राकेश सिंह/०४ अप्रैल २०११
इसे इच्छामृत्यु तो बिलकुल नही कहा जा सकता है पर ये भी हकीकत है कि महेश्वरी ने सबों से तंग आकर जो माँगा था वो उसे मिल गया यानि मौत.महेश्वरी के काम न तो जिला प्रशासन आया और न ही न्याय का आलय. २७ जनवरी २०११ को मधेपुरा टाइम्स पर खबर छपी थी: फास्ट ट्रैक कोर्ट बना स्लो ट्रैक:महेश्वरी के मर्ज की दवा नही.हमने उसी दिन महेश्वरी से साथ प्रशासन की हो रही लापरवाही को आपके सामने रखने का प्रयास किया था.पर प्रशासन है कि जगता नहीं.फास्ट ट्रैक कोर्ट स्लो कोर्ट बना,अपनों ने साथ छोड़ा और जेल प्रशासन ने
बीमार महेश्वरी के इलाज की सिर्फ खाना पूर्ति की.परिणाम सबके सामने है.इसी ३१ मार्च को टीबी के इलाज के दौरान महेश्वरी के जीवन का वित्तीय वर्ष भी समाप्त हो गया.सत्रवाद ११८/१९९२ का अभियुक्त महेश्वरी ऋषिदेव को १९९२ में उदाकिशुनगंज के मधुबन मुसहरी टोला में भूमि विवाद में विपिन सिंह की हुई हत्या में शक के आधार पर अभियुक्त बनाया गया था.जमानत कराने के बाद महेश्वरी मजदूरी करने बाहर गया और थोडा ज्यादा समय लगा तो उसे फरार घोषित कर दिया.लौटने पर पुलिस ने पकड़ा और फिर महेश्वरी के लिए जेल यमराज का घर साबित हुआ.
बीमार महेश्वरी के इलाज की सिर्फ खाना पूर्ति की.परिणाम सबके सामने है.इसी ३१ मार्च को टीबी के इलाज के दौरान महेश्वरी के जीवन का वित्तीय वर्ष भी समाप्त हो गया.सत्रवाद ११८/१९९२ का अभियुक्त महेश्वरी ऋषिदेव को १९९२ में उदाकिशुनगंज के मधुबन मुसहरी टोला में भूमि विवाद में विपिन सिंह की हुई हत्या में शक के आधार पर अभियुक्त बनाया गया था.जमानत कराने के बाद महेश्वरी मजदूरी करने बाहर गया और थोडा ज्यादा समय लगा तो उसे फरार घोषित कर दिया.लौटने पर पुलिस ने पकड़ा और फिर महेश्वरी के लिए जेल यमराज का घर साबित हुआ.
अब जेल में हुई इस मौत की न्यायिक जांच शुरू हो गयी है.न्यायिक दंडाधिकारी मो० मंजूर आलम ने महेश्वरी की मौत के कारणों की जाँच शुरू कर दी है.नतीजा जो भी हो,पर एक सच ये है कि अगर महेश्वरी का इलाज सही तरीके से हुआ होता तो उसकी जान टीबी जैसे बीमारी से बच गयी होती और दूसरा बड़ा सच तो ये है कि महेश्वरी मर चुका है.
महेश्वरी की मौत जेल में तो होनी ही थी
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 04, 2011
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