
भारत सरकार मिथिलाक्षर लिपियों के विकास के लिए चार सदस्यीय समिति बनाई है, जिसमें मैं भी एक सदस्य हूँ.'
उपरोक्त बातें मिथिलाक्षर पांडुलिपि के विशेषज्ञ-सह-पटना स्थित महावीर मंदिर के रिसर्च पब्लिकेशन पदाधिकारी भवनाथ झा ने भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय के अधीन संचालित राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन, नई दिल्ली एवं केन्द्रीय पुस्तकालय, बीएन मंडल विवि के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 21 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के 17वें दिन बतौर रीसोर्स पर्सन के रूप में कहीं.
उन्होंने कहा कि मौर्य वंश, गुप्त वंश, शुंग, कुशान वंश से मिथिलाक्षर का प्रमाण मिलता है. 7वीं शताब्दी में राजा हर्षवर्द्धन के समय में जिस कोणीय लिपि के स्वरूप का विकास हुआ उस परिवार की महत्वपूर्ण लिपि मिथिलाक्षर है. अभी तक प्राप्त प्राचीनतम अभिलेखों में सहोदरा अभिलेख है, उस समय से वर्तमान काल तक मिथिला क्षेत्र में यह लिपि अपरिवर्तित रही है. वैसे 10वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी तक मिथिलाक्षर का स्वरूप गंडक के पूर्व से लेकर नेपाल सहित बंगाल की खाड़ी तक एक समान थी. वैसे 15वीं शताब्दी के बाद मिथिलाक्षर का स्वरूप बंगला के रूप में परिवर्तित होने लगा.
मौके पर संगठन सचिव डा. अशोक कुमार, वि.वि. के पीआरओ डा. सुधांशु रंजन के अलावे सुनीता भारती, सौरभ चौहान, मृत्युंजय कुमार सिंह, संगीत कुमार झा, कार्यशाला कोषाध्यक्ष सिद्धू कुमार, रश्मि कुमारी, शोभा कुमारी, शंकर कुमार सिंह, राधे श्याम सिंह, सोनू कुमार सिंह, शिवनंदन मंडल, पवन दास, अनमोल, अंशू आनंद, अरविंद विश्वास, डा. अरूण कुमार सिंह, जय प्रकाश भारती, नंदन कुमार मिश्रा, कपिलदेव यादव, ईश्वर चन्द्र सागर, मो. आफताब आलम समेत दर्जनों प्रतिभागी उपस्थित रहे.

बिहार के अधिकांश शिलालेख एवं पांडुलिपि मिथिलाक्षर में
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
September 02, 2018
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