शिक्षा का तात्पर्य सीखने, जानने, विद्या ज्ञान से है। उच्च शिक्षा
शब्द से स्पष्ट है उँचा, श्रेष्ठ व उत्कृष्ट ज्ञान, उच्चस्तरीय विद्या, जानकारी, अज्ञात तथ्यों, सत्यों व रहस्यों पर से परदा
का उठना, अनुसंधान,
प्रत्यक्षीकरण जिसका
उपयोग कर जीवन के स्तर को उँचा, उत्कृष्ट बनाया जा सके,
भौतिक एंव आध्यात्मिक
बाह्य एंव आन्तरिक समस्याओं का समाधान किया जा सके, कष्टों से निजात पाया जा सके।
ऋषि वाक्य है - ‘सा विद्या या विमुक्तये ’। विश्ववंदनीय राष्ट्र पिता
महात्मा गाँधी ने कहने की कृपा की -‘‘ मैं उच्च शिक्षा उसी को कहूँगा जिसे पाकर मनुष्य विनम्र,
परोपकारी, सेवाभावी और कर्म तत्पर हो
जाय। जिस विद्या से आर्थिक, सामाजिक और आध्यात्मिक कष्टों से मुक्ति मिलती है, वही वास्तविक विद्या है।
’’ विश्व धर्म
सम्मेलन में विश्व को अपने विशिष्ट विवेक से
विस्मित करने वाले विवेकमूत्र्ति, वेदान्त केसरी, योध्दा संन्यासी स्वामी विवेकानन्द ने कहने की कृपा की – “वह शिक्षा जो जीवन संग्राम के उपयुक्त नहीं बनाती, चारित्र्य शक्ति का विकास नहीं करती, भूतदयाभाव और सिंहसाहस पैदा नहीं करती, क्या उसे भी हम शिक्षा का नाम दे सकते हैं ? जिस प्रक्रिया से मनुष्य की इच्छाशक्ति का प्रवाह और प्रकाश संयमित हो कर फलदायी बन सके, उसी का नाम है शिक्षा।
विस्मित करने वाले विवेकमूत्र्ति, वेदान्त केसरी, योध्दा संन्यासी स्वामी विवेकानन्द ने कहने की कृपा की – “वह शिक्षा जो जीवन संग्राम के उपयुक्त नहीं बनाती, चारित्र्य शक्ति का विकास नहीं करती, भूतदयाभाव और सिंहसाहस पैदा नहीं करती, क्या उसे भी हम शिक्षा का नाम दे सकते हैं ? जिस प्रक्रिया से मनुष्य की इच्छाशक्ति का प्रवाह और प्रकाश संयमित हो कर फलदायी बन सके, उसी का नाम है शिक्षा।
“Education is not filling
the mind with a lot of facts. Education is the manifestation of the perfection
already in man.”
“We want that education by
which character is formed, strength of mind is increased, the intellect is
expanded and by which one can stand on one’s feet’’
बीसवीं सदी के महान् व सुविख्यात संत प्रातः स्मरणीय अनन्तश्रीविभूषित
परम पूज्य परमाराध्य गुरूदेव महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज ने भी कहने की कृपा की -’’ विद्या दो तरह की है। सर्वश्रेष्ठ अध्यात्म विद्या
है। दूसरी लौकिक विद्या है जो अविद्या भी बन जाती है।
संसार में तांडवनृत्य हो
रहा है। बड़े-बड़े विज्ञान जाननेवाले हैं| उनसे ऐसा काम होता है, जो नहीं होना चाहिए। स्कूल
कॉलेज की विद्या से बड़े - बड़े काम होते हैं और इसे हम अविद्या भी बना देते हैं। सुकर्म
और नैतिकता से जब तक विद्या को युक्त रखते हैं, तब तक तो ठीक है, लेकिन उसी विद्या को हम अविद्या
बना देते हैं। काम, क्रोधादिक विकार जब तक मन में है, तब तक विद्या अविद्या बनी रहती है, जिस विद्या से दुर्गुणों
से बचा जाय, वही विद्या असली विद्या है। ’’ भक्तशिरोमणि कवि चूड़ामणि गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है -
’’
काम क्रोध मद लोभ की,
जब लगि घट में खान
।
क्या पंडित क्या मूरखा, दोनों एक समान ।।’’
तत्वदर्शिंयों की राय में आत्मशिक्षा के अभाव में जो
भौतिक शिक्षा उपार्जित हो, वह तृष्णा की आग में घी डालने जैसा है| उससे दूसरों की चीजें
हर लेने के लिए, दूसरों के रक्त पर फलने - फूलने हेतु एक और यंत्र- एक और सुविधा मिल जाती है। धिक्कार
है ऐसी शिक्षा को ।

जिस बिहार के नालन्दा विश्वविद्यालय
में विश्व के विद्यार्थी विद्योपार्जन हेत, विद्वान विशिष्ट विद्या ग्रहण हेतु
आते थे, आज
यहाँ के विद्यार्थी बाहर जाने के लिए विवश हो रहे हैं, इस गरीब पिछड़े राज्य से अरबों रूपये
बाहर जा रहा है। काश, बिहार में शिक्षा स्तर उत्कृष्ट होता, पूर्व की भाँति बाहर से विद्यार्थी, विद्वान विद्या, शोध हेतु बिहार आते,
तो बिहार के विकास
के लिए वरदान साबित होता। बिहारी प्रतिभा इस विषम परिस्थिति में भी विस्मित करती रहती
है। राष्ट्रीय और अन्तरराट्रीय स्तर पर अपना परचम फहराती रहती है। किन्तु अफसोस व भारी
दुःख के साथ लिखना पड़ता है कि बिहार में उच्च शिक्षा की स्थिति दयनीय, चिन्ताजनक , भयावह और शर्मनाक है। प्रारंभिक
व माध्यमिक विद्यालयों में जहाँ शिक्षासदन की नींव डाली जाती है, जड़ मजबूत की जानी चाहिये
वहाँ नियोजित शिक्षकों की आर्थिक बदहाली, उनकी अयोग्यता के साथ शिक्षा - परीक्षा की स्थिति हास्यास्पद,
भयावह, लज्जाजनक है, फिर उच्च शिक्षा में योग्य
शिक्षार्थी कहाँ से आवे ?
