पत्रकारिता और चमचागिरी

राकेश सिंह/१९ मार्च २०११
लोकल प्रिंट मीडिया में 'पत्रकारिता' के नाम को बदलकर यदि चमचागिरी रख दिया जाय तो अतिशयोक्ति नही होगी.सच कहूँ तो स्थानीय पत्रकारों को बुरा लगेगा क्योंकि सच है ही कड़वा.पर हकीकत भी यही है कि जिले के आलाधिकारियों की चमचागिरी में ये पत्रकार दिन रात एक किये हुए हैं.प्रशासन के हर कदम की सिर्फ तारीफें ही लोगों तक पहुंचाने का ठेका ले रखे हैं ये.आला अधिकारी तो आला हैं,पर ये पत्रकार आपको पंचायत और प्रखंड स्तर पर भी दांते निपोरते हुए बैठकर चमचागिरी करते हुए नजर आ जायेंगे.मधेपुरा में भी दो-चार को छोड़कर प्रिंट मीडिया के सारे पत्रकार बिकाऊ हैं.और इनकी कीमत है-एक अदद कप चाय और एक खिल्ली पान (रवि-तुलसी अलग से).पान खाकर ये अपनी खिल्ली उड़वाते हुए घूम रहे हैं.
        हालात और भी बदतर हैं.यदि किसी पत्रकार ने डीएम साहब या एसपी साहब के पास अपनी पैठ बना ली है तो दूसरे भाई साहब वहां पहले की चुगली करते हुए नजर आयेंगे.ख़बरें न छापने के ही कम्पीटीशन को लीजिए,एक ने चमचागिरी में प्रशासन के खिलाफ दो लाइनें ही लिखी,तो दूसरे ने खबर छापी ही नही.एक महीने तक चलने वाले सिंघेश्वर मेला को पन्द्रह दिन में ही समाप्त कर मेले की महत्ता कम कर दी गयी.पर ये हैं कि सारी बातें उठा ही नही सकते.दरअसल चमचागिरी में बड़े मुद्दे भी छोटे पड़ जाते हैं.
       इनकी भी अपनी दलीलें हैं.मैनेजमेंट प्रति समाचार इतने कम पैसे देती है कि दलाली न करें तो खाएं कहाँ से? ऊपर से बॉस का प्रेसर इतना कि समझ में नही आता कि क्या करें ये.कन्फ्यूज्ड होकर रह गए हैं कि पत्रकारिता करें या चमचागिरी.पेट चलाने के लिए चमचागिरी ही बेहतर ऑप्शन है.आमलोगों का क्या?गलियां देनी तो शुरू कर ही दिए हैं.जो भी हो,गालियों की चोट तो तो चमचागिरी के सुख के सामने हलके पड़ जाते हैं.और गालियों का क्या?एक चमचे ने दलील दी-मानो कोई व्यक्ति तुम्हे आम दे रहा है और तुमने ली ही नही,आम तो उसी के पास रह गया न!उसी तरह कोई तुम्हे गाली दे,मत लो,उसी के पास रह जायेगी.जाहिर है,सुबह होगी, शाम होगी,इन चमचों की जिंदगी यूं ही तमाम होगी.
पत्रकारिता और चमचागिरी पत्रकारिता और चमचागिरी Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on March 19, 2011 Rating: 5

3 comments:

  1. राकेश जी अच्छा लेख है,
    पर यह विषय बहुत ही बड़ा है. विषय पर और अच्छी पकड़ बनायीं जा सकती है. एक सुझाव देना चाहूँगा कि इस विषय से सम्बंधित और भी तथ्य इकठ्ठा कीजिये, तथ्यों को सामने रखिये और एक बेहतर तार्किक लेख लिखिए.
    मानता हूँ इसके लिए थोड़ा समय निकलना होगा और शोध कि आवश्यकता होगी, पर यकीं मानिये आप इसे आसानी से कर सकते है.
    कोई भी दो अख़बार उठाइए और महीने भर कि खबर खंगालिए, देखिये कि कितनी ख़बरें प्रशासन के खिलाफ लिखी गयीं और कितनी ख़बरों का आमजन के बेहतर जीवन से सरोकार है..
    आंकड़े सामने होंगे और ऐसे तथाकथित पत्रकारों को नंगा करने और आईना दिखाने का और बेहतर मौका मिलेगा.

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  2. Chamchagiri ka funda world level ka funda hai aap itne chhote level se kyo pareshan hai.Aise aapne mudda uthaya hai to bahut achchha kiya kyoki en muddo se kisi ko koi matlab hi nahi hai.Patrakaro ko shayad samajh me aa jaye aur we bhi madhepura times ki tarah chamchagiri ko chhor hakikat chhapne ka kam kare .

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  3. sahi mudda hai aapka mera to ye mannana hai ke sirf thori si wafadari ki jay is patrkarita ke liye to v bahot nichor janta ke samne sach ban kar aa jayegi ,lekin in patrkaron ko to alaadhikaro ka aor apne priyjano me hi pura samaj dikhta hai

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