मैं हूँ तन्हा पर अकेला नहीं !

पता नहीं, ये दिल चाहता क्या है,
हर पल खुद से उलझता क्यूँ है !
कहने को  हूँ मैं तन्हा पर अकेला नहीं,
मंजिल हैं पर रास्ते नहीं.
इस आवारगी में  कहाँ चला,
किधर पंहुचा,
कुछ पता नहींकुछ पता नहीं !!
शाम होते ही 
सवेरे की तलाश रहती है,
सवेरे होते ही 
अँधेरे की याद आती है,
क्यूँ मुकव्वल हुई न 
मेरी जिन्दगी,
यही सवाल हमेशा खुद से रहता है,
अब तक क्या खोया क्या पाया,
कुछ पता नहीं, कुछ पता नहीं !!
साहिल पे खड़ा हूँ,
टूटी  कस्ती को साथ लिये,
इस चाहत में कि कोई मांझी ढूंढ़ लूँगा,
 और खुद को उस दूर किनारे पे कर  लूँगा
जहाँ खुशियों की बस्ती है, हर चेहरे पे प्यार है,
 क्या मिल पायेगा मुझे वो जहाँ
कुछ पता नहीं, कुछ पता नहीं !!

--अजय ठाकुर,नई दिल्ली
मैं हूँ तन्हा पर अकेला नहीं ! मैं  हूँ तन्हा पर अकेला नहीं ! Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on October 22, 2011 Rating: 5

3 comments:

  1. Pure kavi ban gaye hai aap apni talent ko dusri field be waste kar rahe hai

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  2. बहुत ही सुन्दर.....

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  3. thanxx a lot Sushma n .... 4 like it ..:)

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