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इस मामले में भाजपा के स्टार प्रचारक और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाकी नेताओं के मुकाबले भारी पड़ते दिखाई पड़ते हैं। बिहार की रैली में दिए गए उनके भाषणों में एक होमवर्क नजर आत है। यह बात और है कि उनका होमवर्क और लेखा-जोखा राष्ट्रीय आंकड़ों पर आधारित होता है और स्थानीय आंकड़े यानी राज्य स्तरीय आंकड़े उनमें गौण रहते हैं। यदि बिहार के स्थानीय नेता कुछ भी होमवर्क किए होते तो उनका भरपूर उपयोग उनके स्टार प्रचारक मोदी जरूर करते। क्या भाजपा के राज्य नेता के पास इतना समय नहीं है कि वे नीतीश-लालू के राज का काला चिट्ठा आम जनता के सामने लाते और वह इस बात की तश्दीक करते कि यदि सूबे में भाजपा का शासन होता तो बिहार की तस्वीर भी कुछ अलग होती। भाजपा सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर बिहार जीतने का दंभ भर रही है।
दूसरी ओर, नीतीश और लालू की जोड़ी जातीय समीकरण और लोकलुभावने योजना के जरिए सूबे की सत्ता को एक बार फिर हथियाना चाहती है। सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने प्रेस कांफ्रेंस में मोदी के भाषण की सफाई में जो आंकड़े पेश करते हैं, वे सिर्फ कागजी लगते हैं और ऐसा लगता कि किसी बोरिंग शिक्षक की क्लास में बैठे हों और वे गुणा-भाग के जरिए आंकड़ों की गलतियां बता रहे हों। चूंकि उनका प्रेस कांफ्रेंस मोदी के भाषण के तुरंत बाद होता है, ऐसे में जाहिर सी बात है कि वे कितना होमवर्क करते होंगे, आसानी से समझा जा सकता है। वहीं, उनके सहयोगी और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद वाकपटुता और शब्दों की बाजीगरी के जरिए रैलियों और भाषण में जमकर तालियां तो बटोरते हैं लेकिन होमवर्क के नाम पर वे भी सिफर ही रहते हैं।
राजनीति के नए दौर में यह मानना होगा कि अब चुनाव में वही जीत हासिल करेगा, जो जितना होमवर्क के साथ-साथ मेहनत करेगा। 2014 के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं के रुझान के बाद भी तमाम पार्टियों और नेता इस बात से अंजान हैं कि राजनीति की शतरंजी चालें कैसे खेली जाएं? जबकि उन्होंने देखा है कि मोदी ने किस तरह उस वक्त पूरे देश में दौरा किया, किस तरह विभिन्न राज्यों में जाकर मतदाताओं के घावों को छुआ और मरहम लगाया, यह किसी से छुपी नहीं है।
ऐसे में जब बिहार में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने हैं तो सत्ताधारी नीतीश-लालू और कांग्रेस की तिकड़ी के साथ-साथ सत्ता का स्वप्न देख रही भाजपा को चुनाव को लेकर कुछ होमवर्क जरूर करना चाहिए। होमवर्क तो सभी परीक्षाओं में पास करने के लिए जरूरी होता है। नीतीश और लालू को होमवर्क करनी चाहिए कि पिछले 25
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बहरहाल, बिहार की राजनीति और विधानसभा चुनाव पर सिर्फ सूबे की ही नहीं बल्कि पूरे देश की नजरे हैं। इतना ही नहीं, राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान जिस तरह से बिहार की राजनीति और इसके घटनाक्रम पर है कि आने वाले कुछ दिनों या महीनों में यहां की हर खबर या फिर राजनीतिक की तमाम चालें सुर्खियों में होंगी और
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भारतीय राजनीति अब वैसी राजनीति नहीं रही जो सिर्फ लोकलुभावन वादे और बातों के इर्दगिर्द घूमती थी। अब जनता राजनीति दलों और उनके नेताओं से हिसाब मांगने का जज्बा रखने लगी हैं। भले ही वह सीधे-सीधे हिसाब न मांगती हो लेकिन तमाम सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने उन्हें ऐसा हथियार थमा दिया है कि वह हर किसी से सवाल पूछने की हिमाकत करता है। अब बातों-बात में फंसाकर मतदाताओं को मूर्ख बनाना आसान नहीं है और वह भी तक जब मंडल आयोग के लागू होने के बाद समाज के हर तबके में जागरूकता आई हो।
बिहार की राजनीति अब बदल चुकी है और मतदाताओं को भी राजनीति समझ में आने लगी है। अब सिर्फ थोथे बयानबाजी के जरिए सत्ता हासिल नहीं की जा सकती है। नेताओं को क्षेत्र में काम करना होगा और उन्हें यह साबित करना होगा कि वे ही उनके सच्चे सेवक हैं और वे उनके सभी सुख-दुख में साथ हैं। यह काम सिर्फ चुनावी मौसम में ही नहीं बल्कि पूरे पांच वर्ष तक दिखाना होगा। इसके अलावा, उन्हें अपने काम का लेखा-जोखा भी रखना होगा और फिर समय के साथ उन्हें बताना होगा कि दूसरे विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र के मुकाबले उन्होंने क्या अलग काम किया है। अपने क्षेत्र को उन्हें मॉडल की तरह पूरे देश के सामने पेश करना होगा और तभी वे चुनावी मैदान में अपना झंडा लहरा सकेंगे। (ये लेखक के निजी विचार हैं.)
राजनीतिनामा (4): होमवर्क करना सीखें तमाम पार्टियां
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
September 02, 2015
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