मैथलीशरण गुप्त की एक प्रसिद्द कविता में भारतीय पक्षी ‘खंजन’ के दर्शन को शरद ऋतु से जोड़कर इसे देखना एक भाग्य की बात कहा गया है.संत तुलसीदास भी किष्किन्धाकाण्ड में शरद ऋतु और खंजन का वर्णन करते हुए कहते है, ‘‘ जानि सरद रितु खंजन आए। पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए।।’’कवियों ने खंजन की तुलना स्त्री की सुन्दर आँखों से की है.वैसे भी खंजन को एक सुन्दर पक्षी के रूप में माना गया है.नर और मादा खंजन के प्रेम करने के अद्भुत तरीके भी कई कवियों के पसंदीदा विषय रहे हैं.

कहा जाता है कि भारत में खंजन कश्मीर और हिमालय की तराई में घोंसले बना कर रहते हैं और वहीं अंडे भी देते हैं.इतनी दूर से खंजन का यहाँ आना और ऋतु समाप्त होते ही गर्मियों में रहने के लिए इनका वापस लौट जाना किसी आश्चर्य से कम नहीं है.हालांकि बदलते समय में बढते प्रदूषण और बहेलियों के शिकार हो जाने के कारण इनकी संख्यां अब पहले की तुलना में काफी कम हो गयी है. शरद ऋतु की आहट के साथ ही मधेपुरा में भी खंजन दिखने लगे हैं,जिसे यदि ग्रंथों और कवियों की नजर से देखें तो ये काफी सुखद है.
(रिपोर्ट की तस्वीर मधेपुरा कोर्ट परिसर से ली गयी है.)
‘खंजन’ की तुलना स्त्री की सुन्दर आँखों से
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
October 05, 2011
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