क्या है इलाज
जिला पशुपालन पदाधिकारी बताते हैं कि जब किसान को ऐसा लगे कि हमारा पशु घास ठीक से नहीं खाता है. जुगाली करना बंद कर दिया है. साथ ही पशुओं के शरीर में छोटा छोटा फुंसी भी निकल रहा है तो समझ लेना चाहिए कि पशु को लंफी बीमारी हो गई है. ऐसे में किसान या पशुपालक को चिकित्सक की सलाह से तत्काल बड़े पशु को लोंगासिलिन 48 लाख एमजी का सुई ,छोटे पशुओं को चार लाख एमजी का सुई के साथ ही मेलोनेक्स प्लस सुई,आइवर मैट्रिन सुई सुबह और शाम पशु को देना चाहिए. साथ में टिबरव 500 एमजी का टेबलेट भी नियमित रूप से एक सप्ताह तक देने से पशु को इस बीमारी से बचाया जा सकता है. उन्होंने बताया कि अगर किसी पशु को यह बीमारी हो जाए तो किसान उस पशु को दूसरे पशु के नजदीक से हटा कर रखें नहीं तो यह बीमारी दूसरे पशु में भी जल्द फैलता है. उन्होंने बताया कि इस बीमारी से पशु की मौत एक सप्ताह के भीतर हो जाता है. लेकिन अगर समय से इलाज को शुरू कर दिया जाए तो मृत्यु की संभावना बहुत कम हो जाएगी. जिला के सभी पशुपालक व किसानों से आग्रह है कि अगर किसी किसान को अपने पशु में इस तरह की बीमारी का लक्षण दिखाई दे तो तत्काल नजदीकी पशु चिकित्सालय में जाकर पशु का जांच करा लें.
पशुओं को यह आहार दें
पशुओं को किसान हरा घास, चोकर, बाजार में मिलने वाला पशु आहार खिलाकर इम्युनिटी को बढ़ा सकता है. पशुपालन पदाधिकारी ने बताया कि जब पशु को यह बीमारी हो जाता है तो पशु सबसे पहले घास नहीं खाता है जिसके कारण पशु कमजोर हो जाता है.
यह बीमारी के लक्षण पशुपालक पदाधिकारी
पशु पालन पदाधिकारी ने बताया कि जब पशु को लंफी बीमारी होगा तो सबसे पहले पशु में तीन लक्षण दिखाई देगा.पशुओं को पैर में सूजन ,पूरे शरीर के भीतर छोटा-छोटा घाव वह पशु को तेज ज्वर होने पर लंफी की शिकायत हो सकता है जिस पशु का इम्युनिटी सिस्टम कमजोर हो जाता है उस पशु को यह बीमारी होता है. अगर पशु के शरीर मे किसी जगह पर यह बीमारी एक पशु में होगा तो दूसरे पशुओं में भी यह फैल जाता है.उन्होंने बताया कि यह बीमारी एक वायरस बीमारी है जो पशु के मुंह से फैलता है. जब किसी पशु को यह बीमारी हो जाए तो तत्काल उसके मुंह में जाबी (मुंह को ढकने वाला बांस या तार का बना सामान) यानी मुंह को किसी वस्तु से ढक देना चाहिए. सिर्फ जब पशु को खाना दिया जाए तभी उसके मुंह से जाबी को हटाया जाए.
(नि. सं.)
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