मां चंडी का दरबार : सच्चे मन से आराधना करने पर होती है भक्तों की मुरादें पूरी

मधेपुरा जिले के कुमारखंड प्रखंड के लक्ष्मीपुर चंडीस्थान पंचायत स्थित चंडीस्थान गांव में स्थापित मां चंडीस्थान मंदिर में सच्चे मन से श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चना करने वाले भक्तों की हर मुरादें मां चंडी पूरी करती है. दो सौ वर्ष पूर्व ग्रामीणों के द्वारा वर्तमान मां चंडी के मंदिर का निर्माण कराए जाने की बात मंदिर के पुजारी बुदन यादव के द्वारा बताई जा रही है. 

मंदिर के पुजारी बुदन यादव ने बताया कि 2 सौ वर्ष पूर्व वर्तमान मंदिर के निर्माण के वक्त मां के पत्थर की आपरुपी मूर्ति को समतल से ऊपर करने के उद्देश्य से खुदाई करने का काम करने पर खुदाई ज्यों - ज्यों किया जा रहा था त्यों-त्यों पत्थर का स्वरूप विशाल होता जा रहा था. श्रद्धालुओं ने किसी अनहोनी घटना से भयभीत होकर मूर्ति को ज्यों का त्यों यथावत छोड़ मंदिर निर्माण कार्य को संपादित किया.

श्रद्धालुओं का मानना है कि मवेशी के बीमार पड़ने पर या दुधारू पशु या औरत का किन्ही कारणों से दूध गायब होने पर जब भक्त सच्चे मन से मां की पूजा अर्चना करते हैं तो सूखा (गायब) हुआ दूध पुनः वापस आ जाता है. नि:संतान दंपति या बांझ औरत के द्वारा संतान प्राप्ति हेतु सच्चे मन से श्रद्धा पूर्वक पूजा अर्चना करने पर मां भक्तों की मनोकामना पूर्ण कर संतान सुख देती है. ग्रामीणों के बीच ऐसी मान्यता है कि लक्ष्मीपुर चंडीस्थान गांव में चेचक एवं डायरिया रोग मां चण्डी की कृपा से गांव से दूर ही रहता है.

एक किवदंती के अनुसार एक बार रात्रि में दो चोर मां चंडी के मंदिर में घुसकर माता का आभूषण चोरी कर जब मंदिर से बाहर निकलना चाहा तो उसे कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा दे रहा था. किसी तरह चोर मंदिर से बाहर निकल तो गया परंतु मंदिर से बाहर निकलते ही चोर पत्थर (पसान) में तब्दील हो गया, जो वर्तमान समय में भी मंदिर गेट के आगे में दो शीला के रूप में विद्यमान है. सुबह होने से पहले ही मां चण्डी ने पुजारी को स्वप्न में कहा कि चोर आभूषण चुरा कर ले जा रहा था परन्तु चोर आभूषण नहीं  ले जा पाया है. मंदिर के आगे में बिखरा हुआ है आभूषण रखा देना.

वहीं दूसरी किवदंती के अनुसार दक्ष प्रजापति के यज्ञ में महादेव के तिरस्कार के कारण शिव की पत्नी व दक्ष प्रजापति की पुत्री सती यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण न्योछावर कर दी थी. इस घटना से कुपित होकर सदा शिव महादेव ने पहले अपने दो गणों को भेज कर पूरे यज्ञ का विध्वंस करवा दिया. बाद में स्वयं शिव आकर अपने श्वसुर दक्ष प्रजापति के सिर को धर से अलग कर दिया. बाद में अपने सासु मां प्रसूति के द्वारा आरजू मिन्नतें  किए जाने पर उसमें बकरे का सिर जोड़ा तथा स्वयं सती के शव को कंधे पर लेकर बौराहा की तरह संपूर्ण पृथ्वी पर घूमने लगा. जिसके निदान हेतु भगवान विष्णु ने उस शव को अपने सुदर्शन चक्र के द्वारा चुपके चुपके 51 खंडों में विभाजित कर पृथ्वी पर गिराया. सती के शव के अंगों के वो भाग जहां -जहां गिरे वे सभी सिद्ध तीर्थ स्थल कहलाए. ऐसी मान्यता है कि यहां भी सती का एक अंग गिरा था.

सालों भर हर मंगलवार को होती है पूजा

सालों भर प्रत्येक मंगलवार को मां चंडी के मंदिर में श्रद्धालु भक्त नेपाल समेत दिल्ली, बनारस, पटना आदि जगह समेत दूरदराज से आकर सच्चे मन से श्रद्धापूर्वक माता रानी की पूजा-अर्चना करते हैं. मनोकामनाएं पूर्ण होने पर श्रद्धालु भक्त जन आकर मां के दरबार में हाजिरी लगा कर सच्चे मन से श्रद्धापूर्वक पूजा - अर्चना कर अपने आप को धन्य मानते हैं. यहां हर वर्ष दशहरा के मौके पर माता मंदिर के सेवक बुदन यादव, राजदेव यादव, उपेंद्र यादव, अर्जुन यादव एवं विद्यानंद यादव आदि के देखरेख में सप्तमी एवं अष्टमी के दिन भव्य रुप दो दिन मेला का आयोजन किया जाता है. 

मंदिर परिसर में मां चंडी के सेवक सह भक्त लोक देवता बुधाय एवं सुधाय (दोनों भाई) तथा आशाराम महाराज के प्रतीक के रुप में तीन पत्थर एक मंदिर में स्थापित है. यहां आने वाले भक्त इन लोक देवताओं की भी पूजा अर्चना करते हैं.

(मीना कुमारी | मधेपुरा टाइम्स)

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