सड़क पर घायल तड़पता एक युवक. लहूलुहान सा. मदद के लिए
चिल्ला रहा है. बार-बार कह रहा है उसे अस्पताल ले चलो. अस्पताल की दूरी भी महज एक
किलोमीटर. आती-जाती गाडियां धीमी तो हो रही है, पर कोई रोक कर इस घायल को अस्पताल
पहुँचाना नहीं चाहता.
उसी समय
एक खाली एम्बुलेंस भी वहां से गुजरती है, पर वह भी आगे बढ़ा लेता है. एक अधेड़
व्यक्ति थोड़ा सा बेचैन तो दिखता है और एक मोटरसाइकिल वाले को रूकवा लेता है, पर जब
मोटरसाइकिल सवार उस अधेड़ को भी घायल के साथ चलने कहता है तो वह मुकर जाता है.
आसपास ढेर सारे लोग जमा बबी हो जाते हैं, पर तमाशबीन रहते हैं. घायल की तड़प और भी
बढ़ जाती है, वह एक महिला के सामने भी गिडगिडाता है, पर सब व्यर्थ. घायल तड़प कर
गिरता है फिर भी सारे लोग उसे देखते रहते हैं और शायद उसके मरने का इन्तजार करते
हैं ताकि वह घर जाकर बीवी-बच्चों को कहानी सुनाये. और फिर घायल सड़क पर ही दम तोड़
देता है.
ये किसी
एक जगह की कहानी नहीं है, पूरे भारत के हालात कुछ ऐसे ही हैं. समाज में लोगों की
संवेदनाएं मर चुकी है. किसी की जान जा रही होती है और देखने वाले लोग किसी तरह के
झंझट में नहीं पड़ना चाहते हैं. स्वार्थ और अय्यासी में डूबा समाज खासकर युवा अपनी
गर्लफ्रेंड पर हजारों रूपये और दिन के कई घंटे बर्बाद कर देते हैं, पर किसी की घायल
की मदद की बात जब सामने आती है तो इनको लकवा मार जाता है.
आपको
याद होगा दिल्ली की निर्भया के साथ हुए गैंगरेप के बाद वह और उसका दोस्त सड़क पर
तड़पता रहा, पर गुजरने वाले किसी नामर्द ने उनकी मदद नहीं की. और बाद में इसी
संवेदनहीन समाज के लोगों ने मोमबत्तियाँ जलाकर तस्वीरें खिंचवाई. स्थिति काफी
शर्मनाक है, और हालात बद से बदतर होता जा रहा है.
खैर,
ऊपर घायल की कहानी का वीडियो सिर्फ यही दर्शाने के लिए तैयार किया गया कि ‘आप बदलिए, सबकुछ बदल जाएगा’.
देखिये वीडियो में कैसे तड़पा युवक और मदद का कोई हाथ
नहीं बढ़ा, यहाँ क्लिक
करें.
(ब्यूरो रिपोर्ट)
तड़प-तड़प कर मर गया सड़क पर, पर मदद को नहीं बढ़ा कोई हाथ: क्यों पत्थर के बुत बनते जा रहे हैं हम ?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
June 13, 2014
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