संतान की दीर्घायु के लिए रखा जाने वाला निर्जला व्रत जितिया मनाया जा रहा श्रद्धापूर्वक

जितिया पर्व हिन्दू धर्म में संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना के लिए रखा जाने वाला निर्जला व्रत ‘जितिया नहाय खाय की परंपरा के साथ 01 अक्टूबर को शुरू हो गया है. 


हिंदू पंचांग के अनुसार, जितिया व्रत आश्विन मास के कृष्णम पक्ष की सप्तहमी से नवमी की तिथि तक मनाया जाता है. इस बार यह 01 अक्टूनबर से 03 अक्टूबबर तक मनाया जा रहा है. सप्त मी को नहाय-खाय के साथ महिलाएं अष्ट मी को निर्जला व्रत रखती हैं और नवमी को पारण करती हैं. आइए जानते हैं इस व्रत का महत्वष, पूजाविधि और व्रतकथा.

व्रत का पहला दिन: व्रत के पहले दिन महिलाएं प्रात:काल सूर्योदय से पहले जगकर स्ना न करके पूजा करती हैं और फिर एक बार भोजन ग्रहण करती हैं और उसके बाद पूरा दिन कुछ भी नहीं खातीं.
व्रत का दूसरा दिन: व्रत के दूसरे दिन प्रात:काल स्नाकन के पश्चा्त महिलाएं पूजा-पाठ करती हैं और फिर पूरा दिन और पूरी रात निर्जला व्रत रखती हैं.
तीसरा दिन: तीसरे दिन निर्जला व्रत रखने के बाद महिलाएं तीसरे दिन व्रत का पारण करती हैं. सूर्य को अर्घ्यर देने के बाद महिलाएं अन्न  ग्रहण कर सकती हैं. मुख्यी रूप से इस दिन झोर भात, मरुवा का रोटी और नोनी का साग खाया जाता है.

महाभारत से शुरू हुई व्रत की परंपरा

व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी है. युद्ध में पिता की मृत्युन के बाद दुखी अश्वत्थामा पांडवों के शिविर गया और उसने 5 लोगों की हत्याै कर दी. उसे लगा कि उसने पांडवों को मार दिया, लेकिन पांडव जिंदा थे. जब पांडव उसके सामने आए तो उसे पता लगा कि वह द्रौपदी के पुत्रों को मार आया है. यह सब देखकर अर्जुन ने क्रोध में आकर अश्व थामा की दिव्यि मणि को छीन लिया. अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए अभिमन्युु की पत्नीे उत्तअरा के गर्भ में पल रही संतान को मारने की योजना बनाई. उसने उत्तयरा के गर्भ को नष्टक कर दिया. मगर भगवान श्री कृष्ण ने उत्तररा की अजन्मीर संतान को गर्भ में ही फिर से जीवित कर दिया. इस तरह उत्तदरा के पुत्र का नाम जीवितपुत्रिका पड़ गया और तब से ही संतान की लंबी आयु के लिए जितिया व्रत किया जाने लगा.
ये भी कथा प्रचलित: इस पर्व से एक विशेष कथा और जुड़ी है. एक बार एक जंगल में चील और लोमड़ी घूम रहे थे. वहीं कुछ लोग इस व्रत की कथा सुन रहे थे. चील ने वहां रुककर सभी की बातों को बहुत ध्यान से सुना जबकि लोमड़ी चुप-चाप वहां से चली गई. फलस्वरूप चील की संतानें सलामत रहीं और लोमड़ी की एक भी संतान जीवित नहीं बची.

व्रत के नियम: इस व्रत को शुरू करने के लिए सूर्योदय से पहले ही खाया जाता है. व्रत से पहले ही मीठे भोज्ये पदार्थ खाने की परंपरा है. पारण के बाद आप किसी भी प्रकार का भोजन कर सकते हैं.

पूजा विधि: आश्विन माह की कृष्ण अष्टमी को प्रदोषकाल में महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती है. जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित किया जाता है और फिर पूजा की जाती है. इसके साथ ही मिट्टी और गाय के गोबर से चील व सियारिन की प्रतिमा बनाई जाती है. जिसके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है. पूजन समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है.
संतान की दीर्घायु के लिए रखा जाने वाला निर्जला व्रत जितिया मनाया जा रहा श्रद्धापूर्वक संतान की दीर्घायु के लिए रखा जाने वाला निर्जला व्रत जितिया मनाया जा रहा श्रद्धापूर्वक Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on October 02, 2018 Rating: 5

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