स्वच्छता अभियान की हवा निकालते ये ‘पिचपिच’ वाले

समूचे बिहार की बात अभी छोड़िये, आप कोसी इलाके के सरकारी कार्यालयों में घूम आइये. क्या आपने कार्यालयों में जाते समय भवन के कोनों पर गौर किया है? कोसी के अधिकांश कार्यालयों के कोने पान-गुटखा की पीकों से लाल सुर्ख बन गए हैं. स्वीपर इन कोनों को साफ़ करते हैं, पर कुछ ही घंटों में इन पीकों की ‘घर-वापसी’ हो जाती है और बदबूदार कोनों के पास से गुजरते शायद हम ये नहीं सोचते कि जिन मुहों से ये गंदगी निकली है, उनपर लगाम लगना चाहिए.
    ये माना कि मिथिला संस्कृति में पान खाना शुभ के साथ प्रचलन में हैं. गुटखा नाम का जहर खाना कहीं से किसी संस्कृति का हिस्सा नहीं हो सकता. ‘मुखशुद्धि’ के नाम पर गुटखा खाना मानसिक विक्षिप्तता की ही पहचान होगी, वर्ना लौंग, इलायची आदि जैसे कई लाभकारी चीजें भी इसके बदले प्रयोग में लाइ जा सकती है. वैसे हम इस बात पर ज्यादा बहस नहीं करना चाहते हैं कि कोई ‘लत’ के कारण क्या ‘खोरी’ करता है. पर इतना तो तय है कि पान-गुटखा आदि खाकर सार्वजनिक स्थल को ‘पिचपिच’ कर गन्दा करने को कहीं से जायज नहीं ठहराया जा सकता. इससे न सिर्फ कोई स्थल गन्दा दीखता है बल्कि पनपते कीटाणु और विषाणु आमलोगों के स्वाथ्य के लिए भी हानिकारक होते हैं.
    स्वच्छता अभियान में बाधक बनने से पहले उन्हें सोचना चाहिए कि उनकी गंदी बात स्वच्छ और स्वस्थ समाज पर धब्बा जैसा है.
(वि.सं.)
स्वच्छता अभियान की हवा निकालते ये ‘पिचपिच’ वाले स्वच्छता अभियान की हवा निकालते ये ‘पिचपिच’ वाले Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on March 27, 2016 Rating: 5

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