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मिथिला क्षेत्र में पुरातन काल से ही शुभ एवम् मांगलिक अवसरों पर घर के पूजा-स्थल, कोहबर तथा दीवारों पर पारंपरिक मिथिला चित्र बनाने की परंपरा रही है. विशेषकर महिलाओं के द्वारा बनाए जाने वाली मिथिला शैली की पेंटिंग्स आज की पीढ़ी को भी रास आ रही है. हालांकि इस शैली की चित्रकला में अब कई पुरूष कलाकार भी सक्रिय हो रहे हैं परंतु पारंपरिक पुट देने में महिलाओं की कोई सानी नहीं है.
ग्रामीण पृष्ठभूमि के बावजूद विधा में समर्पित
ये सुखद है कि इस प्राचीन चित्रकला शैली को आगे बढ़ाने में आज की नई पीढ़ी भी सक्रिय है. सहरसा जिले के सरडीहा ग्राम के निवासी श्री मिथिलेश कुमार सिंह एवम् श्रीमती प्रतिमा देवी की सुपुत्री प्रियंका कुमारी मिथिला पेंटिंग्स की एक उभरती कलाकार हैं. ग्रामीण पृष्ठभूमि में पल-बढ़कर प्रियंका अपनी पढ़ाई के साथ साथ बचपन से ही इस विधा के प्रति समर्पित रही हैं. सरडीहा के ही सरकारी स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त कर प्रियंका आज पत्राचार के माध्यम से हिंदी विषय से स्नातकोत्तर कर रही है. प्रियंका को बचपन से ही चित्रकला से विशेष लगाव रहा है. पढ़ाई के साथ अपनी इस अभिरूचि को प्रियंका ने गंभीरता पूर्वक जारी रखा. इनकी लगन को देख इनके परिवार वालों ने भी इन्हें चित्रकला में काफी प्रोत्साहन दिया है.
अपने संबंध में प्रियंका बताती हैं कि चित्रकारी करना तो उन्होंने अपनी छोटी उम्र में ही प्रारंभ कर दिया था परंतु मिथिला चित्रशैली की प्रेरणा उन्हें अपनी बुआ श्रीमती मीनाक्षी सिंह से मिली. दरभंगा जिले के लहेरियासराय में रह रही अपनी बुआ को परंपरानुगत मिथिला शैली में कोहबर चित्रकारी करते देख प्रेरित हुई थी. तब प्रियंका काफी छोटी थी फिर भी तन-मन से इसके अभ्यास में जुट गई. आज इस विषय को समझने में प्रियंका ने गूगल और यूट्यूब जैसे माध्यमों से का भी सहारा लिया.
लगन से प्रशंसा बटोर रही है प्रियंका
बाद में प्रियंका के फाईन आर्ट के शिक्षक श्री शिंकु आनंद और श्री योगेंद्र योगी जी ने इन्हें इस कला को सीखाने में भरपूर मदद की. “जेडी इंस्टीट्यूट
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पारंपरिक लोककथाओं को अपने चित्रों में सजीवता से दर्शाना प्रियंका के चित्रकारी की विशेषता है. अल्पना, कोहबर चित्र, राम सीता विवाह प्रसंग इत्यादि को चित्रित करने में अब ये सिद्धहस्त हो गई हैं.
संसाधनों के अभाव में भी हुनर को दी पहचान
अब प्रियंका ने अपने हुनर का प्रयोग साड़ी और सिल्क के कपड़ों पर भी करना प्रारंभ कर दिया है जो अतिविशिष्ट है. इनके हाथों से सजे मिथिला शैली के विशेष परिधान अब स्थानीय लोगों द्वारा पसंद भी किए जा रहे हैं.
संसाधनों के अभाव के कारण कई बार प्रियंका हतोत्साहित भी हुई. सहरसा मुख्यालय से करीबन बीस किमी दूर सरडीहा गांव चित्रकारी जैसे विषयों के लिहाज से अत्यंत साधनहीन ही माना जाएगा परंतु अपनी बेटी के चित्रकारी के इस शौक को आगे बढ़ाने के लिए इनके घरवालों ने हरसंभव प्रयास किया है. प्रियंका के पिता जो पेशे से शिक्षक हैं उन्हें अपनी बेटी पर नाज़ है और कहा कि अपनी बेटी को आगे बढ़ाने में हर त्याग करने को तैयार हैं.
जाहिर है, कोशी में बेटियों के बढ़ते कदम न सिर्फ इन बेटियों. बल्कि पूरे इलाके को एक अलग ऊँचाई प्रदान कर रहे हैं, जिसपर हमें फख्र होनी चाहिए.
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Sunday Special: प्रियंका: संसाधनों के अभाव में मिथिला पेंटिंग्स में उभरती कोशी की एक अद्भुत कलाकार
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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July 08, 2018
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