बाबा निकले पूरी तरह ‘फ्रेश’, समाधि स्थल के अन्दर है एक दूसरा भी दरवाजा: प्रशासन खोले दूसरे दरवाजे का राज!

बहुचर्चित मधेपुरा जिले के चौसा-नवगछिया फोरलेन मुख्य सड़क के भटगामा जीरो माईल के नाथ बाबा मंदिर के पास 15 दिनों पहले भू-समाधि लिए प्रमोद बाबा आज दिन में समाधि से बाहर बिलकुल ही ‘फ्रेश’ निकल कर हजारों (अंध)भक्तों को अपना आशीर्वाद दिया और फिर एक बार आस्था के नाम पर हुए खिलवाड़ का गवाह न सिर्फ मूक दर्शक स्थिति को संभालता स्थानीय प्रशासन बना, बल्कि मीडिया के माध्यम से पूरे देश ने देखा. अनपढ़ और पिछड़े जिले के रूप में भारत में अपना नाम दर्ज करा चुके मधेपुरा को चंद मूढ़ लोगों ने फिर से एक बार पीछे धकेल दिया. वैसे भी चौसा सबसे पिछड़ा हुआ इलाका है और आज इस पिछड़ेपन का एक और कारण हजारों लोगों ने दर्शा दिया.
       शर्मनाक और हैरत की बात तो ये रही कि स्थानीय मीडिया वालों को बाबा के लठैत भक्तों ने पुलिस प्रशासन के सामने ही न सिर्फ तस्वीरें लेने के लिए आँखें तरेर कर रोक दिया, बल्कि कैमरे छीन कर तोड़ने की धमकी दी और कैमरे पर धूल तक फेंक दिया.

क्या है समाधि स्थल के अन्दर दूसरे दरवाजे का राज?: बाबा के समाधि स्थल से निकलते ही जहाँ भक्तों का उत्साह चरम पर था वहीँ प्रशासन ने भी राहत की सांस ली. बात साफ़ थी बाबा की आत्मा यदि नश्वर शरीर को छोड़कर सदा के लिए परलोक चली जाती तो प्रशासन का फेरे में फंसना तय था. बाबा के समाधि स्थल को जहाँ कुछ भक्तों की चाक-चौबंद की सुरक्षा घेरे में रखा गया था वहीँ एक टीवी चैनल ने बाबा की समाधि स्थल कहे जाने वाले गड्ढे में प्रवेश पा ही ली. हैरत की बात यह दिखी कि अन्दर एक बिछावन तकिता समेत लगा हुआ था और घुसने के मुख्य दरवाजे के अलावे एक और बंद दरवाजा अन्दर बना हुआ था था. पूछने पर बताया गया कि यह पहले बनाया गया था पर बाबा के कहने पर इसे बंद करवा कर दूसरा रास्ता बनाया गया.
    यह दूसरा रास्ता घोर शक की गुंजाईश पैदा करता है, जिसकी जांच आवश्यक है. कहीं इस दूसरे रास्ते की निकासी का प्रयोग विगत पंद्रह दिनों में होता रहा है? कुछ लोगों का तो ये भी दावा है कि ये रास्ता रामायण पाठ होने वाले जगह से पास खुलता है, जहाँ प्रमोद बाबा के ‘क्लोज सर्किल भक्त’ हमेशा विराजमान रहते हैं.   
     जिला प्रशासन भले ही राहत महसूस कर रही हो पर हम अभी भी प्रशासन से कई सवाल पूछना चाहते हैं, जो हमारे पाठक समेत विज्ञान के युग में पढ़े-लिखे हर व्यक्ति को जानने का अधिकार है.
      क्या बिना अनुमति के बाबा का समाधि ले लेना गैर-कानूनी नहीं है? और यदि हाँ, तो फिर बाबा और उसके भक्तों पर मुकदमा क्यों नहीं दर्ज किया गया? या फिर देर से ही सही, बाबा के निकलते ही उन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं कर लिया गया? जब अनशन के दौरान अनशनकारी की मेडिकल जांच होती रहती है तो फिर बाबा की बीच-बीच में मेडिकल जांच क्यों नहीं की गई. बाबा भक्त क्यों प्रशासन और क़ानून पर भारी हो गई और नियन-क़ानून अपने मुताबिक़ चलाती रही. बाबा की समाधि स्थल पर पुलिस की मौजूदगी क्या बाबा के द्वारा आस्था के नाम पर अन्धविश्वास फ़ैलाने का मूक समर्थन नहीं है? जबकि संविधान तथा कानून में भी अन्धविश्वास को बढ़ावा नहीं देने की बात कही गई है, जिसका पालन करना क्या प्रशासनिक अधिकारियों का कर्तव्य नहीं है?
      इसके अलावे ऐसी घटनाएं जो कुछ लोगों के द्वारा बड़ी चालाकी से अंजाम दिया हुआ लगता है, से लोगों का भरोसा विज्ञान और श्रम से भटक कर आस्था के नाम पर फैलाए जा रहे अंधविश्वास और चमत्कार पर बढ़ सकता है. ऐसे में जिले का विकास और पीछे जा सकता है. कोई व्यक्ति पंद्रह दिन बिना साथ हवा के कैसे रह सकता है? प्रशासन को इसकी तथा पूरे समाधि स्थल की जांच करानी चाहिए ताकि सच प्रशासन के माध्यम से आम लोगों के बीच आ सके.
       सवाल यह भी उठता है कि जब बाबा ने ऐसा कदम जन कल्याण के लिए उठाया है और लोगों ने जनकल्याण के मुद्दे पर सरकार और प्रशासन की बजाय बाबा पर भरोसा जताया है तो अब बाबा को चाहिए कि वो चमत्कार से चौसा की सभी समस्याओं को दूर कर दे. भक्तों को भी चाहिए कि इंदिरा आवास से लेकर पुल-पुलिया की समस्याओं के लिए वे प्रशासनिक पदाधिकारी की बजाय बाबा से ही मिले. जिन लोगों ने बिना हवा के रहने वाले बाबा पर भरोसा किया है उन्हें अपने बाल-बच्चों को विज्ञान की किताब को पढने से मना कर देना चाहिए जिसमे लिखा है कि ऑक्सीजन के बिना व्यक्ति पांच मिनट भी जिन्दा नहीं रह सकता.
       जो भी हो, पूरे मामले की जांच एक कमिटी बनाकर होनी चाहिए, पर हम जानते हैं इसकी गुंजाईश कम है क्योंकि प्रशासन को डर है इस घटना के बाद बाबा के समर्थकों के बढ़े हुजूम का. शायद चलता रहेगा आस्था के नाम पर अंधविश्वास फैलाकर लोगों को बेवकूफ बनाने का धंधा.
देखें इस वीडिओ में बाबा और समाधि स्थल, यहाँ क्लिक करें.
(ब्यूरो रिपोर्ट)
बाबा निकले पूरी तरह ‘फ्रेश’, समाधि स्थल के अन्दर है एक दूसरा भी दरवाजा: प्रशासन खोले दूसरे दरवाजे का राज! बाबा निकले पूरी तरह ‘फ्रेश’, समाधि स्थल के अन्दर है एक दूसरा भी दरवाजा: प्रशासन खोले दूसरे दरवाजे का राज! Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on March 13, 2016 Rating: 5

