Special Report: “वास्तविकताओं को दरकिनार करती सूचनाओं की महामारी”

एक तरफ जहाँ मानव समुदाय कोरोना महामारी के विनाशकारी दुष्चक्र से निकलने को प्रयासरत है वहीं दूसरी ओर एक वर्ग ऐसा भी है जो अपने अल्प-ज्ञान और अंधविश्वास को केंद्र में रखकर बहुआयामी विशेषज्ञ के रूप में अपनी कुतर्क रूपी विशेषज्ञता के सहारे इस चक्रव्यूह से निकलने में बाधाएं उत्पन्न कर रहे हैं। इनके द्वारा परोसे गए जानकारी की प्रमाणिकता, वास्तविकता के आसपास भी नहीं फटकती । फिर भी ये वर्ग अपने संजाल के क्षेत्रफल में अशिक्षितों के साथ-साथ शिक्षितों को भी गुमराह कर पाने में लगभग सफल हो ही जाते हैं।

 उल्लेखनीय है कि कोई भी महामारी मानव समुदाय को जान-माल की क्षति पहुंचाने के साथ-साथ विश्वास, अंधविश्वास अफवाहें जैसे तत्व सामने लाकर रखते हैं । हमारा स्वास्थ्य क्षेत्र संसाधन के अभाव के कारण पड़ने वाले दबाव से निकलने को प्रयासरत हैं, वहीँ इस दिशा में अफवाहों एवं भ्रामक सूचनाओं के फैलाव ने दिग्भ्रमित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। आज जब चारों ओर इस महामारी के कारण निराशा और उदासी का भाव मन को नकारात्मकता की खाई में झोंक देने के लिए विवश कर रहा है, ऐसे में यह तत्व "एक तो करेला, ऊपर से नीम चढ़ा" जैसे कहावत की प्रासंगिकता को सिद्ध कर रहे हैं।

दरअसल ऐसे समयों में अफवाहों का बाजार इस प्रकार गर्म हुआ प्रतीत होता है कि वैज्ञानिक शोधों, चिकित्सकीय एवं संस्थागत अनुभवों से कहीं ज्यादा तत्कालीन महामारी का उद्भव, विकास एवं समाधान की दिशा में तथाकथित अफवाह विश्वविद्यालय में अध्ययनरत छात्रों ने इस दिशा में प्रगति कर ली है। अपनी शोध पत्रिकाओं को ये डिजिटल मीडिया के माध्यम से प्रकाशित करते रहते हैं, जहाँ एक दूसरा वर्ग इन सूचनाओं को वास्तविकता की कसौटी परखे बिना हाथों- हाथ बढ़ाते रहते हैं। इसी संदर्भ मैं उनके शोधों से निकले निष्कर्षों में कोरोना वायरस की मौजूदगी को ही नकार कर उसके भौतिक उपस्थिति का प्रमाण हमारे सरकारी तंत्रों एवं वैज्ञानिक समुदायों से मांगा जाता है। जबकि वायरस के आकार- प्रकार के बारे में उनकी जानकारी लगभग नगण्य ही रहती है। वहीं वास्तविक रुप से वायरस का आकार 30 नैनोमीटर से 450 नैनोमीटर तक हो सकता है, साथ ही इसके एंटीजन का आकार और भी छोटा हो सकता है, जिसे खुली आंखों से देख पाना असंभव है। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी के माध्यम से ही उन अफवाह विशेषज्ञों को इसका दर्शन करवाया जा सकता है।

 ऐसे भ्रामक सूचनाओं को फैलाने वाले कुछ व्यक्तियों ने अति आत्मविश्वास में आकर इतना तक मान लिया कि, भारतीयों का इम्यूनिटी पावर अन्य देशों की अपेक्षा ज्यादा मजबूत है । वे इतने धूल- मिट्टी में लिपट कर अपने बचपन के आगे बढ़ते हुए उम्र में संलिप्त हैं कि उन्हें कोई वायरस संक्रमित नहीं कर सकती । इसके अलावा भारतीय कई प्रकार के जड़ी-बूटी, मसाले आदि के सेवन से शारीरिक रूप से अपेक्षाकृत अधिक स्वस्थ हैं। यहाँ तक कि इसमें उलझे लोग स्टीम लेने, शराब का सेवन करने, गांजा पीने, प्याज और नींबू के रस को नाक में डालने, मंत्रों का उच्चारण एवं गोमूत्र का सेवन आदि जैसे क्रियाकलापों से वायरस को खात्मे का अचूक उपाय तक मानने लगे।

