पुत्र का पत्र घूसखोर अधिकारी पिता के नाम

 पूज्य (?) पापा,
बहुत सोचा था ये पत्र आपको न लिखूं,पर अब खुद को रोकना बहुत मुश्किल लग रहा है.पापा, जिंदगी के कशमकश से गुजर रहा हूँ, पूछना चाहता हूँ आपसे कई सवाल भी, चूंकि मेरे बचपन में ही आपने कहा था कि कोई सवाल हो तो मुझसे पूछ कर क्लियर हो लिया करो.
   पापा, करीब एक सप्ताह पहले जब आप मम्मी को नोटों की गड्डियां दे रहे थे तो मम्मी ने शंका जाहिर किया था कि कहीं किसी दिन आप पकड़ा न जाएँ.पर आपने हँसते हुए कहा था कि इतना आसान नहीं है मुझे पकड़ना.दलाल के माध्यम से लेता हूँ,पकड़ायेगा तो वही न ! पापा मैं जानता हूँ वो पैसे घूस के थे जिसे देने में हो सकता है किसी ने अपनी जमीन तक बेच डाली हो.मैं ये पूछना चाहता हूँ कि कभी आपने ये सोचा है कि उस व्यक्ति की जगह पर आप होते तो आपको कैसा रोना आता.आप कह रहे थे दुनियां ही ऐसे चलती है, एक मेरे न लेने से देश में घूसखोरी थोरे ही रुक जायेगी.पापा, फिर तो सबमें और आपमें अंतर नही रह गया न? तो फिर बचपन में आपने मुझे क्यों पढ़ाया था कि कि ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी ?
   पापा, एक बात कहूँ ? शायद आपको बुरा लग जाएगा. दादाजी की इमानदारी की चर्चा लोग आज भी करते हैं.और मेरे दोस्त मेरे पीठ पीछे मुझे घूसखोर का बच्चा कहते हैं.पापा, आपमें ऐसा गन्दा खून कहाँ से आ गया? क्या आपने कभी सोचा है कि यदि किसी दिन आप जेल चले गए तो दोस्तों में मेरी इज्जत क्या रह जायेगी? आपको भले इज्जत की परवाह न हो, पर मुझे है.पापा, आप गलतफहमी में जी रहे हैं कि लोग आपको पैसे के कारण इज्जत दे रहे हैं. हाँ, ये बात अलग है कि मेरी नसों में भी आपका ही गन्दा खून बह रहा रहा है और मुझे इस बात का डर भी है कि यदि मैं आपके इस घूस के पैसे से बने महल में रहूँगा तो कहीं मैं भी एक दिन आपके जैसा ही न बन जाऊं.पापा, मुझे शर्म आती है बचपन की उस बात को सोचकर जब आप कहा करते थे विकास मेरे पर ही जायेगा.मैं आप पर नहीं जाना चाहता हूँ.पापा मैं घर छोड़कर जा रहा हूँ.मेरा मानना है कि इज्जत की दो रोटी घूस के खोवा-मलाई से बेहतर है.अगर आप घूस न लेने की कसम खा सको, तो मुझे कॉल करना, नहीं तो मैं नही चाहता कि कोई जब मेरे बाप का नाम पूछे तो मैं आपका नाम भी लूं.
आपका बेटा (?)
विकास
पुत्र का पत्र घूसखोर अधिकारी पिता के नाम पुत्र का पत्र घूसखोर अधिकारी पिता के नाम Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on September 07, 2012 Rating: 5

1 comment:

  1. Is this a true letter or just a creation of 'the editor' ?
    If it's true, then I would feel proud in saluting that boy 'vikash'.

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