भगवान पार्श्वनाथ के अवदानों की चर्चा करते हुए मुनि रमेश कुमार ने बताया कि भगवान पार्श्वनाथ ने संसार और सन्यास दोनों का जीवन जीया। वे भौतिक पदार्थों को छोड़कर परमात्मा की यात्रा पर निकल पडे, उन्होंने जीवन शुद्धि के लिए कठोर तप किया। उनके तप में पूर्ण सादगी थी, जीवन शुद्धि का मर्म था।वास्तव में तप वही है जिसके साथ न प्रदर्शन जुडा हो न ही प्रलोभन जुडा हो। जीवन स्वयं एक तपस्या है। सुविधाओं के बीच सीमाकरण में रहना, अभावों के तृप्ति को पा लेना भी बहुत बडा तप है। प्रतिकूलताओं को समत्व से सह लेना वैचारिक संघर्ष में सही समाधान पा लेना और इन्द्रियों को विवेकी बनाकर रखना अपने आप में तप है।भगवान पार्श्वनाथ ने इन सभी प्रकार के तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए तीर्थंकर बनें। जैन धर्म में आज भी लाखों लाखों भक्त उनके चमत्कारी मंत्रों का जप करते हैं।
इससे पूर्व मुनि रमेश कुमार के महामंत्रोच्चारण से समारोह का आगाज हुआ। तेरापंथ महिला मंडल ने मंगलाचरण किया। उप सभा के संयोजक नवरतन मल जी सेठिया ने आगन्तुक सभी लोगों का स्वागत किया। तेरापंथ महासभा के सदस्य राजेश जी पटावरी ने अपने विचार व्यक्त किए। तेरापंथ महिला मंडल, तेरापंथ युवती मंडल, तेरापंथ कन्या मंडल ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। संजय जी पुगलिया, विजय जी बोथरा, कमल जी पटावरी, स्वाति सेठिया, अर्पण सेठिया, गजल डागा,सुमन बोथरा आदि अनेक वक्ताओं ने अपने सारगर्भित विचार व्यक्त किये।
समारोह का संयोजन मुनि रत्न कुमार जी ने कुशलता पूर्वक किया। राकेश जी सेठिया ने आभार ज्ञापित किया।
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