तकदीर नहीं तदबीर पर भरोसा करें, तब ही है नववर्ष की सार्थकता

वर्ष 2015 गुजर गया. वर्ष 2016 में हम प्रवेश कर चुके हैं. नए वर्ष के आगमन पर हमने खुशियाँ मनाई.
    वर्ष 2015 के आगमन पर भी हमने खुशियाँ मनाई थी और उससे पहले भी. पर हममें से कईयों ने साल भर का लेखा-जोखा शायद ही ईमानदारी से किया है. क्या खोया, क्या पाया? जब सोचते हैं तो उलझन सी लगने लगती है. हम अपने को कितना बदल सके और जो कमियां थी, उनमें से कितनी कमियों को हम पिछले साल या सालों में दूर कर पाए, अच्छे लोगों और उनके अच्छे कार्यों का हम कितना अनुसरण कर पाए, जब इसपर सोचना चाहते हैं तो लगता है इस झंझट में कौन पड़े.
    साल बीतता है और हमारी जिन्दगी घटती जाती है. यदि गौर करते हैं तो हमारी उपलब्धियां हमारी सोच के मुताबिक बीते वर्षों में नहीं लगती. अंग्रेजी में एक कहावत है “Success must be a journey, not destination”, यानि कि सफलता एक यात्रा ही होनी चाहिए, मंजिल नहीं. देखा जाय तो पृथ्वी पर जन्म लिया हर इंसान ख़ास होता है. पर मौत के बाद कुछ को ही ख़ास की श्रेणी में रखते हैं. सिर्फ उन्हें जिनके कार्य दूसरों के लिए प्रेरणा के स्रोत बने. बाकी तो इस अरबों साल पुरानी धरती पर कीड़े-मकोड़े की तरह अपना पेट पालते रहे.
    कहते हैं किसी अच्छे या बड़े कार्य को शुरू करने का सबसे अच्छा समय ‘अभी’ होता है. इसके कई छिपे अर्थ हैं. पहला तो समय का पहिया तेज घूम रहा है, हम बैठे भी वक्त गुजार दें तो भी समय हमारा इन्तजार नहीं करेगा. जिसने पल-पल का सदुपयोग कर लिया वो जिन्दगी की दौड़ में हमसे काफी आगे निकल गया. दूसरा कि किसी काम को हम आज शरू करें या फिर कुछ दिन बाद, दोनों के परिणाम में फर्क स्पष्ट हो सकता है.
    कहते हैं, राम-रावण की लड़ाई में युद्धभूमि में जब राम की तीर से घायल होकर रावण तड़प रहा था तब राम और लक्ष्मण उनके पास गए थे और उनकी लोकप्रियता और सफल राज-काज के गुर उनसे जानना चाहा. राम जानते थे कि रावण एक विद्वान और प्रतापी राजा थे, जिन्होंने अपनी लंका को इतना समृद्ध बनाया था कि उसे ‘सोने की लंका’ कहा जाता था. रावण ने उन्हें बताया था कि यदि किसी अच्छे काम को शुरू करना हो तो बिना देर किये जल्द शुरू कर देना चाहिए और गलत काम की शुरुआत को ही टालते रहो तो जिन्दगी में सफलता अधिक मिलती है.
    पर साथ ही किसी के लिए आत्मसमीक्षा (Self Assessment) भी उतनी ही आवश्यक है, जितना मेहनत से कर्म करना, वर्ना हमें न तो अपनी कमी नजर आएगी और न ही अच्छे-बुरे में फर्क करना हम समझ पायेंगे. जाहिर सी बात है काम करने के मामले में यदि हम जीवन में ‘रावण की थ्योरी’ अपनाते हुए तकदीर नहीं तदबीर यानि कर्म पर भरोसा रखें तब ही हम एक बेहतर समाज के निर्माण में अपनी भूमिका निर्धारित कर सकते हैं.
    तो फिर शुरू करें आज से ही? कल किसने देखा है? आइए साथ चलें, अच्छी नीयत के साथ, ताकि वर्ष 2016 में हमारा परिवार और हमारा समाज हम पर गर्व कर सकें. कई गुमराह युवाओं को समझावें कि क्षणिक शान के लिए खुद को कलंकित न करें, आपकी उर्जा नए समाज के निर्माण में लगनी चाहिए, न कि नशे और समय बर्बाद करने में. यदि तैयार हैं तो नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.
तकदीर नहीं तदबीर पर भरोसा करें, तब ही है नववर्ष की सार्थकता तकदीर नहीं तदबीर पर भरोसा करें, तब ही है नववर्ष की सार्थकता Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on January 01, 2016 Rating: 5

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