देवी राधा किशोरी जी ने कथा की शुरुआत करते हुए बताया कि किस प्रकार रुक्मणी, जो विदर्भ देश की राजकुमारी थीं, श्रीकृष्ण को मन-ही-मन अपना पति मान चुकी थीं। लेकिन रुक्मणी के भाई रुक्मी ने उसका विवाह चेदिराज शिशुपाल से तय कर दिया। रुक्मणी ने अपने मन की बात श्रीकृष्ण तक एक दूत के माध्यम से पहुँचाई।
कथा में आगे बताते हुए राधा किशोरी जी ने कहा कि जैसे ही भगवान श्रीकृष्ण को रुक्मणी की पुकार मिली, वे तुरंत रथ लेकर विदर्भ पहुँचे। रुक्मणी जब मंदिर में देवी की पूजा कर लौट रही थीं, उसी समय श्रीकृष्ण ने उन्हें रथ में बैठाया और सबके सामने उन्हें अपने साथ ले गए। यह दृश्य मानो धर्म और प्रेम की विजय की घोषणा थी।
उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण का यह कार्य केवल प्रेम का प्रतीक नहीं, बल्कि यह भी दर्शाता है कि जब कोई भक्त सच्चे मन से भगवान को पुकारता है, तो वे हर बंधन तोड़कर उसकी रक्षा करते हैं।
कथा स्थल पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। महिलाओं, पुरुषों, बच्चों व बुजुर्गों ने भावपूर्ण भजनों पर तालियाँ बजाईं और कथा का आनंद लिया। भक्तिरस में डूबे श्रद्धालुओं के चेहरे पर आस्था और संतोष की झलक साफ़ दिखाई दे रही थी।
कथा के अंत में देवी राधा किशोरी जी ने सभी को श्रीकृष्ण के जीवन से प्रेरणा लेने की बात कही। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण केवल एक योद्धा नहीं, बल्कि आदर्श प्रेमी, मित्र, पुत्र और मार्गदर्शक हैं।
कार्यक्रम के आयोजकों ने बताया कि कथा सभी क्षेत्रवासियों से अधिक से अधिक संख्या में पहुँचकर पुण्य लाभ अर्जित करने की अपील की। इस दिव्य आयोजन में आसपास के गाँवों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग ले रहे हैं। भक्ति, ज्ञान और आध्यात्मिक ऊर्जा से ओत-प्रोत इस कथा ने जीतापुर क्षेत्र को भक्तिमय बना दिया है।
(रिपोर्ट: संजय कुमार)
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