मधेपुरा जिले के शंकरपुर प्रखंड के 42 प्राईमरी स्कूलों में बच्चे भीषण ठंड में भी बोरा और दरी पर बैठकर करते हैं पढाई.
प्राथमिक शिक्षा के लिए करोड़ों का बजट होने के बावजूद प्राथमिक विद्यालयों की हालत जस की तस बनी हुई है. बच्चों के बैठने के लिए बेंच और डेस्क तक उपलब्ध नहीं है. शिक्षकों को हजारों हजार रूपया का वेतन दिया जा रहा है, लेकिन जिन्हें शिक्षित करने के लिए इन्हें नियुक्ति दी गई है वही नौनिहाल पढ़ाई के लिए जमीन पर बोड़ा और दरी बिछाकर बैठने को मजबूर हैं. देश को आजाद हुए सात दशक गुजरने को हैं किंतु प्राथमिक विद्यालयों की हालत देखकर गुलामी की दास्ताँ की याद ताजा हो उठती है.
शंकरपुर प्रखंड मुख्यालय के प्राथमिक विद्यालय बडैरवा में कुल 254 बच्चों का नामांकन है. शनिवार को विद्यालय में 170 बच्चें उपस्थित थे. सभी बच्चें दरी और बोड़ा बिछाकर बैठे हुए थे. विद्यालय में तीन शिक्षक नियुक्त की गई है जबकि मानकों के अनुसार 90 बच्चों के लिए तीन शिक्षक ही नियुक्त की जानी हैं जिन्हें प्रत्येक माह करीब लाखों रूपये वेतन दिया जा रहा है.
मालूम हो कि 250 बच्चों के बैठने के लिए बेंच और डेस्क बमुश्किल से ढाई से तीन लाख रूपये में बाजार में बेहतर क्वालिटी के बेंच डेस्क उपलब्ध हैं. सरकार शिक्षक के वेतन, बच्चों के लिए एमडीएम, छात्रवृत्ति जैसे कई योजनाओं के नाम पर तो मोटी धनराशि खर्च कर रही है, लेकिन बच्चों के बैठने के लिए बेंच और डेस्क उपलब्ध कराने में अब तक नाकाम साबित होती आई हैं. मजबूरन इन विद्यालयों के बच्चों को जमीन पर बैठकर ही पढ़ाई करनी पड़ रही है. शिक्षक भी इस व्यवस्था के सामने खुद को लाचार बताने में कोई कसर नहीं छोड़ते. कई शिक्षकों का कहना है कि कोई सामाजिक संगठन या संस्था ही किसी विद्यालय को बेंच और डेस्क उपलब्ध करा दें तो बेहतर हो.
वहीं कुछ बच्चों के अभिभावकों का कहना है कि सरकार वैसे तो बच्चों को पढ़ने के लिए विद्यालय भेजने का विज्ञापन, टेलीविजन व अन्य माध्यमों से दिखाती है और उस पर करोड़ों रूपये खर्च करती है. जबकि स्कूलों में बच्चों को बैठने तक की व्यवस्था नहीं है. गांव में होने के कारण मजबूरन अपने बच्चों को प्राथमिक विद्यालय में ही भेजना पड़ता है.
बच्चों को भीषण ठंडी, गर्मी और सर्दी के मौसम में जमीन पर बैठाना सेहत के लिए भी खतरनाक है क्योंकि गर्मी में भूमि गर्म और सर्दी में ठंडी हो जाती है जिसके चलते बच्चे अक्सर बीमार भी हो जाते हैं. गौरतलब है कि सरकार की ओर से प्राथमिक विद्यालय में बच्चों को बैठने के लिए डेस्क बेंच का बजट का प्रावधान नहीं है इसलिए बच्चों को बोरा बिस्तर पर बैठकर ही पढ़ाई करना होगा.

प्राथमिक शिक्षा के लिए करोड़ों का बजट होने के बावजूद प्राथमिक विद्यालयों की हालत जस की तस बनी हुई है. बच्चों के बैठने के लिए बेंच और डेस्क तक उपलब्ध नहीं है. शिक्षकों को हजारों हजार रूपया का वेतन दिया जा रहा है, लेकिन जिन्हें शिक्षित करने के लिए इन्हें नियुक्ति दी गई है वही नौनिहाल पढ़ाई के लिए जमीन पर बोड़ा और दरी बिछाकर बैठने को मजबूर हैं. देश को आजाद हुए सात दशक गुजरने को हैं किंतु प्राथमिक विद्यालयों की हालत देखकर गुलामी की दास्ताँ की याद ताजा हो उठती है.
शंकरपुर प्रखंड मुख्यालय के प्राथमिक विद्यालय बडैरवा में कुल 254 बच्चों का नामांकन है. शनिवार को विद्यालय में 170 बच्चें उपस्थित थे. सभी बच्चें दरी और बोड़ा बिछाकर बैठे हुए थे. विद्यालय में तीन शिक्षक नियुक्त की गई है जबकि मानकों के अनुसार 90 बच्चों के लिए तीन शिक्षक ही नियुक्त की जानी हैं जिन्हें प्रत्येक माह करीब लाखों रूपये वेतन दिया जा रहा है.
मालूम हो कि 250 बच्चों के बैठने के लिए बेंच और डेस्क बमुश्किल से ढाई से तीन लाख रूपये में बाजार में बेहतर क्वालिटी के बेंच डेस्क उपलब्ध हैं. सरकार शिक्षक के वेतन, बच्चों के लिए एमडीएम, छात्रवृत्ति जैसे कई योजनाओं के नाम पर तो मोटी धनराशि खर्च कर रही है, लेकिन बच्चों के बैठने के लिए बेंच और डेस्क उपलब्ध कराने में अब तक नाकाम साबित होती आई हैं. मजबूरन इन विद्यालयों के बच्चों को जमीन पर बैठकर ही पढ़ाई करनी पड़ रही है. शिक्षक भी इस व्यवस्था के सामने खुद को लाचार बताने में कोई कसर नहीं छोड़ते. कई शिक्षकों का कहना है कि कोई सामाजिक संगठन या संस्था ही किसी विद्यालय को बेंच और डेस्क उपलब्ध करा दें तो बेहतर हो.
वहीं कुछ बच्चों के अभिभावकों का कहना है कि सरकार वैसे तो बच्चों को पढ़ने के लिए विद्यालय भेजने का विज्ञापन, टेलीविजन व अन्य माध्यमों से दिखाती है और उस पर करोड़ों रूपये खर्च करती है. जबकि स्कूलों में बच्चों को बैठने तक की व्यवस्था नहीं है. गांव में होने के कारण मजबूरन अपने बच्चों को प्राथमिक विद्यालय में ही भेजना पड़ता है.
बच्चों को भीषण ठंडी, गर्मी और सर्दी के मौसम में जमीन पर बैठाना सेहत के लिए भी खतरनाक है क्योंकि गर्मी में भूमि गर्म और सर्दी में ठंडी हो जाती है जिसके चलते बच्चे अक्सर बीमार भी हो जाते हैं. गौरतलब है कि सरकार की ओर से प्राथमिक विद्यालय में बच्चों को बैठने के लिए डेस्क बेंच का बजट का प्रावधान नहीं है इसलिए बच्चों को बोरा बिस्तर पर बैठकर ही पढ़ाई करना होगा.

सरकारी प्राइमरी स्कूलों में भीषण ठंढ में भी बोरा-दरी पर बैठने को मजबूर हैं नौनिहाल
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 23, 2018
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