आपने दिया, आपका दिल से शुक्रिया, लालू जी!

आजादी के 67 साल बीत जाने के बाद भी भारत के बहुत हिस्सों में कोई बदलाव या विकास कुछ खास नहीं हुआ है. जो जस था वो तस है. हां विकास के नाम पर कुछ कंक्रीटें और लोहे की मशीनें कुछ एक जगहों पर रख दी जाती रही हैं जो समय की माँग और राजनीति की जरुरत के हिसाब से होती रही है. विकास के इसी क्रम में हम बात करते हैं  'मधेपुरा' की. बिहार राज्य के कोसी क्षेत्र में एक छोटा सा जिला 'मधेपुरा'. अंग्रेजों और अंग्रेजों से पहले की चर्चा ना करते हुए हम अपने समय यानी विकासशील आधुनिक मधेपुरा की बात करते हैं.
      आजादी के बाद मंडल साहब ने मधेपुरा का नाम बिहार और देश के फलक पर पहुँचाने में एक मजबूत कड़ी का काम किया. मुख्यमंत्री के रूप में हो या मंडल आयोग, इसने मधेपुरा को एक राष्ट्रीय पहचान दिलायी. इसके बाद कुछ ऐसे भी काम हुए जिसने मधेपुरा का नाम आगे तो किया लेकिन प्रतिष्ठा नहीं जैसे, इंदिरा गाँधी, लालकृष्ण आडवाणी घटना या फिर 1990 का दंगा. खैर जो कुछ भी हो मधेपुरा का नाम ऊंचाइयों पर रहने के बावजूद भी विकास के मामले में यहाँ की उपलब्धि नगण्य रही. इस जिले को प्रकृति की सबसे बड़ी देन हवा, मिट्टी, और जल पर्याप्त उपलब्ध रहने के बावजूद भी कुछ हासिल नहीं हुआ जबकि आधी दुनियां इन चीजों के लिए मोटी रकम चुकाती है. बाँकी अन्य पिछड़े जिलों की तरह यहाँ के बहुतरें भी अपने जीने के आधार स्वंय अपने बुते ढूंढ रखे थे. किसी भी सरकार के तरफ से विकास के सड़क बिछाने की दूर-दूर तक कोई आसार इस जिले के लिए अलग से नहीं दिख रहा था. इस जिले के लिए मधेपुरा नाम अलग था और मधेपुरा दर्शन अलग.
       समय की धुरी के साथ अस्सी का दशक बीत रहा था, तभी नब्बे के दशक के आस-पास राजनीति की उथल-पुथल में अचानक ऐसा मोड़ आ गया जब 'मधेपुरा' को बिहार की राजनीति का सबसे बड़ा अखाड़ा बना दिया गया. तब उस दौर के सबसे बड़े खिलाड़ी बन कर उभरे थे लालू प्रसाद यादव, और यहीं से शुरू हुई मधेपुरा की 'विकास' और नए 'पहचान' की एक नई कहानी. राजनीति का दाव पेंच कहें या अखाड़े का पुरस्कार लेकिन उसी का फायदा मिला मधेपुरा को और ये फायदा देने वाले थे सिर्फ लालू यादव, जिनकी घोषणाएं और शुरू किये गए काम पर ही मधेपुरा विकास पर आधारित हो गया. कहा जा सकता है सही मायने में नाम के अनुरूप पूर्ण होता मधेपुरा.
     हम लालू यादव के कुछ महत्वपूर्ण दिए गए सौगातों की चर्चा कर रहे हैं जो पुल, सड़क, सिंचाई के लिए बोरिंग या इंदिरा आवास जैसे लूट-खसूट वाले योजनाओं से अलग है. भले ही लालू प्रसाद के द्वारा घोषित 'पूर्ण परियोजनाओं' का कार्यकलाप अभी किस स्तर का है ये अलग मुद्दा है और इसपर अभी हम नहीं जा रहे हैं.

बी एन मंडल विश्वविद्यालय: सहरसा, पूर्णिया और कटिहार जैसे जिले होते हुए भी मधेपुरा को बी एन मंडल विश्वविद्यालय का सौगात देना लालू जी की हीं बड़ी देन है, जिसमें आज आधुनिक मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज बनाए जा रहे हैं.

खेल स्टेडियम : मधेपुरा में बना खेल  स्टेडियम भी इन्हीं की दी हुई सौगात है जो आज कई बड़े जिलों को नसीब नहीं है.

रेलवे कंक्रीट स्लिपर फैक्ट्री: लालू यादव के घोषणा के बाद कुछ सालों में ही मधेपुरा रेलवे स्लीपर फैक्ट्री बनकर तैयार हो गई. ये भी उनके पूर्ण किये गए वादों और मधेपुरा को दिए गए सौगातों में से एक था। (इसकी दशा अभी मृत सी है.

रेल इंजन कारखाना: मधेपुरा को एक ऐतिहासिक सौगात के रूप में मिला है भारत का सबसे अलग रेल इंजन कारखाना. लालू यादव ने हीं इसकी घोषणा रेल मंत्री रहते हुए की थी और ये आज मूर्त रूप में आने को प्रतीक्षित है. इस कारखाने की शुरुआत में कुछ बाधाएं मात्र दूर है जिसे फ्रांस की कम्पनी अलस्टॉम पूर्ण करेगी. ये परियोजना इतनी बड़ी है की इसके काम की शुरुआत के आहट मात्र से ही शुर्खियाँ भारत भर में फैलने लगी है. मधेपुरा की विकास गाथा में एक मील का पत्थर साबित होगा ये कारखाना. इस एक परियोजना के शुरुआत भर से ही मधेपुरा का नाम और दर्शन एक जैसा भाव देगा. विकसित मधेपुरा का भाव.

  भले ही इन परियोजनाओं को पूर्ण करने में किसी और सरकार का योगदान हो मगर इस बात को कभी झुठलाया नहीं जा सकता कि ये लालू प्रसाद यादव के सोच की ही देन है कि मधेपुरा आज बिहार तो क्या भारत के कई अन्य जिलों से अलग विकास की राह पर अग्रसर है. और अगर इतना सबकुछ दिया है मधेपुरा को लालू प्रसाद यादव ने तो हम क्यों ना निष्पक्ष भाव से सोचते हुए दिल से उन्हें शुक्रिया करें !
(रिपोर्ट: अमित सिंह 'मोनी')
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
आपने दिया, आपका दिल से शुक्रिया, लालू जी! आपने दिया, आपका दिल से शुक्रिया, लालू जी! Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on December 14, 2015 Rating: 5

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