इन बच्चों की सुधि कौन लेगा?

राकेश सिंह/१४ नवंबर २०११
फिर बाल दिवस आया और जिले भर में आज कार्यक्रमों की धूम रहेगी.प्राइवेट स्कूलों में तो बच्चे रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर खुशी से उछल-कूद रहे हैं.पढाई से आज के लिए निजात मिली है और शिक्षकों को मिला आज न पढाने का बहाना.सरकारी स्कूलों में भी चाचा नेहरू का जन्मदिन बालदिवस के रूप में मनाने को शिक्षक और बच्चे उत्साहित हैं.पर शायद इनमे से बहुत से शिक्षकों और बच्चों को अभी तक ये नहीं पता है कि जवाहरलाल नेहरू कौन थे?गलती सरासर शिक्षकों की है.और सरकार भी कमोबेश दोषी तो है ही.चलिए ये बच्चे तो कम से कम स्कूल भी आकर मनोरंजन कर गए.
   पर उनका क्या होगा जो आज भी स्कूल जाने से वंचित हैं.अगर जा भी रहे हैं तो सिर्फ मध्यान्ह भोजन की आस में.इस उम्मीद में कि दो शाम के खाने में से एक शाम का खाना तो मिला.रात अगर भूखे भी कटती है तो कल दिन में फिर स्कूल में खाना तो मिलेगा ही.पर इसके पीछे भी कुछ भयावह सच छुपे हैं.शिक्षक से लेकर अधिकारियीं की मिलीभगत से मध्यान्ह भोजन का सामान भी हड़प लिया जाता है.और ऐसे में बहुत से बच्चों के पास मजदूरी करने और भैंस चराने के अलावे कोई रास्ता नहीं बचता.
   गाय बकरी चरती जाय,मुनिया बेटी पढती जाय जैसे स्लोगन राज्य सरकार प्रचारित तो करवा रही है,पर हालात में कुछ ज्यादा सुधार होता नहीं दीख रहा है.सरकार के पास पहुँचने वाले ज्यादा आंकड़े फर्जी हैं.ये आंकड़े जिले और प्रखंड के उन अधिकारियों और कर्मचारियों के द्वारा बनाये जा रहे हैं जो खुद हराम की खाकर तो मोटे होते जा रहे हैं,और गाँव और कसबे के बच्चों का सही विकास होता नहीं दिख रहा है.आज भी आप एक बार गाँवों का रूख कीजिए और भैंस चराते और काम करते बच्चों की संख्यां पर गौर कीजिए,सरकार के प्रयास की अधिकारियों ने किस तरह मिट्टी पलीद की है,पता चल जाएगा.
   ऐसे में यदि बाल दिवस सही रूप से मनाना है तो उन गरीब और उपेक्षित बच्चों को भी इसमें समेटिए.नहीं, यदि इन कार्यक्रमों के नाम पर कुछ और राशि लूटनी है,तब तो कोई बात ही नहीं.लूट-खसोट और यथास्थितिवाद में अटूट भरोसा रखने वाले इन अधिकारियों और कर्मचारियों ने अपने मन में ये शेर याद कर रखा है-सुबह होगी, शाम होगी, यूं ही जिंदगी तमाम होगी.
इन बच्चों की सुधि कौन लेगा? इन बच्चों की सुधि कौन लेगा? Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on November 14, 2011 Rating: 5

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