कर्म पूजा नहीं व्यक्ति पूजा का महत्त्व देने के कारण पिछड़ गया मधेपुरा: अतीत की बैशाखी के भरोसे न चलें बुद्धिजीवी

मधेपुरा एक अत्यंत पिछड़ा जिला है. एक बार आंकड़ों पर गौर कर लें फिर हम आते हैं मुद्दे की बात पर.
      भारत के लगभग 640 जिलों में सौ सबसे पिछड़े जिलों में मधेपुरा का स्थान आता है. मधेपुरा का नाम सौ उद्योगशून्य जिलों में आता है. मधेपुरा वैसे जिलों में से है जहाँ की साक्षरता दर 60% से कम है. मधेपुरा का नाम वैसे जिलों में है जहाँ 40% से ज्यादा भूमिहीन हैं और 50% से कम भूमि में सिंचाई होती है. यहाँ की नहरों में पानी नहीं है और आधी आबादी का जीवन स्तर औसत राष्ट्रीय जीवन स्तर से नीचे है.
      मधेपुरा के ग्रामीण इलाकों में अच्छे स्कूल और अस्पताल नहीं हैं. गाँवों में बाल विवाह, झाड़फूंक से मिर्गी और अन्य कई बीमारियों का इलाज, पूरे जिले में दहेज प्रताड़ना और हत्या बदस्तूर जारी है.
      अगर आजादी के बाद की स्थिति देखें तो शुरूआती दौर में मधेपुरा के विकास में कई लोगों की काफी महत्वपूर्ण भूमिका का पता चलता है. उन महान हस्तियों ने अपने कर्म से मधेपुरा को प्रगतिशील बनाया और एक रास्ता भी बनाया जिसपर उनके बाद के लोगों को चलने की आवश्यकता थी. कुछ लोग चले भी, पर गुमनाम हैं.
      जहाँ तक मेरा मानना है कि मधेपुरा की वर्तमान दुर्गति के पीछे कुछ बुद्धिजीवियों की मानसिकता हावी रही है जिन्होंने मधेपुरा के पुराने विकास पुरुषों के आदर्शों को अपनाकर उनके रास्ते पर चलना तो उचित नहीं समझा, पर उन्हें ही पूजकर मधेपुरा के विकास में अपनी भूमिका तलाशने लगे. भाषणबाजी का दौर शुरू हो गया और कार्यक्रमों, सेमिनारों आदि करवा कर, समाचारपत्रों में अपने उच्च मर्यादा दर्शाने वाले भाषणों के अंश छपवा कर ही अपने कर्मों की इतिश्री मानकर संतुष्ट होने लगे.
      शिक्षा किसी भी प्रगतिशील समाज के लिए सबसे आवश्यक तत्व है. पर मधेपुरा में शिक्षा का स्तर किसी से छुपा नहीं है. कदाचारमुक्त परीक्षा में 85 फीसदी छात्र यहाँ फेल कर जाते हैं. इस बात में शायद ही किसी निष्पक्ष व्यक्ति को शंका होगी कि मधेपुरा में भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय की 1992 में स्थापना के बाद से ही जोड़-तोड़ से जिसने भी यूनीवर्सिटी में अपनी पैठ बना ली, उच्चाधिकारियों के कृपा पात्र बनकर करोड़पति बन बैठे. जिन छात्रों के लिए विश्वविद्यालय में पैसे आते थे उसी के बल पर अपने बच्चों को दिल्ली और कोटा में पढ़ाने लगे और भांड में चला गया यहाँ के छात्रों का भविष्य. क्या भूपेंद्र नारायण मंडल, जिनके नाम पर विश्वविद्यालय है, उनका यही सपना रहा होगा ? क्या लाख रूपये सैलरी लेकर कॉलेजों में नहीं पढ़ाने और गुटबाजी और राजनीति करने वाले प्रोफेसरों को देखकर उनकी आत्मा आज रो नहीं रही होगी ? गत 29 मई को बीएनएमयू के नए वीसी ने जब पदभार संभाला तो उन्होंने उसी दिन मीटिंग्स की और प्रेस कॉन्फ्रेंस भी किया. विश्वविद्यालय की स्थिति सुधारने की पहल शुरू हुई. संयोग से उसी दिन महान शिक्षाविद भूपेंद्र नारायण मंडल की पुण्यतिथि भी थी. काम की व्यस्तता और और ध्यान बंट जाने के कारण उनकी प्रतिमा पर माला नहीं चढ़ा सके. बुद्धिजीवियों ने इस बात पर चिल्लपों शुरू कर दी कि अनर्थ हो गया, वीसी ने भूपेंद्र बाबू की प्रतिमा पर माला नहीं चढ़ाया. क्या यहाँ के लोगों के द्वारा उन्हें इस बात की याद नहीं दिलाना ये नहीं दर्शाता है कि तथाकथित बुद्धिजीवी जानबूझकर उनके खिलाफ कुछ बोलने का मौका खोज रहे थे ?
माफ कीजियेगा, पहले के अधिकाँश बुद्धिजीवियों ने माला चढ़ाने के अलावे किया क्या है ? क्या उन्होंने भूपेंद्र बाबू द्वारा स्थापित किये आदर्शों पर चलने का प्रयास किया है ? नहीं, उनकी सिर्फ यही मंशा रही कि कार्यक्रम आदि करते रहें और पद पर विराजमान होकर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करते रहें.
      यही वजह है कि छात्रों की पढ़ाई चौपट हो गई और आंदोलन करना छात्रों की लाचारी बन गई. इन तथाकथित व्यक्तिपूजा और मूर्तिपूजा के उपासक बुद्धिजीवियों की वजह से मधेपुरा सिर्फ अतीत की बैशाखी से सहारे चल रहा है. ऐसे में जिले में जो नहीं होना चाहिए, यदि वो हो रहा है तो उसमें आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए.
      वक्त है आत्मचिन्तन और आत्ममंथन करने की, और फिर कुछ ठोस करने की, जिससे मधेपुरा विकास के रास्ते पर फिर से चल पड़े.
कर्म पूजा नहीं व्यक्ति पूजा का महत्त्व देने के कारण पिछड़ गया मधेपुरा: अतीत की बैशाखी के भरोसे न चलें बुद्धिजीवी कर्म पूजा नहीं व्यक्ति पूजा का महत्त्व देने के कारण पिछड़ गया मधेपुरा: अतीत की बैशाखी के भरोसे न चलें बुद्धिजीवी Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on June 15, 2014 Rating: 5

