शनिवार को पुरातत्व अधिकारी पटना से हर्षवर्धन ने श्रीनगर गांव पहुंचकर बिखरे अवशिष्ट का निरीक्षण किया. निरीक्षण के दौरान श्रीनगर से कुछ अवशेष भी अपने साथ ले गए और बताया कि अवशेष का डेटिंग पद्धति से समय का निर्धारण किया जाएगा। बताते हैं कि श्रीनगर और झिटकिया में 3000 वर्ष से लेकर 1000 वर्ष पुराना धरोहर बिखरे पड़े हुए थे, जिसे 2016 में इसकी सूचना इतिहासकार सह अंचलाधिकारी सतीश कुमार ने तत्कालीन जिला पदाधिकारी मोहम्मद सोहेल पत्र के माध्यम अवगत कराया गया था। पत्र के आलोक में 31 दिसंबर 2016 में जिला पदाधिकारी मधेपुरा ने स्थल निरीक्षण किया और पालकालीन 9 वी सदी उमा महेश्वर की मंदिर परिसर की घेरा बंदी कराई।
तत्कालीन अंचलाधिकारी ने 15 अप्रैल 2017 में जिला पदाधिकारी मधेपुरा को उत्खनन के लिए पत्र लिखा, जिसमे दोनों गांव में निम्न ऐतिहासिक सामग्री मिली है। जिसमें काला मृदभांड लगभग 2500 वर्ष से 3500 वर्ष पुराना, लाल काला मृदभांड लगभग 3000 वर्ष पुराना, हाथ से बना इट 700 ई पूर्व, लाल पेटेंट कटोरा 600 ई पूर्व, कुषाण कालीन घरा 100 ई पूर्व ,उमा महेश्वर की मूर्ति 9 वी सदी, मकर जल निकासी 7वीं सदी, कैथी लिपि का सबसे प्राचीन शिलालेख 9वी सदी, मातृ देवी टेरिकोटा 100ई पूर्व से 700 ई पूर्व, शिव का किरात रूप 100ई पूर्व से 7ई पूर्व, गणेश की खंडित मूर्ति, एक सूर्य की मूर्ति एक 10वी सदी, टीला के निकट जमीन डोज 30 इंच मोटी दीवार आदि शामिल हैं.
इस प्रकार कोसी में यह राष्ट्रीय स्तर का प्राचीनतम स्थल है जिसमें वैदिक काल से लेकर पाल काल तक अवशेष बिखरा पड़ा है. सभी मूर्तियां, शिवलिंग और चौखट की बार बेसाल्ट पत्थर के हैं जो 3000 साल बाद आज भी आकर्षक रूप से आज भी चमकीले बने हुए हैं जिसके उत्खनन से अनेक तत्व उजागर होंगे. प्राचीन बिहार का इतिहास समृद्ध होगा तथा पर्यटक के विकास के क्षेत्र का आर्थिक विकास होगा।
वही इतिहासकार सतीश कुमार से हुई बातचीत में बताया कि पुरातत्व विभाग के अधिकारी ने जो अबशेष कार्बन डेंटिंग पद्धति से समय निर्धारण के लिए ले जाया गया है, उसमें धूसर मृदभांड के बच्चों की मिट्टी का खिलौना का पहिया है, जो 2600 ई पूर्व से लेकर 4000 वर्ष पुराना है.
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