भारत में क्रिकेट महज एक खेल

नहीं है; एक धर्म है, एक उत्सव है और भी ना जाने क्या क्या | अगर पाकिस्तान से मैच हो तो क्रिकेट एक युद्ध में बदल जाता है | देश में ऐसा जुनून किसी और खेल के लिए नहीं दिखता है |




क्रिकेटर यहाँ भगवान की तरह पूजे जाते हैं | इसलिए यहाँ लाखों बच्चे देश के लिए खेलना चाहते हैं | इन लाखों में 600-700 खिलाड़ी रणजी से लेकर आईपीएल तक खप पाते हैं और मुश्किल से 15 खिलाड़ी को इंडिया टीम में खेलने का मौका मिल पाता है | लेकिन इसके बाद जो खिलाड़ी बचते हैं उनकी जिन्दगी बहुत कठिन होती है | उन्होंने अपनी सारी उम्र खेलने में बितायी होती है लेकिन उन्हें अपनी जीविका के लिए खेल छोड़ कर कुछ और करना पड़ता है |
लेकिन आज 46 साल की उम्र में भी अपने कोशी कमिश्नरी का एक खिलाड़ी है जिसने तमाम संघर्ष करने के बाद भी खेलना नहीं छोड़ा | पत्नी का ताना हो या समाज की उपेक्षा, उन्हें डिगा नहीं पाया | उन्होंने अपना पहला मैच 1987 ईस्वी में 16 साल की उम्र में खेला | तब से लेकर वे आज तक खेल के मैदान में डटे हुए हैं | इस दौरान उन्होंने बिहार-बंगाल के इलाके में ऊँचे दर्जे की क्रिकेट खेली | शिवशंकर पाल और रिद्धिमान साहा जैसे अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी के साथ खेलने का मौका मिला | कुंदन सिंह एक ऐसे इलाके के


जब हम उनका इंटरव्यू करने पहुंचे तब भी वे अपने गाँव शंकरपुर (बलवा बाजार, सहरसा) के उसी मैदान में क्रिकेट मैच खेल रहे थे जिस मैदान में उन्होंने क्रिकेट का ककहरा सिखा | हमने उनसे उनके बचपन से लेकर अब तक के क्रिकेट जीवन के तमाम पहलुओं पर बात की | उनके बारे में एक किस्सा बहुत मशहूर है कि एक बार एक बैट्समैन उनकी गेंद की तेजी से इतना डर गया कि बैट-पेड सहित नदी में कूद गया | हमने इस किस्से की सच्चाई के बारे में भी उनसे जानने की कोशिश की | आप उनका पूरा इंटरव्यू यहाँ क्लिक करके सुन सकते हैं |
(रिपोर्ट: श्रीमंत जैनेन्द्र)
बिहार क्रिकेट का गुमनाम ‘धाकड़’ खिलाड़ी कुंदन सिंह
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
July 01, 2017
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