कोसी अंचल के वरिष्ठ साहित्यकार एवं कौशिकी क्षेत्र हिंदी साहित्य सम्मेलन के
अध्यक्ष हरिशंकर श्रीवास्तव शलभ ने बताया कि भारतेन्दु युग का साहित्य अंगेजी
हुकूमत के‘ विरुद्ध देश में राष्ट्रभावना का प्रथम आवाहन था.
जिसने द्विवेदी युग में नवीन आयामों के साथ पौढतम स्वरूप प्राप्त किया. ओजस्वी
हुंकार के द्वारा मैथिलीशरण गुप्त अपनी सशक्त रचना ‘भारत भारती’ में
भारतवर्ष की गौरवशाली अतीत के साथ वर्तमान व्यवस्था पर क्षोभ प्रगट किया वहीँ
निराला ने ‘जागो फिर एक बार’, ‘शिवाजी
का पत्र’ तथा जयशंकर प्रसाद ने ‘अरुण
यह मधुमय देश हमारा’ तथा ‘हिमाद्री
तुंग
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हरिशंकर श्रीवास्तव शलभ |
श्रुंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती’ आदि कविताओं के द्वारा
देशवासियों के ह्रदय पर राष्ट्रभक्ति की अमिट छाप छोड़ी. स्वाधीनता आन्दोलन से
प्रभावित हिंदी कवियों में जहां राष्ट्रीय स्तर पर भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, बद्रीनारायण चौधरी, माधव प्रसाद शुक्ल, माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन, रामधारी सिंह दिनकर, सुभद्रा कुमारी चौहान, सोहनलाल द्विवेदी, सियाराम शरण गुप्त व अज्ञेय आदि
ने अपनी कविता से राष्ट्रभक्तों की रगों में नयी ऊर्जा का संचार किया वहीँ कोसी
इलाके के कवियों नें भी राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन में पूर्णरूप से सक्रीय रहे.
साहित्यकार श्री शलभ ने बताया कि सहरसा के पंछेदी झा द्विजवर की . ‘कोइलिया’ कविता नें कोसी के राष्ट्रभक्तों में भरपूर ऊर्जा ही नहीं बल्कि तत्कालीन
सत्याग्रहियों का यह दैनिक गान बन गयी. मधेपुरा के पं. युगल शास्त्री ‘प्रेम’ ने महात्मा गांधी के आदर्शों को उजागर करते
हुए ‘साधना’ महाकाव्य में जातिवाद के
विरुद्ध एवं दलितोत्थान के पक्ष में विगुल फूंका और नवयुवकों में राष्ट्रीयता का
भरपूर संचार किया – ‘कर न सकेगा असुर मौज अब बहुत दिनों तक/
पर दबैल क्यों पडा रहेगा घर में जक थक/ उनकी आहें वाष्प बनी नभ में उड़ती है/
मानवता की विवश आँख से छु पड़ती है.’ स्वाधीनता आन्दोलन के
क्रांतिकारियों में मधेपुरा के पंडित जलधर झा ‘जलदेव’
की कविता पुस्तक ‘प्रलय के लक्षण’ ने ओज भरने का काम किया. इनकी राष्ट्रीय कविता तत्कालीन छात्रों में भी
काफी लोकप्रिय रही. सुपौल में बालेन्द्र नारायण ठाकुर ‘विप्लव’
एवं पंडित रामकृष्ण झा ‘किसुन’ ने भी देशभक्ति के कई गीत लिखे जो सत्याग्रहियों व क्रांतिकारियों में
लोकप्रिय हुए.
साहित्यकार श्री शलभ ने आगे कहा कि पंडित छेदी झा द्विजवर के सहरसा निवास पर
कवियों की जमात बैठती और काव्य गोष्ठी का आयोजन होता देशभक्ति कविताओं पर भरपूर
चर्चा होती., रजनी वभनगामा के भगवान चन्द्र ‘विनोद’ उनदिनों युवा लेखक एवं कवि के रूप में चर्चित हुए. उनहोंने नेपाल स्थित ‘बकरों के टापू’ जाकर स्वाधिनाताकामी शक्तियों के
पक्ष में लेखन के कई कार्य किये. स्वाधीनता आन्दोलन के दिनों रजनी वभनगामा का ‘राष्ट्रीय रंगमंच’ बहुत ही लोकप्रिय था. इसका संचालन
कवि पुलकित लाल दास किया करते थे. इस स्थान पर डा. राजेन्द्र प्रसाद के साथ अनेक
स्वतंत्रता सेनानी पधारे थे. राजेन्द्र लाल दास का ‘सर्वोदय
आश्रम’ भी यहीं था जहां साहित्यकार एवं कवियों का नियमित
आयोजन हुआ करता था. स्वाधीनता आन्दोलन के पश्चात श्री रमेश चन्द्र वर्मा, जगदीश सिंह विह्वल, विद्याकर कवि, हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’, श्याम
सुन्दर घोष, भुवनेश्वर गुरमैता आदि ने दीर्घकाल तक इस अलख को
जगाये रखा .
(हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’ मधेपुरा, अध्यक्ष, कौशिकी क्षेत्र हिंदी साहित्य सम्मेलन से उनके मोबाइल- 9472495048 पर संपर्क किया जा सकता है.)
स्वाधीनता आन्दोलन में कोसी अंचल के रचनाकारों का योगदान
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
August 16, 2017
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