प्रो. सिन्हा ने कहा कि प्रेमचंद ऐसे कथाकार थे जिन्होंने हिन्दी कथा साहित्य को चन्द्रकान्ता के गर्त से निकालकर यथार्थ की भावभूमि पर अवस्थित किया. उनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं और कालजयी है. विभाग में कार्यरत वरिष्ठ प्राध्यापक प्रो. विनय कुमार चौधरी ने कहा कि प्रेमचंद लोकजीवन के कथाकार हैं. उन्होंने पात्रों के साधारत्व में ही वैशिष्ट्य और और रमणीयता के अन्वेषण का प्रयास किया.
डा. पूजा गुप्ता ने कहा कि जब हिन्दी के पाठक जासूसी, एय्यारी उपन्यासों के पढ़ने के आदी थे, उस वक्त प्रेमचंद अपने पाठकों की सामाजिक और राजनीतिक चेतना जागरूक कर रहे थे. जे.आर.एफ. शोध छात्र विभीषण कुमार ने कहा कि प्रेमचंद अपने साहित्य में आमजन जैसे- किसान, मजदूर और दलितों को प्रतिष्ठित करने वाले साहित्यकार हैं. उनका साहित्य जन साहित्य है. समाजशास्त्र विभाग के डा. विवेक सिंह ने कहा कि प्रेमचंद ने ‘निर्मला’, ‘सेवादन’ ‘गोदान’, ‘गबन’ और ‘कर्मभूमि’ जैसे उपन्यासों के जरिए उस दौर के सभी समाज का खाका खींचा है. वे कहानी के जादूगर थे.
इस अवसर पर संजीव कुमार पासवान, चंदन कुमार, जुगनू कुमारी, मनीषा कुमारी, नंदन कुमार, सुनील, राजकिशोर आदि उपस्थित थे.
(नि. सं.)

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