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विगत कई दीपावली से चाइना बल्ब के जगमगाहट के सामने कुम्हार के मिट्टी के दीये फीके पड़ते जा रहे हैं. कुम्हार परिवार को उनकी मजदूरी भी नहीं पाती है और दूसरे के घर को जगमगाने की ख्वाहिश रखने वालों के खुद का घर दीपावली की रात अँधेरे का शिकार रह जाता है.
बता दें कि लोग चाइना के सामानों का भले ही अक्सर विरोध करते नजर आते हैं पर इस दीपावली में भी चाइना बल्ब की जगमग आहट के कुम्हारों के बनाये मिटटी के दीये फीके पड़ गए हैं । मधेपुरा जिले के चौसा प्रखंड के कुम्हार रूपलाल पंडित, मदन पंडित और सुदामा पंडित बताते हैं कि एक तो हम लोग पूरी मशक्कत से मिट्टी खरीद के लाते हैं उसके बाद पूरा परिवार मिलकर मिट्टी गोंदकर चाक पर छोटे छोटे दीये बनाते हैं। फिर उसको आग में पकाकर बाजार तक ले जाते हैं। लेकिन चायनीज बल्ब के सामने हमारी मेहनत मजदूरी बेकार हो जाती है. लोग उस जगमगाहट की तरफ आकर्षित हो जाते हैं और हमारी उम्मीदों के दीये बुझ जाते हैं. बताते हैं कि 90 प्रतिशत लोग चाइनीज बल्ब ही खरीदते हैं। वे कहते हैं कि जबकि चाइना बल्ब से बहुत ही सस्ते में मात्र ₹50 सैकड़ा के दाम में हम दीया बेचते हैं ।
वहीं कई लोगों की समस्या कुछ अलग है. वे कहते हैं कि दीये में जलाने के लिए मिट्टी तेल सरकार की तरफ से मात्र 1 लीटर दिया गया है। जो हमारे घर में दीये जलाने के लिए काफी नहीं है, इसलिए चायनीज बल्ब का सहारा लेना पड़ता है।
चायनीज बल्व के सामने बुझ रहे कुम्हार के उम्मीदों के दीये, जियें तो कैसे जियें
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
November 06, 2018
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