गर्त में अगर देखा जाए तो यह बात तभी तक अच्छी लगती है जब तक आप स्वस्थ हैं। वहीँ अफवाह फैलाने वाले कुछ व्यक्तियों को मैं निजी तौर पर जानता हूँ, जब वे कोरोना से संक्रमित हुए तो उनका नजरिया एकदम से उलट हो गया । जो मास्क पहनने को नर्क समझते थे, साथ ही अफवाह फैलाना अपनी सामाजिक उत्तरदायित्व समझते थे, अब वही कहे फिरते हैं "कोरोना जानलेवा बीमारी है, सुरक्षा ही एकमात्र उपाय है "।  इतना जरूर है कि भारत में पहली लहर में अपेक्षाकृत कम जान माल की क्षति हुई । वहीं चिकित्सकीय एवं वैज्ञानिक महकमों को भी ऐसा प्रतीत होने लगा था कि वास्तविक में ऐसा हो रहा है, लेकिन समयांतराल में शोधों के अनुसार कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकल पाया। वस्तुतः आयुर्वेद के अनुसार इम्यूनिटी पावर को बढ़ाने के लिए सत्वबल अर्थात मनोबल पर बल दिया गया है। इस महामारी काल में चौतरफा नकारात्मक सूचनाओं की बमबारी से संवेदनशील और अति संवेदनशील व्यक्ति ज्यादा अवसादग्रस्त का शिकार हो रहे हैं । इस माहौल में अल्प-संक्रमण से ग्रसित व्यक्ति का आत्म -इच्छा के साथ-साथ आत्म संयम इतना कमजोर होने लगता है । जहाँ वे छोटे से उपचार से निरोग हो सकते थे वहीं वे कई बार गंभीर स्थिति में पहुंचने के कारण मृत्यु तक को भी प्राप्त कर लेते हैं । इसी मनोबल अर्थात मनःस्थिति को मजबूत करने के लिए पूजा, उपासना, ध्यान आदि के लिए आयुर्वेद पद्धति में सुझाया जाता है। इतना जरूर माना जा सकता है कुछ औषधि का सेवन, खानपान में सावधानी, व्यायाम आदि रोग प्रतिरोधक क्षमता के विकास में सहायक सिद्ध हो सकती है लेकिन इसे वायरस का इलाज मान लेना किसी भी दृष्टिकोण से तार्किक नहीं ठहराया जा सकता । हमें समझना होगा कि महामारी काल में आपातकालीन चिकित्सा की आवश्यकता होती है जो कि केवल जड़ी बूटी से संभव नहीं है।

पिछली लहर में एक अफवाह यह भी चली थी कि, गर्मियों में वायरस प्रभावहीन हो जाएगा ! क्योंकि वायरस गर्मी को झेल पाने में असमर्थ है जबकि ठीक इसके उलट वायरस ने अपनी प्रचंडता का एहसास गर्मियों में ही मुखर रूप से करवाया। हालांकि, वायरस जीवित कोशिका के बाहर सुसुप्त अवस्था में हजारों साल तक रह सकते हैं । जब भी ये जीवित कोशिका के संपर्क में आते हैं अपना पुनरुत्पादन कर संक्रमण का फैलाव आरंभ कर देते हैं। अफवाह विश्वविद्यालय के अंतर्गत शामिल अर्थशास्त्री वर्ग, कोरोना महामारी को उच्च वर्गों, दवा कंपनियों, बड़े देशों का षड्यंत्र तक बताकर भ्रम के बाजार को गर्म कर रहे हैं । इसी वर्ग से जुड़े भ्रम फैलाने वाले तकनीकी विशेषज्ञ के अनुसार, यह महामारी 5G के टेस्टिंग की वजह से उपजे हैं । कहा तो इतना तक जा रहा है कि इसके विकिरण से ही इस वायरस का फैलाव हुआ है। वास्तविक रूप से यह भी कुतर्क अपने प्रमाणिकता से बिल्कुल उलट है।

