मधेपुरा संसदीय क्षेत्र में अचानक सत्ताधारी दल के कई
लोगों के मूछों का ताव नरम पड़ चुका है. कारण इसी 27 नवंबर को हमारे सांसद माननीय
शरद यादव की बेटी की दिल्ली में होने वाली शादी है. उनके चाहने वालों और नजदीकी
होने का दावा करने वालों के इस शादी में शामिल होने के मंसूबों पर पानी फिर चुका
है. शरद ने उन्हें शादी का कार्ड ही नही भेजा. यानी ‘नो निमंत्रण’. जबकि खबर है कि मधेपुरा में
मात्र 6 लोगों के नाम कार्ड ‘स्पीड पोस्ट’ से आया है जिन्हें अब कार्ड न पाने वाले जदयू कार्यकर्ता
घूर-घूर कर देख रहे हैं. चर्चा आम है कि क्या 21 साल क्षेत्र में प्रतिनिधित्व
करने वाले सांसद महज वोट के लिए यहाँ के कार्यकर्ताओं से बातें करते हैं? क्या
उन्हें इन उपेक्षित कार्यकर्ताओं से कभी आत्मीयता का बोध नहीं हुआ जो वे इन्हें
अपनी बेटी की शादी में भी भूल गए ? रेल आदि मुद्दों पर तो सांसद महोदय ने इस क्षेत्र
को उपेक्षित बना ही रखा है और अब निमंत्रण न मिलने से भी उनके कई कार्यकर्ताओं में
मायूसी दिख रही है. शरद के कुछ समर्थक भले ही इसका कारण ये बता दें कि
शादी सादगी से होने जा रही है इसलिए कम लोगों को बुलाया जा रहा है पर खबर है कि इस
शादी के लिए करीब तीस हजार कार्ड बांटे जा चुके हैं.
लोगों का यह भी कहना है कि मधेपुरा से पूर्व में सांसद रहे लालू यादव अब भी
अपनी बेटियों की शादी में मधेपुरा के सैंकड़ों लोगों को आमंत्रित करते हैं.कल तक
शरद यादव के घोर प्रशंसक रहे जदयू के एक नेता ने तो अब यहाँ तक कह कह दिया कि बाहर
के नेता का यहाँ के लोगों से आत्मीय लगाव नहीं हो सकता बल्कि वे सिर्फ अपना उल्लू
सीधा करने यहाँ आते हैं. फिर भी बहुत से कार्यकर्ताओं का कहना है कि बेटी की शादी
है ,उनकी बेटी हमारी बेटी है हमारी शुभकामनाएं उनके साथ है.
मालूम
हो कि मधेपुरा के सांसद शरद यादव की बेटी सुभाषिनी की शादी इसी 27 नवंबर को जदयू
की हरियाणा इकाई के अध्यक्ष कमलवीर के बेटे राजकमल राव से होने जा रही है. कहते
हैं कि इस शादी में समधी ने शरद यादव से दहेज के रूप में एक रूपया की मांग की है. शादी
दिल्ली में संपन्न होगी.
मधेपुरा में 21 वर्षों में सिर्फ 6 लोगों को अपना समझा सांसद शरद ने ?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
November 25, 2012
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ye to galat bat hi mantri ji shadi ke liye am publik ka diyan nahi de rahe he
ReplyDeleteआज मधेपुरा से सांसद शरद यादव की बेटी की शादी है। एनडीए के संयोजक एवं जद(यू) अध्यक्ष शरद यादव ने करीब तीस हजार निमंत्रण पत्र बांटे हैं। अजीब संयोग है की इसमें मधेपुरा के मात्र 6 लोग हैं। दरअसल, शरद यादव मधेपुरा के हैं ही नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश के जबलपुर से हैं। 1974 में जय प्रकाश नारायण के आन्दोलन के शुरुआत में हीं वहां से संयुक्त विपक्ष के समर्थन पर संसद सदस्य चुने गए। फिर वहां से कभी नहीं जीत पाए। तब उन्होंने अपना भाग्य बदायूँ (उत्तर प्रदेश) से अजमाया। परन्तु मुलायम सिंह यादव से तालमेल नहीं होने पर वहां से भी हार गए। इस दौरान 1991 में मधेपुरा लोक सभा क्षेत्र में उप-चुनाव था। मंडल राजनीती के अंतर्गत लालू प्रसाद इन्हें मधेपुरा से टिकट देकर जितवाए। फिर यहीं से सांसद बनते रहें हैं। मधेपुरा में ज़मीन खरीदे हैं, लेकिन संसद में इनका पता 7, तुग़लक रोड, नई दिल्ली ही है। मधेपुरा इनका राजनैतिक उपनिवेश और वहां की जनता इनके राजनैतिक ग़ुलाम! चुनाव जीतने की चाभी, यानि अथाह धन बल इनके पास है, इसलिए सांसद बनते रहते हैं। कह सकते हैं शरद यादव ऐसी गाय हैं जो मधेपुरा में चरते हैं, और जिसका थन दिल्ली में है!
