‘गाड़ी या महामारी’ सुनने में भले ही अजीब लगे, किन्तु यह अकाट्य सत्य है कि
वाहनों की बढ़ती संख्यां अब महामारी का पर्याय बनता जा रहा है और इस महामारी को
रोकने के लिए कोई ठोस पहल नहीं की जा रही है.
एक ताजा
सर्वे रिपोर्ट (जी टीवी पर प्रकाशित) के अनुसार वाहनों से नाजायज वसूली का काला
कारोबार करीब 200 करोड़ से अधिक का है जिसका लाभ पुलिस एवं परिवहन अधिकारियों तक
पहुँचता है. चोरी के वाहनों का नाजायज निबंधन का हिसाब-किताब इससे अलग है.
अहम बात
यह है कि गाड़ियों की बढ़ती संख्यां महामारी का रूप धारण करता जा रहा है. प्रतिदिन
हजारों लोगों की मौत वाहन दुर्घटना में हो रही है. आश्चर्य की बात यह है कि परिवहन
अधिकारी दुर्घटनाओं की रोकथाम की बजाय राजस्व उगाही पर ज्यादा ही ध्यान केंद्रित
कर रहे हैं. मजबूरी उनकी भी है. एक वाहन निरीक्षक ने इस प्रतिनिधि को बताया कि उन्हें
निश्चित रकम वसूल कर जमा करने का निर्देश है.
गत
दिनों 7 सवारियों की क्षमता वाले एक छोटे वाहन पर 18 यात्री सफर कर रहे थे.
मुरलीगंज के पास वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया और पानी ने जा गिरा. मौके पर दो
यात्रियों की मौत हो गई, जबकि कई घायल हो गए, जिनमें कुछ की हालत गंभीर है. यह कोई
एकलौती घटना नहीं है. इस तरह की घटनाएँ लगातार इस क्षेत्र में घट रही है और सड़कों
पर दौड़ रही महामारी की चपेट में लोग आकर असमय ही काल-कलवित हो रहे हैं. आलम यह है
कि पैदल यात्रियों के लिए सड़क अब बची ही नहीं है. अकसर कई घटना विभिन्न कारणों से दर्ज
नहीं हो पा रही है. जिस कारण वाजिब आंकड़े सामने नहीं आ रहे हैं. अपुष्ट सूत्रों की
मानें तो प्रत्येक माह दर्जनों मौतें हो रही हैं. ज्यादातर घटनाओं में चालक की
लापरवाही सामने आई है. दूसरे कारणों में छोटे उम्र के बच्चों द्वारा वाहन चलाना,
ओवरलोडिंग और सड़कों का अतिक्रमण सम्मिलित है.
मधेपुरा
जैसे छोटे जिले में करीब 50 हजार वाहन निबंधित हैं. बड़ी तादाद बाहरी वाहनों की भी
है, जिस कारण सड़कें संकड़ी हो रही है. सिलसिला यही रहा तो वह दिन दूर नहीं जब
हाइब्रिड गाड़ियों की तरह बहुमंजिली हाइब्रिड सड़क भी बनानी पड़ सकती है.
देव नारायण साहा
वरिष्ठ पत्रकार, टाइम्स ऑफ इंडिया.
मधेपुरा.
गाड़ी या महामारी ?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 13, 2013
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