2 comments:

  1. आपके विचारों से मैं सहमत हूँ। परंतु क्या आप यह मानते हैं कि विज्ञान इतना विकसित हो चुका है कि वो सारे सवालों का प्रमाणिकता के साथ जबाब दे पाये। शायद विज्ञान के विशेष ज्ञान के ऊपर की बात है साधना की शक्ति। भारत में ऐसे सैकड़ों नहीं लाखों उदाहरण हैं जो साधकों के ओजस्वी कहानियों से प्रमाणिकता के साथ भरे पड़े हैं। कुछ दिन पहले जब एक भारतीय सेना के जबान को बर्फ से जिंदा निकाला गया था तो उस समय विज्ञान की बोलती बंद हो गयी थी। प्रशासन के द्वारा कानूनी डंडे चलाने की आपकी परिकल्पना को मैं समझ सकता हूँ परंतु मुझे यह सम़झ नहीं आ रहा है कि सियाचिन के ग्लैशियरों पर लड़ने जाने से पहले हमारी सेना भी एक शहीद हुए सेना की स्मृति में बनाये मंदिर में जाकर हाजिरी क्यों बजाती है।
    खैर आध्यात्म और साधना विज्ञान के ज्ञान से ऊपर की चीज है ।आपने पूरे चौसा को अशिक्षितों का जमात समझा इसके लिये हम मुक्त कंठ से आपका और आपके सोच का निंदा करते हैं।

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  2. आपके विचारों से मैं सहमत हूँ। परंतु क्या आप यह मानते हैं कि विज्ञान इतना विकसित हो चुका है कि वो सारे सवालों का प्रमाणिकता के साथ जबाब दे पाये। शायद विज्ञान के विशेष ज्ञान के ऊपर की बात है साधना की शक्ति। भारत में ऐसे सैकड़ों नहीं लाखों उदाहरण हैं जो साधकों के ओजस्वी कहानियों से प्रमाणिकता के साथ भरे पड़े हैं। कुछ दिन पहले जब एक भारतीय सेना के जबान को बर्फ से जिंदा निकाला गया था तो उस समय विज्ञान की बोलती बंद हो गयी थी। प्रशासन के द्वारा कानूनी डंडे चलाने की आपकी परिकल्पना को मैं समझ सकता हूँ परंतु मुझे यह सम़झ नहीं आ रहा है कि सियाचिन के ग्लैशियरों पर लड़ने जाने से पहले हमारी सेना भी एक शहीद हुए सेना की स्मृति में बनाये मंदिर में जाकर हाजिरी क्यों बजाती है।
    खैर आध्यात्म और साधना विज्ञान के ज्ञान से ऊपर की चीज है ।आपने पूरे चौसा को अशिक्षितों का जमात समझा इसके लिये हम मुक्त कंठ से आपका और आपके सोच का निंदा करते हैं।

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