इसके अतिरिक्त दिनानुदिन ऐसे महाविद्यालय
खुलते जा रहे हैं ,जहाँ वर्ष में एक भी क्लास का आयोजन नहीं , पर उन्हें पैसे के बल पर शिक्षा माफिया
मान्यता ही नहीं दिलाते, सरकारी अनुदान भी पाते हैं। लाखों छात्र एक भी क्लास लिए बिना
डिग्रियाँ पाते जा रहे हैं। सरकारी जाँच में अपनी सक्षमता सिध्द करने हेतु कमरे,
टेबल, बेंच, प्रयोगशाला, लाइब्रेरी में अनुपयुक्त
पुस्तकों की प्रर्याप्त व्यवस्था कर दी जाती है। तथ्य और सत्य यही है कि छात्र सिर्फ
एडमिशन फार्म, परीक्षा फार्म भरने आते हैं। 75% उपस्थिति का उपहास का ऐसा नमूना विश्व में दुर्लभ ही नहीं असंभव है। बिहार सरकार अंधा बन गरीब राज्य
का खजाना महाविद्यालयों में लूटाती है। शिक्षा
माफिया
दिनानुदिन मालोमाल हो रहा है। फटेहाल जो कल तक था, आज अरबपति बनें है। दुहाई है ऐसे ब्यवस्था की,प्रशासन की, सरकार की जिसमें शिक्षा शून्य
की ओर अग्रसर ही नहीं, शून्यवत् जैसा हो चुका है। अवश्य ही उसका मूल कारण है(1)
सत्ताधारियों का अनावश्यक
हस्तक्षेप, उनका वर्चस्व (2) शिक्षाविदो, शिक्षाप्रेमियों, समर्पित शिक्षकों की अनदेखी, अवहेलना, उपेक्षा (3) भ्रष्ट, अयोग्य, चरित्रहीन, तथाकथित विद्वानों की विश्वविद्यालयों में शीर्ष पदों पर नियुक्ति
(4) बुध्दिजीवियों
की उदासीनता, निष्क्रियता
आवश्यकता है शिक्षा,
परीक्षा की स्थिति
सुधारी जाय ताकि छात्र क्लास लेने, तपस्या करने को विवश हो। बिना पढ़े, उँची डिग्री ही नहीं पैसे के बल पर
उच्चा अंक और नौकरी भी मिले तो कोई क्यों पढ़े ?
संत कबीर ने कहा है
उर करनी, डर परम गुरू, डर पारस डर सार।
डरत रहे सो उबरे,
गाफिल खावे मार।।
एतदर्थ सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। शिक्षक,
समाज, सरकार, प्रशासन सबको मिल कर बदहाल उच्च शिक्षा को उत्कृष्ट, उत्तम बनाने हेतु संगोष्टी
आयोजित कर, वैचारिक मंथन कर अविलंब आवश्यक समग्र प्रयास करना होगा ताकि प्रत्येक महाविद्यालय,
विश्वविद्यालय में
सही शिक्षा उच्च स्तरीय शिक्षा मिले, सही डिग्री ही मिले, सुयोग्य डिग्रीधारी ही शिक्षक बने,
फर्जी शोध की डिग्री
पर प्रतिबंध लगे। प्रत्येक विश्वविद्यालय में सुयोग्य, उत्कृष्ट शोध किये हुए विद्वानों
के अधीन विभिन्न विषयों में शोध हेतु आवश्यक विश्वस्तरीय पुस्तकें, वैज्ञानिक उपकरण - यंत्र
उपलब्ध हो। सार्थक सकारात्मक सोच हो,साहस हो, श्रम हो, समर्पण हो, सपना को साकार करने का दृढ़ संकल्प हो तो शून्य से शिखर
पर पहुँचना सर्वथा सुगम है।
बिन्देश्वरी प्रसाद यादव
एसोसिएट प्रोफेसर, भौतिकी
पा0 वि0 महावि0 मधेपुरा
उपाध्यक्ष, बिहार प्रदेश भाजपा शिक्षा मंच
एसोसिएट प्रोफेसर, भौतिकी
पा0 वि0 महावि0 मधेपुरा
उपाध्यक्ष, बिहार प्रदेश भाजपा शिक्षा मंच
बिहार में उच्च शिक्षा - समस्याएँ और सम्भावनाएँ
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
July 25, 2013
Rating:

professor sahib pehle apne college ko hi sudhar lein
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