दुर्गा पूजा मनाने के पीछे एक कहानी है कि मुरलीगंज के कुश्ती पहलवानों द्वारा बगल के गांव रहटा में दुर्गा पूजा के अवसर पर एक कुश्ती का आयोजन किया गया था. जिसमें रहटा के पहलवान कुश्ती में शिकस्त खा गये. उन्होंने मुरलीगंज के कुश्ती पहलवानों के साथ अभद्रता के साथ मारपीट किया. तदुपरांत मुरलीगंज की जनता के उस समय के जनप्रतिनिधि जो हर समुदाय से एक-एक हुआ करते थे. जिसमें भगत परिवार से गैना भगत व बंसीलाल भगत तथा यादव परिवार से बाबूलाल मंडल आदि लोगों ने इस तरह के दुर्व्यवहार पर आक्रोशित होकर यहां की जनता को यह फरमान दिया कि वहां से देवी दुर्गा की प्रतिमा को ही उठाकर मुरलीगंज शहर में स्थापित करें. हजारों की भीड़ ने रहटा पहुंचकर मेला मैदान से देवी दुर्गा की प्रतिमा को उठाकर मुरलीगंज ले आकर दशमी को ही यहां रख कर पूजा अर्चना के बाद फिर विसर्जन कर दिया. तब से लेकर अब तक दुर्गा पूजा उसी स्थल पर मनाया जाता है.
मन्नत पूरी होने पर बनाया टीन का मंदिर
कहा जाता है कि पहले प्रत्येक वर्ष पूजा के समय में फुस के घरों का निर्माण कर उसमें मूर्तियां स्थापित कर पूजा की जाती थी. एक बार हैजा के प्रकोप से बहुत ज्यादा लोगों की मौत होने लगी. इसी समय अनार चंद भगत नामक व्यक्ति बहुत ज्यादा बीमार थे. तब उनके पिता ने देवी प्रतिमा के सामने यह मनौती रखी कि अगर मेरा पुत्र ठीक हो जायेगा तो मैं फुस के घर की जगह टीन का घर बनवा दूंगा. मां ने उनकी पुकार सुनकर उनके पुत्र को ठीक कर दिया. तब उन्होंने फुस के घर की जगह टीन का घर बनाया. तब से लेकर 1987 तक उसी टिन के घर में मां की पूजा अर्चना होती थी.
चंदा कर मंदिर का किया गया निर्माण
शहर के कुछ गणमान्य बुद्धिजीवी व्यवसायियों, द्वारा इस पर एक नई सोच के साथ पुनर्निर्माण की ओर ध्यान दिया गया. इस अगुवाई में के.पी. महाविद्यालय के इतिहास विभाग के तत्कालीन विभागाध्यक्ष प्रो. नगेंद्र प्रसाद यादव ने एक नये सिरे से आम सभा का आयोजन करवाया. जिसके सचिव स्वर्गीय सुखदेव दास बने, अध्यक्ष स्वर्गीय राजेंद्र भगत तथा कोषाध्यक्ष स्वर्गीय अनार चंद भगत बने एवं सदस्य के रूप में स्वर्गीय निर्मल भगत स्वर्गीय गजेंद्र सिंह स्वर्गीय भूमि मंडल शहर के प्रसिद्ध व्यवसायी शिव प्रकाश गड़ोदिया, स्वर्गीय प्रो कुसुम लाल यादव, प्रो, नागेंद्र प्रसाद यादव, स्वर्गीय सुखदेव प्रसाद यादव, राम जी साह आदि शामिल थे.
कमेटी का निर्माण कर मंदिर के पुर्निमाण की दिशा में चंदा एकत्रित करने के बाद तत्कालीन थानाध्यक्ष पशुपति सिंह द्वारा भवन निर्माण की नींव रखी गई थी. वहीं मंदिर में एक रंगमंच स्टेज की भी स्थापना हुई और हर वर्ष कुछ नये ढंग से नये निर्माण की परंपरा चलती रहती है. कहा जाता है कि इस मंदिर से कोई खाली हाथ नहीं लौटता. मां हर किसी की मनोकामना पूरी करती है. बलि प्रथा मंदिर के परिसर में आयोजित नहीं की जाती. यहां पर पान परीक्षा के उपरांत स्टेट हाईवे 91 के किनारे शीतला माता के मंदिर के प्रांगण में बलि प्रदान किया जाता है.
(नि. सं.)
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