थानाध्यक्ष की कार्यशैली पर उठे सवाल: घटना तीन, एक एफआईआर

|नि.प्र.|28 अप्रैल 2013|
मधेपुरा सदर थाना ने अपराध नियंत्रण और मुकदमों की संख्यां कम करने का एक नायाब तरीका ढूंढ निकाला है. तीन अलग-अलग दिनों में हुई मोटरसायकिल चोरी की तीन घटनाओं का पुलिस ने एक ही एफआईआर दर्ज किया है. हैरत की बात ये है कि मधेपुरा थाना कांड संख्यां 225/2013 के सूचक फुलकाहा, गम्हरिया निवासी अरविन्द कुमार ने खुद के मोटरसायकिल बजाज डिस्कवर (BR 50 B- 2837) के 25 अप्रैल को चोरी होने की बात तो लिखकर थाना में दिया ही है साथ ही उसने लिखित आवेदन में यह भी लिखा है कि जब वह मधेपुरा थाना आया तो उसे पता चला कि 26 अप्रैल को बभनी, गम्हरिया के बालकृष्ण यादव की भी मोटरसायकिल (BR 43 C 2017) चोरी हुई है. यही नहीं उसे यह भी पता चला कि दाहा, गम्हरिया के कपिल कुमार की भी स्प्लेंडर मोटरसायकिल (BR 43 C 3375) चोरी हुई है. इसी आवेदन के आधार पर सदर थाना के पुलिस पदाधिकारी ने तीनों मोटरसाइकिल चोरी की घटना का एक ही प्राथमिकी तैयार कर दिया. एफआईआर की सबसे बड़ी कमी यह है कि सूचक अरविन्द कुमार के अलावे इस पर बाक़ी दोनों पीडितों के हस्ताक्षर तक नहीं हैं और घटना की तिथि 25.04.2013 से 27.04.2013 तक दर्शाई गई है.
      क्या कहता है क़ानून: बता दें कि एक एफआईआर (फर्स्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट) में एक ही घटना अंकित किया जाता है. दंड प्रक्रिया संहिता के धारा 154 (1) के मुताबिक संज्ञेय अपराध की सूचना सूचक के द्वारा दिए जाने पर पुलिस अधिकारी उस पर मामला दर्ज करेगा जबकि धारा 154 (2) के मुताबिक दर्ज सूचना की प्रति तुरंत ही बिना खर्च के सूचक को उपलब्ध कराई जायेगी.
जबकि इस एक प्राथमिकी में थाना को तीन अलग-अलग व्यक्तियों (सूचकों) ने अलग-अलग घटनाओं से सम्बंधित सूचना दी थी.
      मधेपुरा थानाध्यक्ष के.बी. सिंह के द्वारा तीन व्यक्तियों की शिकायत एक व्यक्ति से ही लिखवा लेने पर एक बड़ा सवाल दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 (2) के पालन को लेकर यह खड़ा होता है कि जब यहाँ सूचक एक ही व्यक्ति है तो दर्ज शिकायत की प्रति यदि सूचक अरविन्द कुमार को दी जाती है तो बाक़ी दो पीड़ित व्यक्ति के द्वारा दिए सूचना का हश्र क्या हुआ ? और यदि इसी दर्ज शिकायत की प्रति सभी तीनों को दी गई है तो बाक़ी दो पीडितों को सूचक न बनाया जाना भी कानून के साथ खिलवाड़ जैसा ही प्रतीत होता है. हालांकि इसी में से एक अन्य पीड़ित कपिल कुमार ने भी मधेपुरा थाना को अपने मोटरसायकिल चोरी की लिखित सूचना दी है जिस पर मामला दर्ज नहीं किया गया है और अब यदि दर्ज किया भी जाता है तो एक ही घटना को दो एफआईआर में अंकित करना हास्यास्पद हो जाएगा.
      यही नहीं इस मामले में अनुसंधानकर्ता के माथे भी बल पड़ सकते हैं और भविष्य में न्यायालय में गवाही या आगे कि प्रक्रिया में भी काफी मुश्किलें आ सकती है जब एक ही मुकदमें में तीन अलग घटनाओं में गवाह अलग-अलग कहानी सुनायेंगे और वाद में निर्णय पारित करना भी कठिन हो सकता है. आशंका इस बात की भी बनती है कि न्यायालय ऐसे प्राथमिकी पर आपत्ति भी दर्ज कर दे.
      कुल मिलाकर मधेपुरा थानाध्यक्ष की कार्यशैली क़ानून सम्मत नही प्रतीत होती है. और मधेपुरा पुलिस के इस नए ट्रेंड पर तो हम यही कहेंगे कि वे सप्ताह भर की हत्याओं का एक ही एफआईआर दर्ज करें या फिर साल भर लिखित आवेदन को जमा कर साल के अंत में ही एक किस्म के सभी अपराधों का एक ही एफआईआर दर्ज करें ताकि केशों की संख्यां दस-बीस से ज्यादा न हो और वे कह सकें कि अपराध नियंत्रण हो रहा है.
      वैसे एसडीपीओ (होम) द्वारिका पाल के संज्ञान में यह मामला लाने पर उन्होंने जांच कर कार्यवाही का आश्वासन दिया है.
थानाध्यक्ष की कार्यशैली पर उठे सवाल: घटना तीन, एक एफआईआर थानाध्यक्ष की कार्यशैली पर उठे सवाल: घटना तीन, एक एफआईआर Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on April 29, 2013 Rating: 5

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