
छठ
पूजा का दिन ज्यों-ज्यों नजदीक आ रहा है, मुरलीगंज
के छठव्रतियों की चिंता भी बढ़ती जा रही है. क्योंकि 2008 के बाढ़ के बाद से बैंगा नदी के विभिन्न घाटों पर कचरे का अंबार लगा है.
बैंगा
नदी के वार्ड नं. 7 घाट की तो और भी दयनीय अवस्था है. नदी में कचरे की वजह से पानी
का रंग भी काला पड़ गया है.
महापर्व
छठ में चार दिन शेष है लेकिन छठ घाटों
की सफाई का काम शुरू नहीं हुआ है। घाटों पर
कचरे के ढेर लगे हुए हैं। शहर की अधिसंख्य लोग बैंगा नदी
किनारे विभिन्न घाटों पर छठ पूजा करने आते थे लेकिन 2008 के बाद के बाद नगर पंचायत की करतूतों के
कारण इन घाटों पर गंदगी का अंबार लगा हुआ है। शहर के कचरे भी यहां फेंके जाते हैं।
लोग यहां बड़ी संख्या में नित्यक्रिया से निपटने आते हैं। घाट के किनारे ही शौच भी
करने से परहेज नहीं करते हैं। घाट के आसपास मैला पटा हुआ है। बदबू से सांस लेना
मुश्किल है।

नगर
पंचायत के करतूतों से उठकर लोगों ने गंगा नदी में छठ मनाना बंद कर दिया और छठ
व्रतियों ने अब नदी से कुछ दूर हटकर आपसी सहयोग से गड्ढा खोदकर छठ मना कर सूर्य
देव की उपासना करना उचित समझा.
मुरलीगंज
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टर राजेश कुमार ने कहा कि इतने गंदे पानी में
कोई छठ कैसे मना सकता है, उसे तुरंत ही चर्म रोगों के साथ साथ ढेर सारी बीमारियां
उत्पन्न हो जाएगी.
ऐसे
में मुरलीगंज हेल्पलाइन के सचिव विकास आनंद ने कहा कि एक तरफ जहाँ हमारे
प्रधानमंत्री नदी को स्वच्छ करने और गंगा को स्वच्छ करने का प्रयास कर रहे हैं वही
मुरलीगंज नगर पंचायत द्वारा बैंगा नदी को प्रदूषित किया जा रहा है जबकि इस पर जल
प्रदूषण अधिनियम एवं नदी प्रदूषण अधिनियम के तहत कानूनी कार्रवाई का मामला बनता
है।
मानव
और जानवरों के मल, नदी तक पहुंचने से उसमें
बैक्टीरिया की संख्या अधिक हो जाती है और रोग फैलने का खतरा बढ़ जाता है। प्रदूषित
पानी से होने वाले अधिकतर रोग, संचारी रोग होते हैं। इन
रोगों में पानी से जनित रोग जैसे हैजा, टाइफाईड, आंत्रशोध, पानी के प्रयोग से होने वाले रोग जैसे,
डायरिया, चर्मरोग, आँखों
पर प्रभाव, पानी पर आधारित रोग जो प्रदूषित जल में परजीवी
रोग फैलाने वाले जीवों के पलने से उत्पन्न होती है जैसे कृमि वाले रोग और
शिस्टोसोमियोसिस एवं पानी से संबंधित रोग, जो प्रदूषित पानी
के एक स्थान पर जमा होने के कारण होते हैं जैसे मच्छरों, मक्खियों
और कीड़ों की संख्या बढ़ने से मलेरिया, फाईलेरिया, डेंगू, यलोफीवर आदि मुख्य हैं।
शहरी
मल-जल के कचरे के मिलने से, नदी के जल में घुलनशील
ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, जिससे विभिन्न बैक्टीरिया की
संख्या में बढ़ोत्तरी होती है एवं जैव, रासायनिक जहरीले
पदार्थ की मात्रा बढ़ती है, जो
नदियों के स्वास्थ्य के लिये अत्यन्त खतरनाक होता है।
जल
प्रदूषण निरोधक कानून के तहत धारा 25.7 के
प्रावधान
(क) किसी व्यक्ति को जल स्रोतों, कूपों या भूमि पर
किसी प्रकार के मल-जल या बहिस्रावों को छोड़ने की अनुमति नहीं होगी। न ही उसे ऐसे
उद्योगों एवं उपचार, निस्तार प्रणाली को स्थापित या संचालित
करने की अनुमति होगी, जिनसे निकले बहिस्रावों से जल स्रोतों
या भूमि के संदूषित होने की संभावना हो।
जल
स्रोतों,
कूपों और भूमि पर प्रदूषक पदार्थों के बहिस्रावों को बहाने के
प्रतिबन्ध के बावजूद यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है जल बोर्ड के आदेश का उल्लंघन
करता है तो उस व्यक्ति को डेढ़ वर्ष के कारावास का दण्ड या अर्थ-दण्ड अथवा दोनों
दण्ड भुगतने पड़ सकते हैं। यदि इसके बाद आदेशों/निर्देशों या अधिनियम के प्रावधानों
का उसके द्वारा उल्लंघन जारी रहा तो उसे प्रतिदिन 5,000 रुपये
की दर से अर्थदण्ड देना होगा। यदि उल्लंघन की अवधि एक वर्ष से अधिक को पार कर जाती
है तो उल्लंघनकर्ता को दो से सात वर्ष के कारावास का दण्ड मिलेगा।
खैर,
जो भी हो, मुरलीगंज में लोग अपने घरों में या आसपास छोटे-बड़े गड्ढे खोदकर ही इसबार
भी छठ मनाने को विवश हैं. चलिए, देखिये आगे-आगे होता है क्या?
नदी के घाटों पर कचरे का अम्बार: बढ़ती जा रही है मुरलीगंज के छठव्रतियों की चिंता
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
October 23, 2017
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