आदित्य कुमार आनंद: शतरंज के खिलाड़ी ने विपरीत परिस्थिति को दिया शह और मात (सिविल सेवा में चयनित किसान के बेटे का संघर्ष है प्रेरणादायक)

कुछ किए बिना ही  
 जय जयकार नहीं होती, 
 कोशिश करने वालों की  
 हार नहीं होती
            सोहन लाल द्विवेदी की इन पंक्तियों को जेहन में रखकर मधेपुरा के एक अत्यंत पिछड़े इलाके के आदित्य कुमार आनंद ने जो कुछ कर दिखाया वो जिले के लिए तो एक इतिहास बना ही, साथ ही शैक्षणिक रूप से सबसे नीचे के पायदान पर मौजूद इस कोसी के इलाके के उन लाखों छात्रों के लिए प्रेरणास्रोत बने, जो पूरी व्यवस्था को कोसकर परिस्थिति से समझौता कर हार मान लेते हैं.
     
मधेपुरा जिले के कुमारखंड थानान्तर्गत भतनी के सिकियाहा गाँव में आज भी हल चलाने वाले किसान श्री शम्भू प्रसाद यादव के खेत ने तो सोना नहीं उगला, पर उनकी मेहनत ने उनके बेटे आदित्य को तराश कर हीरा बना दिया. माँ श्री मती संजू देवी और बहन लवली और बबली भी आज फूले नहीं समा रहे हैं क्योंकि आदित्य ने सिविल सेवा 2014 की परीक्षा में 980वां रैंक लाकर इस परिवार को देश भर में चर्चित कर दिया. आज पिता और माँ के त्याग के लिए आदित्य के पास शब्द कम पड़ गए.
      आदित्य की सफलता असीमित है. परिस्थितियां हमेशा प्रतिकूल रहीं पर शतरंज के शौकीन आदित्य ने विपरीत परिस्थितियों को शह और मात दिया और आज अपनी एक अलग पहचान बना ली. मधेपुरा टाइम्स ने आदित्य से करीब घंटे भर विभिन्न पहलूओं पर बात की और पाया कि वो न सिर्फ मेधावी हैं बल्कि एक उम्दा इंसान भी और सिविल सेवा में देश को ऐसी ही शख्सियत की जरूरत है.

शैक्षणिक योग्यता: 8 अगस्त 1988 को जन्मे आदित्य कुमार आनंद की प्राथमिक शिक्षा गाँव के पास हरिबोला के आवासीय सौरभ शिशु निकेतन स्कूल में हुई और हाई स्कूल की शिक्षा मुरलीगंज के बलदेव लक्ष्मी हाई स्कूल में. वर्ष 2003 में मैट्रिक करने के बाद आनंद ने गणित से इंटरमीडिएट की परीक्षा टी.एन.बी. कॉलेज भागलपुर से पास की और फिर इतिहास से यहीं से ग्रैजुएशन भी किया. राजस्थान के IASE से इतिहास में पोस्ट-ग्रैजुएशन किया और नेट-जेआरएफ में भी इनका चयन हुआ.

सफलता का मूलमंत्र: सिविल सेवा की तैयारी से पहले तो आदित्य को यह लगता था कि सफल होने वाले छात्र कुछ अलग होते हैं, पर तैयारी के साथ-साथ जब दोस्तों का चयन होता गया तो आदित्य का आत्मविश्वास और बढ़ता गया. आदित्य का कहना है कि दूसरों की सफलता और अपनी असफलता से घबराना नहीं चाहिए और न ही निगेटिव सेंटिमेंट को हावी होने देना चाहिए, बल्कि खुद के मामले में भी उन्होंने हमेशा ये सोचा कि जब हम तैयारी में लगभग समान ही थे तो फिर मुझे सफलता क्यों नहीं मिलेगी. टेस्ट में उनसे कम अंक लाने वाले भी सफल हो रहे थे तो आदित्य का आत्मविश्वास और बढ़ रहा था. आदित्य कहते है कि सिविल सेवा ही नहीं जिंदगी के किसी भी क्षेत्र में patience और persevearance का होना सफलता के लिए बहुत आवश्यक है. सफलता का मूल मन्त्र लक्ष्य निर्धारित कर रणनीति बनाना और उस रणनीति को लागू करना ही है. डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को याद करते आदित्य कहते हैं कि आगे बढ़ने के लिए सफलता के साथ असफलता को भी मैनेज कीजिए.

