रूद्र नारायण यादव/२० जून २०१०
एक समय था जब मधेपुरा की जनता अपराधियों के आतंक के साए में जीती थी.अपराधियों का तांडव इस कदर मधेपुरा में हो रहा था मानो प्रशासन शक्तिहीन होकर मूक दर्शक बनी खड़ी हो.पर आज हालात निश्चित रूप से बदले हुए हैं.आम जनता से लेकर व्यवसायियों तक ने बहुत दिनों के बाद राहत की सांस ली है.अब लोग देर रात भी जिले में कहीं आने जाने में असुरक्षित नहीं महसूस करते.और निश्चित रूप से अपराधमुक्त हो रहे मधेपुरा इस स्थिति में लाने का सबसे अधिक श्रेय हाल में ही आये मधेपुरा के आरक्षी अधीक्षक वरुण कुमार सिन्हा को जाता है.
इनकी दो महत्वपूर्ण स्ट्रेटेजी काफ़ी कारगर साबित हो रही है.पहला एस० ड्राईव या स्पेशल ड्राइव और दूसरा स्पीडी ट्राइल.एस०ड्राइव सघन छापामारी कर अभियुक्तों को गिरफ्तार करने का अभियान है,जबकि स्पीडी ट्राइल अपराधियों को क़ानून के शिकंजे में कसकर न्यायालय द्वारा सजा दिलवाने की रणनीति है.
हाल के दिनों में आरक्षी अधीक्षक द्वारा कई एस० ड्राइव कर अनगिनत अभियुक्तों को सलाखों के पीछे पहुँचाया गया है.अगर १९ जून की रात के ही एस०ड्राइव की बात लें तो कल ३४ वारंटियों को अरेस्ट किया गया जिसमे तीन ऐसे भी अपराधी हैं जिनके विरूद्ध न्यायालय ने स्थायी वारंट निर्गत किया था तथा चार अपराधी ऐसे थे जिन्हें फरार मुजरिम घोषित किया गया था और दो वेटेरन क्रिमिनल जिसमे मधेपुरा के ललटू यादव को रंगे हाथ एक देशी पिस्तौल तथा तीन कारतूस के साथ पकड़ा गया जो मधेपुरा तथा सुपौल के राहजनी के कई मामलों में वांछित था.तथा दूसरा खोपैती का कामेश्वर यादव जो सौरबाजार डकैती केश में वांछित था . ये सभी अपराधी अभी जेल के अंदर हैं.पुलिस की दूसरी रणनीति इन अपराधियों को जेल में भी सांस लेने नहीं दे रही है.पहले स्पीडी ट्राइल में पुलिस गवाह लाने में पीछे रह जाती थी और अपराधी जमानत पर जेल से रिहा हो जाते थे.पर अब हालात कुछ और हैं.मधेपुरा पुलिस सिर्फ मई २०१० में बड़े अपराध से जुड़े नौ अभियुक्तों को स्पीडी ट्राइल के जरिये सजा दिलवाने में कामयाब रही है.इसके लिए आरक्षी अधीक्षक ने न्यायालय में भी एक अवर निरीक्षक मो० इनामूल को पदस्थापित किया है जो न सिर्फ मुक़दमे के साक्षियों को न्यायालय में प्रस्तुत कराने में अहम भूमिका निभा रहे हैं,बल्कि साक्षियों को न्यायालय से आने-जाने का खर्च दिलाने के प्रति भी चिंतित रहते हैं.
इनकी दो महत्वपूर्ण स्ट्रेटेजी काफ़ी कारगर साबित हो रही है.पहला एस० ड्राईव या स्पेशल ड्राइव और दूसरा स्पीडी ट्राइल.एस०ड्राइव सघन छापामारी कर अभियुक्तों को गिरफ्तार करने का अभियान है,जबकि स्पीडी ट्राइल अपराधियों को क़ानून के शिकंजे में कसकर न्यायालय द्वारा सजा दिलवाने की रणनीति है.
हाल के दिनों में आरक्षी अधीक्षक द्वारा कई एस० ड्राइव कर अनगिनत अभियुक्तों को सलाखों के पीछे पहुँचाया गया है.अगर १९ जून की रात के ही एस०ड्राइव की बात लें तो कल ३४ वारंटियों को अरेस्ट किया गया जिसमे तीन ऐसे भी अपराधी हैं जिनके विरूद्ध न्यायालय ने स्थायी वारंट निर्गत किया था तथा चार अपराधी ऐसे थे जिन्हें फरार मुजरिम घोषित किया गया था और दो वेटेरन क्रिमिनल जिसमे मधेपुरा के ललटू यादव को रंगे हाथ एक देशी पिस्तौल तथा तीन कारतूस के साथ पकड़ा गया जो मधेपुरा तथा सुपौल के राहजनी के कई मामलों में वांछित था.तथा दूसरा खोपैती का कामेश्वर यादव जो सौरबाजार डकैती केश में वांछित था . ये सभी अपराधी अभी जेल के अंदर हैं.पुलिस की दूसरी रणनीति इन अपराधियों को जेल में भी सांस लेने नहीं दे रही है.पहले स्पीडी ट्राइल में पुलिस गवाह लाने में पीछे रह जाती थी और अपराधी जमानत पर जेल से रिहा हो जाते थे.पर अब हालात कुछ और हैं.मधेपुरा पुलिस सिर्फ मई २०१० में बड़े अपराध से जुड़े नौ अभियुक्तों को स्पीडी ट्राइल के जरिये सजा दिलवाने में कामयाब रही है.इसके लिए आरक्षी अधीक्षक ने न्यायालय में भी एक अवर निरीक्षक मो० इनामूल को पदस्थापित किया है जो न सिर्फ मुक़दमे के साक्षियों को न्यायालय में प्रस्तुत कराने में अहम भूमिका निभा रहे हैं,बल्कि साक्षियों को न्यायालय से आने-जाने का खर्च दिलाने के प्रति भी चिंतित रहते हैं.
उम्मीद की जा सकती है कि यदि इसी तरह अपराधियों के पाँव उखारने में पुलिस कामयाब होती चली गयी तो एक दिन मधेपुरा पूरी तरह अपराधमुक्त मधेपुरा बन सकता है.
आरक्षी अधीक्षक के विशेष अभियान से अपराधियों के पाँव उखड़े
Reviewed by Rakesh Singh
on
June 20, 2010
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