जिला मुख्यालय के कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय में आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली श्रीपुर के हिम्मत प्रसाद यादव की बेटी सिम्पी ने इसी वर्ष २४ जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस पर किशोरी संसद में भाग लिया था.विधान परिषद् पटना में इस अवसर पर भाग लेने वाली मधेपुरा की पहली लड़की की अपनी कहानी भी दर्द बयां करती है.किसी अच्छे स्कूल में न पढ़ा सकने की पिता की हैसियत से सिम्पी थोड़ा दुखी जरूर है,पर पिता ने अपने नाम के अनुसार ही बेटी को हिम्मत देने में कमी नहीं की.पिता की हैसियत इतनी थी नहीं कि बेटी को कॉन्वेंट में पढ़ा सके तो उन्होंने गरीब और बीपीएल परिवार की लड़कियों के लिए बने कस्तूरबा विद्यालय में ही बेटी का दाखिला करवा दिया जिससे उनकी बेटी कुछ पढाई भी तो कर सके.सिंपी सबसे ज्यादा दुखी समाज के उनलोगों से है जो बेटी और बेटे में फर्क करते हैं और बेटे की पढाई पर तो पूरा ध्यान देते हैं पर बेटी के पढ़ने के वक्त उसके हाथ में हंसिया और खुरपी थमा देते हैं.मधेपुरा टाइम्स को सुनाये गए गानों में भी सिम्पी के बेटी होने का दर्द छलक जाता है.कहती है गरीब परिवार की बेटियों को पढने के समय एक तो माँ-बाप उनसे काम करवाते हैं ऊपर से ससुराल जाने के बाद भी सास उलाहने देती है और लोग मारने उठते हैं.
बेटियों के साथ समाज के पक्षपातपूर्ण व्यवहार पर सिम्पी ने अपने दर्द को एक गीत के माध्यम से प्रस्तुत किया.इसे सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें.
(ए.सं.)
(ए.सं.)
बेटी को न पढ़ाने का दर्द है सिम्पी के गानों में
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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February 20, 2012
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