‘कोशी की बाढ व कटाव सरकारी अफसरों व एनजीओ के लिए दुधारू गाय’- जनसंवाद

 |ब्रजेश सिंह|22 फरवरी 2014|
जिले के आलमनगर के वीरेन्द्र कला भवन में बाहर से आए अध्ययन दल के द्वारा आहूत जनसंवाद कार्यक्रम में प्रखंड के विभिन्न बाढ प्रभावित गांवों के लोगों ने हिस्सा लिया और अध्ययन दल के समक्ष अपनी बातों को बेबाकी से रखा। जनसंवाद में मौजूद लोगों की मंशा बाढ व कटाव से निजात के साथ-साथ आजीविका के साधन की समस्या का समाधान की दिशा में सरकार व सबल समाज से पहल करने की जरूरत बताया। समारोह मंच का संचालन कोशी पीड़ित मंच के संयोजक महेन्द्र शर्मा व अध्यक्षता किया। 
इस मौके पर आलमनगर पूर्वी पंचायत के मुखिया अशोक साह ने कहा कि बाढ की समस्या का निदान आवश्यक है और निदान की दिशा में अध्ययन दल का अध्ययन राज्य व केन्द्र सरकार के लिए मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने कहा कि मुरौत गांव सहित आसपास के गांव के लोग हरेक साल बाढ से जूझते हैं। मुखिया जनार्दन राय ने कहा कि प्रखंड के मुरौत, कपसिया एवं सुखार घाट को कोशी के कटाव से बचाने का प्रयास होना चाहिए। साथ ही बाढ के विभिषिका से त्रस्त लोगों के जीवन यापन के लिए भी उपाय होनी चाहिए।

जनसंवाद में मुकुंद प्रसाद यादव ने कोशी, कमला व अन्य नदियों का जिक्र करते हुए कहा बाढ की समस्या एक दिन की नहीं है। बाढ हरेक साल आती है और गांव के गांव को लील लेती है। इसके स्थाई समाधान से ही लोगों का कल्याण हो सकता है। कामेश्वर पासवान ने कहा कि कोशी की बाढ व कटाव सरकारी अफसरों व एनजीओ के लिए दुधारू गाय साबित होती है। बाढ पीड़ितों के दर्द और उजड़े आशियाने उनके लिए मलाई की पोटली बनती है। पूर्व जिला पार्षद अमरेन्द्र सिंह चन्द्रवंशी ने कहा कि बाढ की तबाही के वक्त जो सुरक्षात्मक कार्य किये जाते हैं उसे बाढ के पूर्व अगर विभाग करे तो बेहतर सुरक्षा प्रदान किया जा सकता है।
इस मौके पर जल विषेषज्ञ रणजीव ने लोगों की समस्याओं को स्पष्ट करते हुए कहा कि समस्या पहले से विकराल हो गयी है। बाढ से भी बड़ी समस्या जलवायु परिवर्तन का है और हम जलवायु परिवर्तन के खतरे से अनभिज्ञ हैं। उन्होंने कहा कि पर्यावरण व प्रकृति को ठेंगे पर रखने की वजह से हर बाढ जैसी त्रासदी से हरेक साल जुझते हैं। दुनियां में हिमालय से निकलने वाली कोशी नदी ही एक मात्र ऐसी नदी है जो जल के साथ मिट्टी भी लाती है। धरती के निर्माण में कोषी नदी की महत्वपूर्ण योगदान है। जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा का अनुपात जहां कम गया है वहीं एकछत्र बारिश भी अब सपना हो गया है। आलमनगर में बारिश होती है और मधेपुरा में कड़ी धूप रहती है।
आपदा प्रबंधन प्राधिकार बिहार के वरीय सलाहकार शंकर दयाल ने कहा कि इस क्षेत्र के लोगों को दो-दो आपदा को झेलना पड़ सकता है। लेकिन जानकारी के अभाव में सिर्फ बाढ हमें नजर आती है। उन्होंने कहा कि बाढ से बचा जा सकता है भूकंप से नहीं। यह क्षेत्र भूकंप के पांचवे जोन के अधीन है और हाई डैम वाला क्षेत्र नेपाल का बराह क्षेत्र छठे जोन में है। अगर हाई डैम पर भूकंप का खतरा हुआ तो हम हवा की तरह उड़ जाएंगे।
जनसंवाद कार्यक्रम का समापन करते हुए अनुग्रह नारायण सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान पटना के निदेशक व अध्ययन दल के नेतृत्वकर्ता डा० एम दिवाकर ने कहा कि प्रकृति को करीब से देखने वालों को ज्यादा अनुभव होता है और इस इलाके के लोग बाढ को करीब से देखते हैं तो उनको सुरक्षा का अनुभव किसी भी अध्ययनकर्ता से ज्यादा होगा। आदमी को अपने अनुभवों से सीखना चाहिए।
इस मौके पर अजय कुमार सिंह, चंदन चौधरी, लाला सिंह, गणेश सिंह, विकास कुमार सिंह, संजय सोनी, ब्रजेष कुमार, बादल स्वर्णकार, अजय झा, मनोज मनोरंजन, संतोष झा, रूजिल षर्मा सहित भारी संख्यां में लोगों ने भाग लिया और संबोधित किया.
‘कोशी की बाढ व कटाव सरकारी अफसरों व एनजीओ के लिए दुधारू गाय’- जनसंवाद ‘कोशी की बाढ व कटाव सरकारी अफसरों व एनजीओ के लिए दुधारू गाय’- जनसंवाद Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on February 22, 2014 Rating: 5

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