व्यक्तित्व: आदित्य के व्यक्तित्व में सबल पक्ष जहाँ धैर्य है वहीं दुर्बल पक्ष कुछ ज्यादा ही इमोशनल होना और हर किसी पर भरोसा करना है. इस वजह से आदित्य को धोखे भी मिलते हैं, पर वे यह सोचकर शांत हो जाते हैं कि हो सकता है किसी परिस्थितिवश सामने वाले ने उन्हें धोखा दिया हो और बाद में उसे ये एहसास हो जाय.

इंटरव्यू: सिविल सेवा के लिए आदित्य का इंटरव्यू 29 मई 2015 को भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी मानवीर सिंह की बोर्ड में हुआ था. बिहार की परीक्षाओं में नक़ल के कारण क्या हैं, स्किल इण्डिया की क्या आवश्यकता है और आईएएस क्यों बनना चाहते हैं जैसे करीब ढाई दर्जन प्रश्नों के उत्तर बोर्ड को प्रभावित कर गए.

कब से करें तैयारी?: मधेपुरा और कोसी के इलाकों के छात्रों के लिए आदित्य कुछ अलग बात कहते हैं. उनका मानना है कि शैक्षणिक रूप से अत्यंत पिछड़े इस क्षेत्र के छात्रों को बचपन से ही पढ़ाई के बैकग्राउंड बनाने पर ध्यान देना चाहिए. पढाई सिर्फ अच्छे अंकों के लिए नहीं, बल्कि ज्ञान के लिए हो और यहाँ अभिभावकों की जिम्मेवारी सबसे ऊपर होनी चाहिए. चूंकि इलाके में पढ़ाई के माहौल की कमी है इसलिए जानकारों से सलाह लेना और बच्चों को अच्छे शिक्षक खोजकर देना अभिभावकों का काम है. परीक्षा में नक़ल की प्रवृत्ति को हमेशा हतोत्साहित करें.
      छात्रों को Writing skill और Thought process विकसित करना चाहिए. लिखने और सोचने की क्षमता यदि विकसित होगी तो तय मानिए सफलता आपके कदम चूमेगी.

आगे का सपना: सिविल सेवा में 980 रैंक लाने वाले आदित्य कहते हैं कि उन्हें एलाइड सर्विस के तहत कस्टम या रेलवे की सेवा ही मिलेगी जबकि डीएम बनकर किसी भी क्षेत्र की बेहतर सेवा की जा सकती है. अभी उनके पास चार चांसेज बचे हैं और उनका आगे का प्रयास जारी रहेगा. पर अपने क्षेत्र में स्कूली शिक्षा के हालात अच्छे नहीं होने की वजह से आदित्य मधेपुरा में एक उत्कृष्ट निजी विद्यालय खोलना चाह रहे हैं ताकि इस इलाके के छात्र को सही शिक्षा मिल सके और इलाके का विकास हो सके.
माँ-पिता, शिक्षक, बहन, दोस्त, गुड्डू मामा समेत अपने सभी परिजनों को अपनी सफलता का श्रेय देने वाले आदित्य कहते हैं कि उन्होंने शतरंज के खेल से बहुत कुछ सीखा है. खासकर यह कि अंतिम समय तक यदि आप धैर्य बनाकर रखते हैं तो असफलता को मात दे सकते हैं. आदित्य की सफलता की कहानी ये दर्शाती है कि आज न सिर्फ खेती कर सिर्फ बच्चों को पढ़ाई कराने का लक्ष्य रखे पिता शम्भू प्रसाद यादव का सपना सच हुआ है बल्कि कोसी और बिहार के उन लाखों छात्रों को भी ये प्रेरणा मिलती है कि:
रख तू दो-चार कदम ही सही,
मगर तबियत से
कि मंजिल खुद-ब-खुद
तेरे पास चल कर आएगी
ए हालात का रोना रोने वाले,
मत भूल कि तेरी तदबीर ही
तेरा तकदीर बदल पाएगी.
(रिपोर्ट: राकेश सिंह))
आदित्य कुमार आनंद: शतरंज के खिलाड़ी ने विपरीत परिस्थिति को दिया शह और मात (सिविल सेवा में चयनित किसान के बेटे का संघर्ष है प्रेरणादायक) आदित्य कुमार आनंद: शतरंज के खिलाड़ी ने विपरीत परिस्थिति को दिया शह और मात (सिविल सेवा में चयनित किसान के बेटे का संघर्ष है प्रेरणादायक) Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on July 12, 2015 Rating: 5
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