सूचना का अधिकार क़ानून की अभी भी समझ नही है जिले के अधिकारी को

सुकेश राणा/२७ अगस्त २०११
सूचना का अधिकार क़ानून के लागू हुए छ: वर्ष बीत जाने के बावजूद जिला के आला अधिकारी इस कानून से अनभिज्ञ हैं.यही कारण है कि महत्वपूर्ण माना जाने वाला यह कानून अभी भी सही मायने में असली जामा नहीं पहन पाया है.
   शहर के पुरानी बाजार निवासी मुकेश कुमार ने ५ जुलाई २०११ को पथ निर्माण विभाग के लोक सूचना पदाधिकारी से विभागीय सूचनाएं मांगी थी.काफी इन्तजार के बाद विभाग के कार्यपालक अभियंता ने अपने पत्रांक ५९३ (अनु०)/प० दिनांक २४-०७-२०११ द्वारा समर्पित लोक सूचना पदाधिकारी के नाम से पोस्टल ऑर्डर देने की बजाय अभियंता, पथ निर्माण विभाग, पथ प्रमंडल के नाम से देने की बात कही.मामले का गंभीर पहलू यह है कि कार्यपालक अभियंता पत्र में वादी से स्पष्ट रूप से यह कहते हैं कि इस तरह का पोस्टल ऑर्डर स्वीकार नहीं तथा वापस किये जाते हैं.
    मालूम हो कि बिहार सरकार के कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार विभाग ने पत्र संख्यां-८/सू० अ०-१५-१२/०९ (१) का० ९४२० में सूचना के अधिकार को एक लोकतांत्रिक अधिकार माना है तथा कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार विभाग पत्र संख्यां -८/विविध -१२-९४/२००५ का०/५८२७ में क़ानून के क्रियान्वयन हेतु अधिनियम की धारा ४(१)(ख) एवं (XVI) के अंतर्गत लोक सूचना पदाधिकारी परिभाषित किया है.जबकि पथ निर्माण विभाग के इस अधिकारी को अभी तक ज्ञात नहीं है कि सूचना लोक सूचना पदाधिकारी से मांगी जाती है न कि किसी उच्च पद पर बैठे अधिकारी से.मामले पर आश्चर्य प्रकट करते हुए अधिवक्ता मनोज कुमार अम्बष्ट कहते हैं कि जब जिले के आला अधिकारी को इस कानून का ज्ञान नहीं है तो अन्य के बारे में कुछ कहना लफ्फाजी होगा.बात साफ़ है सरकार कहती है कि सूचना का अधिकार विकास का आधार है,पर जब अधिकारी ही इसके बारे में नहीं जानेंगे तो फिर कैसे हो जिले का विकास?
सूचना का अधिकार क़ानून की अभी भी समझ नही है जिले के अधिकारी को सूचना का अधिकार क़ानून की अभी भी समझ नही है जिले के अधिकारी को Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on August 27, 2011 Rating: 5

No comments:

Powered by Blogger.