क्या इसबार खत्म हो जायेगी डकैत से इंसान बने लोगों की समस्याएं या फिर खत्म हो जायेगी इनकी इनकी उम्मीदें?

मधेपुरा जिले के कुमारखंड प्रखंड के टेंगराहा-भोकराहा और शंकरपुर प्रखंड सहित तीनटेंगा गांव के सैंकड़ों कुख्यात डकैतों को समाज के मुख्यधारा से तो जरुर जोड़ दिया गया पर इन डकैतों के परिजनों का हाल अब भी बुरा है. दाने-दाने को मुहताज उक्त परिजनों को आज तक सरकारी स्तर पर कोइ सहयोग नहीं मिल सका है. बदहाली और बेबस का दंस झेल रहे यह कुख्यात डकैत आपने परिवार का भरणपोषण किसी तरह कर रहे हैं.
अब भी स्थिति दयनीय: भोकराहा  के बूचो सरदार बताते हैं कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी तीन बार यानि 1989 और 1997 व 2005 मे सरकार और पदाधिकारियों के पहल पर सैंकड़ों डकैतों ने समाज के मुख्यधारा से जुड़कर अपराध को अलविदा कर दिया पर सरकार ने इन्हें जिन विभिन्न सुविधाएं देने की बात कही क्या अभी तक सब पर पानी फिर हुआ है?
 गाँव में कई पूर्व डकैत अभी भी मान रहे हैं कि हाल में मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भी सिर्फ आश्वासन की घुट्टी पिलाकर रवाना हो गये और अभी तक इनके हाथ कुछ नहीं लगा है जिससे इनकी आशा पर पानी फिरने लगा है. वहीं तीनटंगा के  दुर्गी सरदार ने बताया कि अब हमलोग ऊब चुके हैं और चाहते हैं कि हमारे बच्चे हथियार न उठायें. लेकिन यही हाल रहा तो बेबस होकर मरता क्या नही करता वाली कहावत भी चरितार्थ हो सकती है.
उधर गांव के बूचो सरदार ने बताया कि आत्मसमर्पण स्कूल तो खुला पर आज तक शिक्षकों को अनुदान की राशि नहीं मिल पायी है. वर्षों गुजर गये सरकार हम सबों को झूठा आश्वासन देकर चली जाती है. अगर समय रहते सरकार ध्यान नहीं दिया तो हमसब भुखमरी के कगार पर चले जाएंगे.
 बता दें कि सरकारी घोषनाओं मे इन डकैतो को 5 डी० मील जमीन और प्रत्येक व्यक्ति को 3000  रुपये मासिक व बच्चों की पढाई तथा पुनर्वास के अलावे अन्य सुविधा देने की बात कही थी. पूर्व में अपराध की दुनियां में रहकर आतंक का पर्याय बन चुके ये पूर्व डकैत बारी-बारी से तीन बार आत्मसमर्पण किये हैं और अब समाज के मुख्यधारा से जुरकर रह रहे हैं फिर भी कभी पुलिस तंगतबाह करती है. इन्होने बताया कि हाल मे भरगामा पुलिस ने गांव मे छापामारी कर कइ लोगो को धमकाया भी है.  
बड़ा सवाल यह है कि आखिर कब तक होगी सरकार की घोषणाएं पूरी और कब सवरेंगें इनके दिन? हम आप करें या न करें पर इस इस बात की चिंन्ता सताए जा रही है इन सरदारों को !
करीब एक साल पूर्व सबसे पहले मधेपुरा टाइम्स ने उठाया था मुद्दा: कभी बंदूकों की गडगडाहट से इलाके के लोगों के दिल में दहशत फैलाने वाले इन डकैतों ने सरकार के लुभावने वादों पर यकीन कर आत्मसमर्पण तो कर दिया था, पर इनकी सुधि लेने वाला तब से कोई नहीं था और इलाके की पुलिस इन्हें डराती रहती थी.
      वर्ष 2014 के अप्रैल में जब पहली बार मधेपुरा टाइम्स टीम ने टेंगराहा-भोकराहा का दौरा किया था तो डकैतों ने पहले यह कहकर किसी भी मीडिया वाले से मिलने से इनकार कर दिया कि आपलोग पुलिस की मुखबिरी कर हमें फिर से जेल भिजवा देंगे. पर हमारे समझाने पर वे सामने आये और जब हमने उन्ही व्यथा-कथा लोगों के सामने रखी (क्या थी उस समय इनकी स्थिति, जानें यहाँ क्लिक कर) तो फिर सरकार का ध्यान इन तक गया और फिर इनके हालात को बदलने के प्रयास शुरू हो गए. पर वर्तमान परिस्थिति में जहाँ सूबे की सरकार स्वयं अस्थिर है और आगे चुनाव का मौसम है वैसी स्थिति में कहीं इनसे किये वादे अधूरे न रह जाएँ.
क्या इसबार खत्म हो जायेगी डकैत से इंसान बने लोगों की समस्याएं या फिर खत्म हो जायेगी इनकी इनकी उम्मीदें? क्या इसबार खत्म हो जायेगी डकैत से इंसान बने लोगों की समस्याएं या फिर खत्म हो जायेगी इनकी इनकी उम्मीदें? Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on February 06, 2015 Rating: 5

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