3 comments:

  1. Madhepura kuch sal pehle tak sadak aur rail marg ke mamle mein kafi pichda tha aur ye railway ke main line pe nahi hai ...na hi yahan kabhi koi industry rahi hai..ek University bhi hai jo kewal administration ke liye hai aur Madhepuraura eductaion hub bhi nahi ban paya..Madhepura ka vikas tabhi ho sakta hai jab yahan bahar se ache doctor aur professional , business man ayenge.. university mein pure Bharat se ache Professor laye jayein.. Madhepura ko punji niwesh aur baudhik niwesh dono ki zaroorat hai.

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  2. नवभारत टाइम्स के ब्लॉग पर आरक्षण के विषय में कुछ लेख पढ़ने को मिले और उन्हीं लेखों ने मुझे ये लेख लिखने को प्रेरित किया , जब बात आरक्षण की होती है तो सब भारतीय संविधान द्वारा अनुसूचित-जाति, जनजाति एवं अतिपिछड़ा वर्ग को मिले उस आरक्षण या विशेष अधिकारों की ही बात करतें हैं जिन्हें लागू हुए मुश्किल से 60 वर्ष ही हुए हैं ,कोई उस आरक्षण की बात नहीं करता जो पिछले 3000 वर्षों से भारतीय समाज में लागू थी
    जिसके कारण ही इस आरक्षण को लागू करने की आवश्यकता पड़ी आज ''भारतीय गणराज्य का संविधान'' नामक संविधान, जिसका हम पालन कर रहें है जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ उससे पहले जो संविधान इस देश में लागू था जिसका पालन सभी राजा-महाराजा बड़ी ईमानदारी से करते थे उस संविधान का नाम था ''मनुस्मृति''
    आधुनिक संविधान के निर्माता अंबेडकर ने सबसे पहले 25 दिसंबर 1927 को हज़ारों लोगों के सामने इस ''मनुस्मृति'' नामक संविधान को जला दिया, क्योंकि अब इस संविधान की कोई आवश्यकता नही थी भारतीय संविधान में आरक्षण का प्रावधान इसलिए दिया गया क्यूंकि इस देश की 85 प्रतिशत शूद्र जनसंख्या को कोई भी मौलिक अधिकार तक प्राप्त नहीं था, सार्वजनिक जगहों पर ये नहीं जा सकते थे मंदिर में इनका प्रवेश निषिद्ध था सरकारी नौकरियाँ इनके लिए नहीं थी , ये कोई व्यापार नहीं कर सकते थे , पढ़ नहीं सकते थे , किसी पर मुक़दमा नही कर सकते थे , धन जमा करना इनके लिए अपराध था , ये लोग टूटी फूटी झोपड़ियों में, बदबूदार जगहों पर, किसी तरह अपनी जिंदगियों को घसीटते हुए काट रहे थे और यह सब ''मनुस्मृति'' और दूसरे हिंदू धर्मशास्त्रों के कारण ही हो रहा था कुछ उदाहरण देखिए-
