उसमे उसका प्यार छिपा होता है
चाहे कवि की कविता हो
या हो वह चित्रकार का चित्र
मृदुल हाथों के फेरे व् बनते घड़े
कुम्भकार के अहसासों के चेहरे हैं
कोई पूछे उस ‘माँ’ से जो
अपनी सृष्टि हेतु सर्वस्व लुटाती है
खुद तो खाती है वह ‘पगली’ पत्थर
क्यूं आँचल से लाल छिपाती है.
संदेहों में सर्वस्व खड़ी आज
रिश्तों की लंबी फेहरिश्तें हैं.
माँ की रसभरी ममता का साया
तपती धूप में शीतल छाया है.
लेते जन्म पुत्र-कुपुत्र अभी भी
कुमाता माता भला किसने पाया है
खुद के स्वार्थ को हम भूलें
सुध लें उसकी,
जिसने हमें दी काया है,
जिसने हमें दी काया है.
-नीरज कुमार(पूर्व ईटीवी संवाददाता,मधेपुरा.)
माँ
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
September 06, 2011
Rating:
बेहतरीन....बधाई हो नीरज जी,ऐसी कवितायें लिखते रहें.
ReplyDeleteमाँ तुझे सलाम ,माँ तुझे सलाम ,ओ माँ तुझे सलाम ......माँ तेरी आँचल की छाँव में मेरी जीवन की आस है ,तू चूमती है हमको तो मिटतीअपनी प्यास है ,ऊँगली का सहारा तुझसे ही मिला तो खड़ा होकर जीना सीखा पल पल तेरी रूह से उठती दुआ ही मेरी सलामती का कारण है तू सदा से महान हो पवित्र हो /तेरी दया ममता और करुणा मिट नहीं सकती ....फिर तुझे सलाम , माँ तुझे सलाम /
ReplyDelete