इस संदर्भ में मोबाइल और दूरसंचार सेवा कंपनियों के संगठन- सेल्यूलर ऑपरेटर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सी ओ ए आई) ने इस तर्क को अफवाह मात्र करार दिया है । इनके अनुसार, दुनिया के कई देशों में पहले ही 5G संचार सेवा की शुरुआत हो चुकी है। बावजूद इसके, वहां ऐसे किसी भी परिणाम के स्पष्ट प्रमाण का अभाव है। इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भी कोरोना महामारी का 5G से दूर-दूर तक संबंध नहीं है। इसके अलावा कोरोना वायरस संचार नेटवर्क और रेडियो तरंगों के माध्यम से एक जगह से दूसरी जगह संचरण नहीं कर सकते।

जहाँ अब पूर्ण टीकाकरण के लक्ष्य प्राप्ति ही कोरोना महामारी को नियंत्रण में लाने के लिए अचूक उपायों में अहम माना जा रहा है। वहीं इसे भी लेकर हमारे ग्रामीण एवं शहरी सामाजिक वातावरण में सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए भ्रामकता का दुष्प्रचार किया जा रहा है । इसके अंतर्गत वैक्सीन लाभार्थी का कोरोना संक्रमित होना, नपुंसकता की स्थिति में आ जाना, वैक्सीन लेने पर मृत्यु हो जाना आदि जैसे अफवाहों को फैलाया जा रहा है । यहाँ तक कि ऐसे लोग इसे 'धार्मिक संस्कारों' से जोड़ने के अलावा 'मोदी वैक्सीन'  तक का नाम देकर राजनीतिक फायदा उठाने तक में गुरेज नहीं कर रहे हैं। यह ऐसी स्थितियां हैं जो महामारी के संक्रमण की प्रसार के रोकथाम के साथ - साथ दीर्घकालीन समाधान की दिशा में बाधाएं उत्पन्न कर रहे हैं।

 बहरहाल ऐसा देखा जाता है कि, हमारे समाज के द्वारा ऐसी तर्कविहीन विभिन्न सूचनाओं को बढ़ती चिंताओं और आशाओं के चलते बिना प्रमाणिकता की जांच किए बिना स्वीकार लिए जाते हैं । दरअसल स्वयं को जीवित रखने के लिए अनायास रूप से प्रकट हुई लाइलाज समस्या के खतरों को गहरे रूप से देखने की प्रवृत्ति हमारे दिमाग की होती है। जहाँ स्वयं या अपनों को खोने का भय इस प्रकार समा जाता है कि वे गलत-सही का फर्क किए बगैर उन्हें सही मान लेते हैं । जिसमें कि उसे नजदीकी या तत्काल समाधान मिलता हुआ प्रतीत होता है । हालांकि मानव समाज को ऐसे प्रतिकूल परिस्थितियों में आशा एवं निराशा के बीच के अंतर को समझना होगा ।  एक और निराशा जहां मनुष्य को असहाय बना देती है वहीं दूसरी ओर आशा बिखरे उर्जाकणों का एकीकरण कर समस्या से निकलने में हमारी सहायता करते हैं । वर्तमान महामारी की रफ्तार को देखते हुए ऐसे समय में सबसे अधिक जरूरत घरेलू या पारिवारिक स्तर पर संवाद को मजबूत बनाने के साथ कुछ बहुआयामी पक्षों को सामने लाने का भी है जिसके अंतर्गत सरकारी एवं वैज्ञानिक सह चिकित्सकीय दिशा -निर्देशों का स्पष्ट, प्रभावी एवं पारदर्शी संवाद इस वक्त की सबसे बड़ी आवश्यकता है । इससे भरोसा बहाल होने के साथ-साथ अफवाहों एवं दुष्प्रचारों पर भी प्रहार होगा। यह समय सत्य को स्वीकार करने एवं मानवतावाद को केंद्र में रखकर आगे बढ़ने का है।





कृष्ण कुमार

जयप्रकाश नगर, वार्ड नंबर 6, मधेपुरा

(प्रतिभागी, सिविल सेवा परीक्षा)                               

Special Report: “वास्तविकताओं को दरकिनार करती सूचनाओं की महामारी” Special Report: “वास्तविकताओं को दरकिनार करती सूचनाओं की महामारी” Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on May 23, 2021 Rating: 5

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