    1.संसार में जो कुछ भी है सब ब्राह्मणों के लिए ही है क्यूंकि वो जन्म से ही श्रेष्ठ है(मनुस्मृति 1/100)
    2.स्वामी के द्वारा छोड़ा गया शूद्र भी दासत्व से मुक्त नहीं क्यूंकि यह उसका कर्म है जिससे उसे कोई नहीं छुड़ा सकता (8/413)
    3.यदि कोई नीची जाति का व्यक्ति ऊँची जाति का कर्म अपना ले तो राजा उसे देश निकाला देदे (10/95)
    4.बिल्ली, नेवला चिड़िया मेंढक, गधा, उल्लू, और कौवे की हत्या में जितना पाप लगता है उतना ही पाप शूद्र (अनुसूचित-जाति, जनजाति एवं अतिपिछड़ा वर्ग) की हत्या में है (मनुस्मृति 11/131) 
    5.शूद्र का धन ब्राह्मण निर्भीक होकर छीन सकता है क्यूंकि उसको धन रखने का अधिकार नहीँ (8/416)
    6. सब वर्णों की सेवा करना ही शूद्रों का स्वाभाविक कर्तव्य है (गीता,18/44)
    7. जो अच्छे कर्म करतें हैं वे ब्राह्मण ,क्षत्रिय वश्य, इन तीन अच्छी जातियों को प्राप्त होते हैं जो बुरे कर्म करते हैं वो कुत्ते, सूअर, या शूद्र जाति को प्राप्त होते हैं (छान्दोन्ग्य उपनिषद् ,5/10/7)
    8. पूजिए विप्र ग्यान गुण हीना, शूद्र ना पूजिए ग्यान प्रवीना,(रामचरित मानस)
    9.ब्राह्मण दुश्चरित्र भी पूज्‍यनीए है और शूद्र जितेन्द्रीए होने पर भी तरास्कार योग्य है (पराशर स्मृति 8/33)
    10. धार्मिक मनुष्य इन नीच जाति वालों के साथ बातचीत ना करें उन्हें ना देखें (मनुस्मृति 10/52)
    11. धोबी , नई, बढ़ई, कुम्हार, नट, चंडाल, दास चामर, भाट, भील, इन पर नज़र पड़ जाए तो सूर्य की ओर देखना चाहिए और इनसे बातचीत हो जाए तो स्नान करना चाहिए (व्यास स्मृति 1/11-13)
    12. अगर कोई शूद्र वेद मंत्र सुन ले तो उसके कान में धातु पिघला कर डाल देना चाहिए- गौतम धर्म सूत्र 2/3/4....
    ये उन असंख्य नियम क़ानूनों के उदाहरण मात्र थे, जो आज़ाद भारत से पहले देश में लागू थे ये अँग्रेज़ों के बनाए क़ानून नहीं थे ये हिंदू धर्म द्वारा बनाए क़ानून थे जिसका सभी हिंदू राजा पालन करते थे प्रारंभ में तो इन्हें सख्ती लागू करवाने के लिए सभी राजाओं के ब्राह्मणों की देख रेख में एक विशेष दल भी हुआ करता था
    इन्ही नियमों के फलस्वरूप भारत में यहाँ की विशाल जनसमूह के लिए उन्नति के सभी दरवाजे बंद कर दिए गये या इनके कारण बंद हो गये, सभी अधिकार, या विशेष-अधिकार, संसाधन, एवं सुविधायें कुछ लोगों के हाथ में ही सिमट कर रह गईं, जिसके परिणाम स्वरूप भारत गुलाम हुआ।
    अभिमन्यु यादव

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