आंगनबाड़ी घूसतंत्र: मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी ?

|वि० सं०|21 नवंबर 2013|
कहते हैं कि जिले में आंगनबाड़ी में रिश्वतखोरी पहले की तरह चल रही है. सीडीपीओ के द्वारा प्रति केन्द्र 1200/- रू० के आसपास पूरे जिले से वसूल किये जा रहे हैं. घूसशास्त्र के जानकारों का मानना है कि अन्य विभागों की रिश्वतखोरी पर भले ही नियंत्रण स्थापित किया जा रहा है लेकिन आंगनबाड़ी में इसे रोकना आसान नहीं है. क्यों नहीं है आसान जबकि नए जिलाधिकारी के आने के बाद बहुत सारे विभागों की रिश्वतखोरी में कमी आने की सूचना है ? आईये पहले कुछ आंगनबाड़ी के विषय में सतही जानकारी लेते हैं.
आंगनबाड़ी का सामान्य ज्ञान: मधेपुरा जिले के 13 प्रखंड में संचालित होने वाले आंगनबाड़ी के प्रत्येक केन्द्र के लिए सेविका को मानदेय 3 हजार रूपये मिलते हैं, जबकि टीएचआर (टेक होम राशन) के लिए 16275 रू०. टीएचआर की राशि और केन्द्र पर बच्चों की संख्यां ही आंगनबाड़ी के जारी घूसखोरी की जड़ है. टीएचआर की ये राशि बच्चों और अन्य लाभुकों में वितरण के लिए होती है. एक आंगनबाड़ी केन्द्र पर 40 से अधिक बच्चों को इस योजना का लाभ दिलाने की केन्द्र सरकार की मंशा रही थी. पर यदि आप मधेपुरा जिले के आंगनबाड़ी केन्द्रों का दौरा करें तो आपको सबकुछ पता चल जाएगा. बहुत से केन्द्र ऐसे हैं जहाँ दस-बीस बच्चे की आते हैं जबकि कागज़ पर इनकी संख्यां चालीस के आसपास है. मतलब टीएचआर में भारी बचत. कागजों पर हिसाब को खलास दिखाया जाता है. सीडीपीओ महोदया जानती हैं कि अधिकाँश केन्द्रों की सेविका को महीने में औसतन 8-9 हजार रूपये बच जाते हैं. सेविका भी इस बात को जानती है कि यदि सीडीपीओ साहिबा ने जांच कर केन्द्र पर कम बच्चे लिख दी तो उनका सेंटर बंद हो सकता है. तो फिर बचत में से मात्र 1200 रू० ही तो उन्हें देना है. आपसी सहमति से हो रही रिश्वतखोरी को पकड़ना काफी मुश्किल है, क्योंकि पीड़ित पक्ष शिकायत ही नहीं करेगा. और यहाँ पीड़ित पक्ष है कहाँ, सरकार की योजना को रसातल में पहुंचाने में दोनों पक्षों को फायदा है. काठ का उल्लू साबित हो रही लेडी सुपरवाइजर ने यदि जांच कर रजिस्टर पर कम बच्चों की उपस्थिति दर्शा ही दी, तो क्या फर्क पड़ता है? सीडीपीओ ने केन्द्र की रिपोर्ट फेवर में लिख दी तो ऊपर के अधिकारी भी उसे मान लेते हैं. मतलब मियां-बीबी राजी, तो क्या करेगा काजी? सीडीपीओ-सेविका गठबंधन सरकार में एलएस की भूमिका कमजोर विपक्षी की तरह साबित हो रही है. वैसे कई जगह इन्हें भी थोडा-बहुत चखा दिया जाता है जिसे ये सत्यनारायण भगवान का प्रसाद समझकर चुपचाप ग्रहण कर लेती हैं.
क्या हो सकता है उपाय: जानकार के मुताबिक़ सिर्फ एक उपाय से ही आंगनबाड़ी की घूसखोरी बंद हो सकती है. केन्द्र पर यदि बच्चों की संख्यां की सही जांच बड़े अधिकारी खुद करें या अपने ईमानदार सहयोगी से करवाएं और उस आधार पर कार्यवाही की जाय तो मामला नियंत्रित हो सकता है. यदि केन्दों पर पूरे बच्चे उपस्थित होंगे तो जाहिर है टीएचआर के पैसे बचाए नहीं जा सकेंगे. और जब बचत ही नहीं तो फिर कमीशन का ओमिशन स्वत: हो जाएगा.
आंगनबाड़ी घूसतंत्र: मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी ? आंगनबाड़ी घूसतंत्र: मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी ? Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on November 21, 2013 Rating: 5

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