बीते रविवार की देर नगर
भवन (टाउन हॉल)
मधेपुरा में प्रांगण रंगमंच द्वारा नौ दिवसीय नाट्य
कार्यशाला का
समापन रविंद्र नाथ टैगोर लिखित एवं विपुल आनंद द्वारा निर्देशित नाटक ‘डाकघर’ का
मंचन किया गया. जिसका उद्घाटन जिला परिषद अध्यक्ष मंजू देवी एवं संस्था के
पदाधिकारियों ने दीप प्रज्वलित कर किया.
मौके पर मंजू देवी
ने कहा कि प्रांगण रंगमंच कम ही दिनों में जिले में अपनी एक अलग पहचान बना
ली है. रंगमंच के सभी सदस्य बधाई के पात्र हैं जो कि लोक संस्कृति को जीवित रखने के लिए लगातार नए- नए कलाकारों को मंच देकर उनका हौसलाअफजाई करते हैं. उन्होंने कहा कि
प्रांगण रंग मंच के साथ मै हर परिस्थिति में खड़ी रहूंगी. प्रस्तुत नाटक अमल नामक
एक बच्चा की कहानी है. असाध्य रोग हो गया है जिस कारण अमल को अपने फूफा के घर
एकांतवास करना पड़ रहा है. ऐसा माना जाता है कि यह नाटक रविंद्र नाथ टैगोर ने 1912 में महज 4 दिन में 4 लिखा था. अमल अपने कमरे के खिड़की के पास खड़ा रहता है और
हर आने-जाने वाले से सवाल करता रहता है. प्रस्तुति में बताया गया कि यह नाटक डाकघर की काव्यात्मक
निर्माण प्रक्रिया को अंकित करता है. डाकघर मुख्यतं: द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान
भारत में चिकित्सक व चिकित्सा प्रणाली के अभाव को दर्शाता है. छोटी-छोटी बीमारियों
से हो रही बच्चों की मौतों से एक मार्मिक प्रस्तुति दर्शकों को उस समय के भारत की
दशा पर सोचने को मजबूर करती हैं. मौत के दरवाजे पर खड़ा,
गंभीर रूप से बीमार अमल एक बंद कमरे में फंसा रहता है. जब
तक एक राजवैद्य राजा का पत्र उसके पास लेकर नहीं पहुंचता. अमल के मन में अनेक कल्पनाएं उड़ान भर्ती है,
कि राजा उसे पत्र भेजा है अथवा उसे अपना पत्रवाहक नियुक्त
किया है. गांव का प्रधान इस बच्चे का मजाक उड़ाते हुए कहता है कि राजा ने एक
चिट्ठी भेजा है जिसमें लिखा है कि कमल को बचाने के लिए राजा ने अपना सही वैद्य भेजेगा.
अंततः शाही वैद्य आता भी है और घोषणा करता है कि राजा का आगमन होने वाला है. जब
सुधा अपने वादे के मुताबिक उस बच्चे को गुलदस्ता देने आती है,
तो पता चलता है कि अमल मृत अवस्था में पड़ा हुआ है. पर यह
सुन कर सुधा को यकीन नहीं होता है कि अमल अब इस दुनिया में नहीं रहा. वह बोलती है
कि जब अमल जगेगा तो बोल देना सुधा आज भी उसका इंतजार कर रहे हैं.
ली है. रंगमंच के सभी सदस्य बधाई के पात्र हैं जो कि लोक संस्कृति को जीवित रखने के लिए लगातार नए- नए कलाकारों को मंच देकर उनका हौसलाअफजाई करते हैं. उन्होंने कहा कि
प्रांगण रंग मंच के साथ मै हर परिस्थिति में खड़ी रहूंगी. प्रस्तुत नाटक अमल नामक
एक बच्चा की कहानी है. असाध्य रोग हो गया है जिस कारण अमल को अपने फूफा के घर
एकांतवास करना पड़ रहा है. ऐसा माना जाता है कि यह नाटक रविंद्र नाथ टैगोर ने 1912 में महज 4 दिन में 4 लिखा था. अमल अपने कमरे के खिड़की के पास खड़ा रहता है और
हर आने-जाने वाले से सवाल करता रहता है. प्रस्तुति में बताया गया कि यह नाटक डाकघर की काव्यात्मक
निर्माण प्रक्रिया को अंकित करता है. डाकघर मुख्यतं: द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान
भारत में चिकित्सक व चिकित्सा प्रणाली के अभाव को दर्शाता है. छोटी-छोटी बीमारियों
से हो रही बच्चों की मौतों से एक मार्मिक प्रस्तुति दर्शकों को उस समय के भारत की
दशा पर सोचने को मजबूर करती हैं. मौत के दरवाजे पर खड़ा,
गंभीर रूप से बीमार अमल एक बंद कमरे में फंसा रहता है. जब
तक एक राजवैद्य राजा का पत्र उसके पास लेकर नहीं पहुंचता. अमल के मन में अनेक कल्पनाएं उड़ान भर्ती है,
कि राजा उसे पत्र भेजा है अथवा उसे अपना पत्रवाहक नियुक्त
किया है. गांव का प्रधान इस बच्चे का मजाक उड़ाते हुए कहता है कि राजा ने एक
चिट्ठी भेजा है जिसमें लिखा है कि कमल को बचाने के लिए राजा ने अपना सही वैद्य भेजेगा.
अंततः शाही वैद्य आता भी है और घोषणा करता है कि राजा का आगमन होने वाला है. जब
सुधा अपने वादे के मुताबिक उस बच्चे को गुलदस्ता देने आती है,
तो पता चलता है कि अमल मृत अवस्था में पड़ा हुआ है. पर यह
सुन कर सुधा को यकीन नहीं होता है कि अमल अब इस दुनिया में नहीं रहा. वह बोलती है
कि जब अमल जगेगा तो बोल देना सुधा आज भी उसका इंतजार कर रहे हैं.
नाटक में माधव दर्द,
आशीष कुमार सत्यार्थी, अमल, बमबम कुमार, वैद्य सुमन कुमार, मुखिया सुनीत साना, दही वाली गरिमा उर्विशा, दादा अमित आनंद, सुधा लिजा मान्य, राज्य वैध विद्यान्शु कुमार, दूत मनोहर कुमार, बच्चे खुशी, अनुप्रिया, ब्रजेश कुमार, प्रकाश परिकल्पना एवं कार्यक्रम संयोजक दिलखुश कुमार,
फोल्डर डिजाइनिंग सावन गुरु, मंच परिकल्पना देशराज दीप, मनीष कुमार दीपक कुमार, म्यूजिक अभिषेक चौहान एंड सुनीत साना,
वस्त्र परिकल्पना मुरारी सिंह ने जीवंत अभिनय किया.
मौके पर संस्था के
संरक्षक प्रोफेसर प्रदीप कुमार झा, अध्यक्ष संजय परमार, सुकेश राणा,
चंदन कुमार, धर्मेंद्र सिंह, चंद्रशेखर यादव, कार्यकारी सदस्य विक्की विनायक,
डॉ बीएन भारती, बदना घोष, रेखा गांगुली, डॉ अरुण कुमार, अक्षय कुमार, कुंदन कुमार आदि मौजूद थे. मंच संचालन रानू सिंह ने किया.
धन्यवाद ज्ञापन उपाध्यक्ष राकेश कुमार डब्लू ने किया.
ताकि रंगमंच जिन्दा रहे: टैगोर द्वारा लिखित नाटक ‘डाकघर’ का मधेपुरा में अद्भुत मंचन
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
March 13, 2018
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