आज ही टूटा था कुसहा, डूबा था उत्तर बिहार

|मधेपुरा से प्रवीण गोविन्द| 18 अगस्त 2013|
18 अगस्त, 2008 को कुसहा टूटा था। पांच वर्ष हो गए। कुसहा के कोप ने कई नई कहानियां लिखीं। शोक और दुख की कहानियां तो संघर्ष और जुझारूपन की भी। लेकिन जो प्रमुख सवाल हैं उसका जवाब आज भी अनुत्तरित हैं। सवाल; इसके लिए कौन जवाबदेह है? कहां भूल हुई? आखिर बांध को बचाने के लिए विभाग के पास मात्र सात लाख रूपये ही क्यों थे?
सवाल-दर-सवाल : गंभीर प्रश्र है- 5 अगस्त को ही कुसहा के समीप बने स्पर पर कटाव लगा था जो कि 18 अगस्त को टूट गया। बीच के अंतराल में कहां थे अभियंता, कहां था विभाग ? कहां था जिला प्रशासन और कहां थी सरकार?  कायदे से बोल्डर व बी.ए. वायर से बने के्रटस का पर्याप्त भंडार ऐसे स्थलों पर रहना चाहिए था जो नहीं था। आखिर क्यों? सवाल यह भी- सात लाख क्यूसेक पर नहीं टूटा, पौने दो लाख पर कैसे?
जख्म जो भरा नहीं : त्रासदी के जख्म अब भी मौजूद हैं। आज भी बड़ी संख्या में लोग क्षतिपूर्ति की राशि से वंचित हैं। बाढ़ में सबकुछ धुल गए। जिन्होंने घन के साथ जन को भी खोया, वैसे लोगों को अपनों की याद आने पर कलेजा मुंह को आता है। यहां बता दें कि कोसी नदी जब कुसहा से मुक्त हुई तो बर्बादी की वो दास्तान लिख डाली कि इसे राष्टीय आपदा घोषित करना पड़ा था।
जानें इन्हें भी
सहरसा। कुसहा त्रासदी में सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, अररिया व पूर्णिया जिलों के 35 प्रखंडों के 412 पंचायतों, जिनमें 993 गांव सन्निहित हैं, में कुल 33,45,545 की आबादी प्रभावित हुई। कुल 3,40,742 मकानों की क्षति हुई और 7,12,140 पशु भी प्रभावित हुए। कुल 539 व्यक्तियों के साथ ही 12032 पशुओं की मृत्यु हुई।

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क्या हुआ तेरा वादा
सहरसा। 'आगे से ऐसी नौबत नहीं आए इसकी हम तैयारी करेंगे और सभी गांव में सबसे ऊंचा आश्रय स्थल सामुदायिक भवन बनवाएंगे ताकि विपत्ति के समय लोगों को आश्रय मिल सके।  उक्त वादा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कुसहा टूटने के बाद सुपौल जिले के उच्च विद्यालय, छातापुर में महती सभा को सम्बोधित करते हुए किया था। दिन था शनिवार का और तिथि थी 28 फरवरी, 200915 अगस्त, 2007 को भी पटना के गांधी मैदान में बाढ़ का स्थायी निदान करने की मुख्यमंत्री ने घोषणा की थी। एक बार फिर जब कोसी फुफकार मार रही है है कोसीवासियों की जुबान पर एक ही सवाल है- क्या राजनेता वायदे बिसार देने के लिए करते हैं? बड़े-बड़े वादे किए गए। कुछ वादों पर अमल भी हुआ। लेकिन आज की तारीख में भी सभी गांवों में आश्रय स्थल का निर्माण नहीं हो सका है। बाढ़ का स्थायी समाधान की बात ही छोडि़ए। एक बार फिर पक्ष और विपक्ष बाढ़ को तलवार की तरह भांज रहे हैं। शायद इसकी वजह लोकसभा का आसन्न चुनाव है।
(श्री गोविन्द दैनिक भास्कर से जुड़े हुए हैं।)
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