ReplyDeleteSuraj babu ye unka personal mamla hai..aap MP Sharad Yadav pe comment karein, PITA Sharad Yadav pe nahi..
ReplyDeleteReplying to a Comment that considering Sharad Yadav to be an outsider to Madhepura, would be Thakre kind of statement -
ReplyDeleteशरद यादव जहाँ से भी आये हों इससे मधेपुरा के निवासियों को मतलब नहीं है। जहाँ तक मधेपुरा का प्रश्न है, यह लगभग सौ वर्षों से सामाजिक न्याय का केंद्र रहा है, जहाँ रासबिहारी लाल मंडल जैसे शेर ने न सिर्फ 1911 में पूरे भारत की पहली गोप जातीय महासभा की स्थापना की, अंग्रेजों से लड़े और 1908 से अपने 1918 में अपनी मृत्यु तक बिहार से कांग्रेस के संस्थापक सदस्य और AICC सदस्य रहे। शिवनंदन प्रसाद मंडल बिहार के पहले कानून मंत्री एवं सामाजिक न्याय के प्रणेता, पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष और बिहार के पहले पिछड़े वर्ग मुख्यमंत्री स्व बी पी मंडल आदि भी मधेपुरा से हीं थे। यहाँ कहीं से नेता के आयात की आवश्यकता नहीं थी। परन्तु मंडल राजनीती में योगदान के लिए मधेपुरा के लोगों ने उन्हें चुन कर संसद भेजा। लेकिन बदले में मधेपुरा के लोगों का इन्होने बराबर अपमान किया है। यहाँ तक की इस 'राष्ट्रिय नेता' के नई दिल्ली स्थित घर में भी मधेपुरा-वासी आसानी से प्रवेश नहीं कर सकते हैं। मधेपुरा में रेल लाईन के छोटी से बड़ी लाईन की परिवर्तन तीन महीने में होनी थी, जो अब पांच वर्ष में भी पूरा नहीं हुआ है। मधेपुरा रेल यातायात से वंचित है, लेकिन ये राष्र्टीय नेता एक बार भी इस मुद्दे पर संसद में जिक्र नहीं किया है। आश्चर्य है की यह एक बार भी संसद में 'मधेपुरा' नहीं बोला है। दूरदर्शन टावर भी हटाया जा रहा है, और ऍफ़ ऍम रेडिओ के लिए एक पत्र लिखना था, उसके लिए इसे समय नहीं है। पिछले 20 वर्षों से इस महानुभाव के कारण मधेपुरा में कुछ भी नहीं हुआ है। मधेपुरा कुल मिलकर इस 'राष्ट्रिय नेता' के सांसद रहते, सबसे पिछड़ा क्षेत्र बना हुआ है। ऐसी स्थिति और मधेपुरा वासियों के प्रति तिरस्कार होने के बावजूद यह यहाँ से अपने धन-बल के बलबूते और सही विकल्प नहीं होने के कारण सांसद बना हुआ है। मैं शायद मधेपुरा के जन भावनाओं को हीं दोहराऊंगा अगर मैं दावा करता हूँ की अगले लोक सभा चुनाव में शरद यादव को मधेपुरा से खदेड़ दिया जायेगा और मधेपुरा के लोग मुक्ति की सांस लेंगे।
Mana ki Sharad ne bahut kuch nahi kiya..lekin woh national leader hai aur aiske apne fayde hain..Agle chunav mein Sharad nahi JD -U(Nitish) jeetengi. Sharad yadav toh bas ek nam hai..
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