बलात्कारी भी किसी माँ का बेटा और बहन का ही भाई होता
है. तो आखिर वे कौन से कारण और कौन सी परिस्थितियां होती है कि इस बेटे और
भाई के मन में किसी और की माँ-बहन के प्रति
विकृति पैदा हो जाती है ?
क्या परवरिस या सामाजिक वातावरण या फिर कुछ और ??? मर्ज
खतरनाक हो तो इलाज के लिए डायग्नोसिस जरूरी है.
आइये हम कुछ इसके तह में जाने का प्रयास
करें. मधेपुरा टाइम्स के द्वारा उठाये
इस मुद्दे पर हमारे पाठक डब्बू भारती (पूर्णियां) की रिपोर्ट:
बलात्कारी भी किसी माँ का बेटा और बहन का
भाई ही होता है। शिक्षा किसी भी घर
(अनपढ़ या शिक्षित ) में ख़राब-से-ख़राब नहीं दी
जाती है. लेकिन लोगों
(अभिभावकों ) में अपने संतानों के द्वारा किये जाने वाले गलत व्यवहार (नैतिक, सामाजिक या
अन्य किसी स्तर पर) को
नजरअंदाज करने की लत ही ऐसी अनेक समस्या का प्रमुख कारण है, ऐसा मेरा मानना है। शायद ऐसा कोई
घर नहीं है इस दुनिया में जिस घर में महिला का अस्तित्व नहीं
हो, लेकिन फिर भी, महिला आज भी हमारे भारतीय समाज में पुरुषों की तरह स्वछंद जीवन-यापन नहीं कर पा रही है। मर्यादा की पाठ
की शिक्षा सिर्फ महिलाओं या
कमजोरों तक ही सीमित होकर रह गया है, हमारे इस भारतीय समाज में.
इस भारतीय समाज में मौजूद या नए-नए पनपने
वाले आधुनिक संस्कृति के पोषक मनुष्यों,
परिवारों
और समाज ने अपने चाल-ढाल, रहन-सहन से एक ऐसी दूरियाँ बढ़ाने का काम कर रही है जो नारी
उत्पीडन जैसी समस्या को और विकराल बना रही है। इस नए आधुनिक
समाज में आजकल लिव इन रिलेशनशिप का दौर चल रहा है. पता नहीं ये
रिलेशनशिप कैसा है और ये क्यूँ जरूरी है, कुछ लोगो के लिए। लेकिन ये भी देखना होगा
की आज हमारे देश में पुरुषों की आबादी करोड़ो में है, लेकिन ये बलात्कार की
घटना करोड़ो में नहीं होती है, यहाँ तक की
लाखों में भी नहीं होती। कुल मिलाकर ये हजारों में होती है वो भी पूरे देश में। जिससे ये पता लगता है ऐसी
मानिसकता वाले लोगों की संख्या काफी कम है, कभी -कभी ऐसी वारदात एक सुनियोजित
तरीके से होती है तो कभी-कभी अकस्मात भी। इन सब घटना के कई कारण विद्यमान हैं हमारे समाज में. इसके लिए महिला और पुरुष दोनों जिम्मेदार है, लेकिन ज्यादा
सहभागिता या गलतियाँ प्राय: पुरुषों के द्वारा ही की जाती
रही है। महिलाओ को भी
अपने पहनावा या अन्य कई सार्वजनिक गतिविधि ऐसी रखनी चाहिए की एक
श्रधा का भाव छलके ना की उत्तेजना का। कभी-कभी सहमति
के आधार पर बनाये गए संबंध के बाद आने वाली असहमति, इसी सहमति-असहमति को बलात्कार का
रूप भी दे दिया जाता है महिलाओ के ओर से। दिखावापन और छद्म परिवेष आजकल पूरी संस्कृति को दीमक के तरह चट कर रही है। नैतिकता और ईमानदारी को किनारे कर आगे बढ़ने की प्रवृति ही ऐसी असभ्य, गवांर और विकृत गतिविधियों को बढ़ावा दे रही है। नि:संदेह ही कहा जा सकता है की मानव जितना बुद्धिमान है उतना ही विनाशक भी। इसलिए ऐसे मानव
को सामने आना होकर डटकर जो शिक्षित नहीं बुद्धिजीवी सोच
वाले हो। बुद्धिजीवी कोई
भी हो सकता है एक शिक्षित भी और अनपढ़ भी।

(यदि आपके मन में भी इस
मुद्दे पर कुछ विचार आते हों तो हमें लिखकर madhepuratimes@gmail.com पर भेजें)
बलात्कारी भी होता है किसी माँ का बेटा और बहन का भाई
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
January 22, 2013
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