हैं. वहीं राजनीति दल के कार्यकर्ता, समाजसेवी एवं स्वयंसेवी संस्था भी इन गरीब-मजदूर की चिंता कर रहे हैं. इनलोगों द्वारा उन्हें जरूरी का सामान मुहैया करा रहे हैं. लेकिन कृषि प्रधान देश में अन्नदाता की सुधि लेने ना तो प्रशासनिक अधिकारी और ना ही समाजसेवी आगे आ रहे हैं. जिस कारण किसानों की समस्या दिनोंदिन बढती जा रही है.
रबी फसल की कटाई में अधिक देना पड़ा मजदूरी के बाद
जानकारी अनुसार जिले में बड़ी संख्या में किसान रबी की फसल करते हैं. किसानों के लिए रबी फसल सबसे महँगी फसल होती है. इस फसल को करने के लिए किसानों को अन्य फसल की तुलना में खेतों की अधिक सिंचाई एवं लागत लगाना होता है. जिस कारण किसान इस फसल पर ज्यादा निर्भर रहते हैं. लेकिन जब इलाके में रबी की फसल की कटाई प्रारंभ हुई तो कोरोना जैसे खतरनाक वायरस को लेकर लॉक डाउन की घोषणा कर दिया गया. जिस कारण खेतों तक मजदूर नहीं पहुंचे. उंचे खेतों की फसल किसान किसी तरह कटाई कर घर ले आये. लेकिन जब गहरे खेतों की कटाई प्रारंभ हुई तो मजदूर खेत जाने से मना करने लगे. जिस कारण किसानों को पहले की अपेक्षा अधिक मजदूरी देकर रबी फसल की कटाई करनी पड़ा. हालांकि इस दौरान किसान द्वारा सोशल डिस्टेंस का भी पालन किया गया.
नहीं बिक रहा अनाज चिंतित हैं किसान
रबी फसल की कटाई के बाद इलाके के 75 प्रतिशत किसानों ने फसल को तैयार कर लिया है. लेकिन उनका अनाज कोई लेने वाला नहीं है. घर की आवश्यकता पूरी करने के लिए किसान मात्र बारह सौ से चौदह सौ में प्रति क्विंटल अनाज बेचने को मजबूर हैं. वहीं रबी खेती के बाद किसान अपने खेतों में दलहन यानि कैश क्रॉप करते हैं. जिसके सिंचाई एवं बीज के लिए भी किसानों के पास राशि नहीं है. आमतौर पर यह किसान अपने अनाज को बेचकर ही महाजन का कर्ज अदा कर आगे की फसल करने की तैयारी में जुटते हैं. लेकिन हालात यह है कि कम कीमत पर भी अनाज गांव में कोई लेने वाला नहीं है. जबकि लॉक डाउन की वजह से बाजार की सभी मंडी बंद पड़ा है. इस हालत में किसान काफी चिंतित हैं और उनकी मुश्किलें बढती ही जा रही है. उन्हें यह भी चिंता सता रही है कि यदि समय से दलहन की खेती नहीं किया तो फसल अच्छी नहीं होगी. बीते दिन बारिश के बाद खेत में नमी आयी थी. जिस कारण खेत में मूंग की फसल करना काफी लाभदायक सिद्ध होता. लेकिन किसानों का खेत ही तैयार नहीं था जो किसान मूंग की बुआई करते.
सरकारी स्तर पर नहीं शुरू हुआ गेहूं खरीद
रबी फसल की तैयारी के बाद किसानों के लिए सरकार द्वारा पैक्स के माध्यम से गेहूं क्रय किये जाने की व्यवस्था की जाती है. लेकिन इस बार वह व्यवस्था अब तक जिले में कहीं नहीं हो सका है. किसानों के बताया कि सरकार के योजनाओं का धरातल पर मात्र 10 से 15 प्रतिशत किसानों को ही लाभ मिल पाता है. जिसमें वह किसान शामिल होते हैं, जो बड़े किसान हैं. जिनके पास हर प्रकार के संसाधन होता है. बताया कि इससे पूर्व भी निर्धारित समय से काफी देर से धान की खरीद प्रारंभ की गई. जिस कारण उनलोगों को खुले बाजार में कम कीमत पर धान बेचना पड़ा. बताया कि कई प्रकार सरकार की घोषणा काफी हास्यास्पद होता है. बताया कि लॉक डाउन के बीच राज्य के कृषि मंत्री द्वारा घोषणा किया गया कि धान की खरीद 30 अप्रैल तक की जायेगी. उन्हें किसानों का यह दर्द जानना चाहिए कि किसान के पास अब धान नहीं गेहूं है. सरकार पर आरोप लगाते कहा कि किसान वैसे बिजोलिया को फायदा पहुंचाने के लिए तिथि को बढाया जो बिचौलिया सरकारी दर पर धान नहीं बेच सके. कहा कि सरकार को किसानों की चिंता नहीं है.
कहते हैं जिला सहकारिता पदाधिकारी
इस बाबत जिला सहकारिता पदाधिकारी अरविंद कुमार पासवान ने बताया कि आमतौर पर गेहूं खरीद की तिथि 15 अप्रैल से 30 जून निर्धारित रहता है. इस बार लॉक डाउन की वजह से इस तिथि में फेरबदल संभव है. बताया कि इस बार गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1925 रूपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है. पैक्स के माध्यम से गेहूं खरीद की जायेगी. जिसके लिए तैयारी प्रारंभ कर दिया गया है. शीघ्र ही अंकेक्षित पैक्स पर गेहूं की खरीद प्रारंभ की जायेगी. बताया कि जिन पैक्स पर जन वितरण प्रणाली की दुकान संचालित है. उन पैक्स पर गेहूं खरीद नहीं की जायेगी. (नि. सं.)
लॉक डाउन का असर : अन्नदाता की बढ़ी मुश्किलें, दलहन की खेती व आर्थिक संकट जूझ रहे हैं किसान
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 17, 2020
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